कांवड़ यात्रा : महाऋतु के आंगन में उफन गई पुण्यगंगा, पश्चिमी उप्र के कण-कण में शिवत्व Meerut News
वेस्ट यूपी में कांवड़ यात्रा जारी है। गंगा की जलधारा के साथ शिवभक्तों की साधना बहती नजर आई। सावन के दूसरे सोमवार को धार्मिक यात्राा पूरी तरह इंद्रधनुषी बनेगी।
By Ashu SinghEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 10:46 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 10:46 AM (IST)
मेरठ, जेएनएन। सावन के बहाने प्रकृति जब नवजीवन की रचना में जुट जाती है, तभी महादेव कण-कण में ऊर्जा फूंकने की माया रचते हैं। कांवड़ यात्रा इसी महाविधान का प्रतिबिंब मात्र है, जहां शिवत्व प्रकृति का धर्म बन बन जाता है। गंगा की जलधारा के साथ शिवभक्तों की साधना बहती नजर आई। सावन के दूसरे सोमवार को धार्मिक यात्र पूरी तरह इंद्रधनुषी बनेगी। रात्रि में चंद्रशेखर के ललाट पर चंद्रमा विराजने लगती हैं। गहराती रात के साथ शिव की साधना कठोर होने लगी। नींद और थकान के बावजूद भक्तों की आस्था शिवालयों में होने वाली जलाभिषेक पर टिक गई है।
द्वंद खत्म..एक एकाकार
महासावन की महाऋतु में पश्चिमी उप्र की धरती पुण्यगंगा में नहाती नजर आई। हरिद्वार से गंगाजल लेकर निकले कांवड़ियों के चेहरे पर सूरज का तेज है। मुजफ्फरनगर की सीमा से आगे बढ़ते हुए कांवड़ियों की धाराएं कई रंगों में डूबने-उतराने लगती हैं। कहीं भीड़ और नाद है तो कहीं मीलों तक सिर्फ पदचाप। खतौली नहर के साथ-साथ गेरुआ रंग का बहता सैलाब दो धाराओं में बंट गया। एक कांवड़ नहर पटरी मार्ग से होते हुए मुरादनगर पहुंचता है तो दूसरा रास्ता हाइवे होते हुए मेरठ शहर और बाईपास से निकलता है।
यात्रा बनी पाठशाला
दोपहर तीन बजे सिवाय टोल प्लाजा के पास यात्र नए रंग में ढल रही है। एक तरह वाहनों का काफिला रेंग रहा है तो दूसरी ओर कांवड़ मार्ग में डीजे, वाहन, झांकी और नृत्य के मेले सजे हुए हैं। यात्रियों के लिए रास्ता भले ही संकरा हुआ है, किंतु उनके सामने धार्मिक यात्र पूरी पाठशाला बनकर चल रही है। यहां आदि अंत, शून्य-शिखर, वेद-ज्ञान, धर्म शास्त्र, तर्क-वितर्क के सभी सोपान भगवान शिव के रंग में डूबकर एकाकार हो गए हैं।
प्रकाशपर्व में डूब गई रात
सिवाय टोल प्लाजा के पास कार से रुड़की जा रहे इंजीनियर कवंलदीप कहते हैं कि आस्था की ताकत समझने के लिए इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है? टोल प्लाजा से मोदीनगर तक भक्तों की गति में ठहराव आने लगता है। वो दुकानों के इर्द गिर्द अपनी जरूरतों का सामान भी खोलते हें। आखिर सैकड़ों किमी की यात्र के बाद वो मेरठ की पावन सीमा में जो पहुंचे हैं। शिव मंदिरों को शास्त्रों के मुताबिक सजा दिया गया है। अथाह जलराशि भगवान शिव की जटाओं में समाने के लिए मचल रही है। शाम होने के साथ ही पंडालों की बत्तियां जल गई हैं। रात में दिल्ली रोड पर दर्जनों पंडालों में प्रकाश पर्व उमड़ पड़ा है। गीत-संगीत की लय पर उल्लास में डूबने का अंतिम दिन है, कारण सोमवार दोपहर के बाद भोलेभक्त शिवालयों में जलाभिषेक के लिए कतारबद्ध होने लगेंगे। यह धर्म और आस्था का चक्र है।
द्वंद खत्म..एक एकाकार
महासावन की महाऋतु में पश्चिमी उप्र की धरती पुण्यगंगा में नहाती नजर आई। हरिद्वार से गंगाजल लेकर निकले कांवड़ियों के चेहरे पर सूरज का तेज है। मुजफ्फरनगर की सीमा से आगे बढ़ते हुए कांवड़ियों की धाराएं कई रंगों में डूबने-उतराने लगती हैं। कहीं भीड़ और नाद है तो कहीं मीलों तक सिर्फ पदचाप। खतौली नहर के साथ-साथ गेरुआ रंग का बहता सैलाब दो धाराओं में बंट गया। एक कांवड़ नहर पटरी मार्ग से होते हुए मुरादनगर पहुंचता है तो दूसरा रास्ता हाइवे होते हुए मेरठ शहर और बाईपास से निकलता है।
यात्रा बनी पाठशाला
दोपहर तीन बजे सिवाय टोल प्लाजा के पास यात्र नए रंग में ढल रही है। एक तरह वाहनों का काफिला रेंग रहा है तो दूसरी ओर कांवड़ मार्ग में डीजे, वाहन, झांकी और नृत्य के मेले सजे हुए हैं। यात्रियों के लिए रास्ता भले ही संकरा हुआ है, किंतु उनके सामने धार्मिक यात्र पूरी पाठशाला बनकर चल रही है। यहां आदि अंत, शून्य-शिखर, वेद-ज्ञान, धर्म शास्त्र, तर्क-वितर्क के सभी सोपान भगवान शिव के रंग में डूबकर एकाकार हो गए हैं।
प्रकाशपर्व में डूब गई रात
सिवाय टोल प्लाजा के पास कार से रुड़की जा रहे इंजीनियर कवंलदीप कहते हैं कि आस्था की ताकत समझने के लिए इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है? टोल प्लाजा से मोदीनगर तक भक्तों की गति में ठहराव आने लगता है। वो दुकानों के इर्द गिर्द अपनी जरूरतों का सामान भी खोलते हें। आखिर सैकड़ों किमी की यात्र के बाद वो मेरठ की पावन सीमा में जो पहुंचे हैं। शिव मंदिरों को शास्त्रों के मुताबिक सजा दिया गया है। अथाह जलराशि भगवान शिव की जटाओं में समाने के लिए मचल रही है। शाम होने के साथ ही पंडालों की बत्तियां जल गई हैं। रात में दिल्ली रोड पर दर्जनों पंडालों में प्रकाश पर्व उमड़ पड़ा है। गीत-संगीत की लय पर उल्लास में डूबने का अंतिम दिन है, कारण सोमवार दोपहर के बाद भोलेभक्त शिवालयों में जलाभिषेक के लिए कतारबद्ध होने लगेंगे। यह धर्म और आस्था का चक्र है।
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