Kargil vijay diwas 2020: बच्चों की परवरिश में अपना गम भूलीं वीरनारी बबीता, कभी भी धैर्य नहीं खोया
Kargil vijay diwas 2020 कारगिल युद्ध के शहीद लांस नायक सतपाल सिंह की पत्नी वीरनारी बबीता ने पति को खोने के बावजूद धैर्य नहीं खोया बल्कि जीवन संघर्ष की एक नई डगर बना दी।
मेरठ, [अमित तिवारी]। Kargil vijay diwas 2020 कारगिल युद्ध के शहीद लांस नायक सतपाल सिंह की पत्नी वीरनारी बबीता ने पति को खोने के बावजूद धैर्य नहीं खोया, बल्कि जीवन संघर्ष की एक नई डगर बना दी। ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी बबीता ने कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद बच्चों की परवरिश और पढ़ाई को पहली प्राथमिकता में रखा। बच्चों ने भी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी और मां की प्रेरणा व पिता के गौरव की डोर पकड़कर आगे बढ़ते रहे। छह साल आर्मी क्वार्टर और उसके बाद किराए के मकान में रहीं। अब अपना मकान बना रही हैं। जीवन में परेशानियों के थपेड़े ङोले, लेकिन बच्चों तक इसकी आंच नहीं पहुंचने दी।
बेटी दिव्या को सेना में जाने को प्रेरित
बबीता बताती हैं कि बच्चों को भी वह फौज की वर्दी में देखना चाहती थीं। बेटे पुलकित सिंह ने 11 बार कोशिश की लेकिन हर बार एसएसबी साक्षात्कार तक पहुंचकर रुकते गए। अंत में एमबीए करने का निर्णय किया। बेटी दिव्या भी डीयू के हिंदू कॉलेज से एमए इंग्लिश ऑनर्स कर रही हैं। अब सेना में महिलाओं के कमीशन का रास्ता साफ देख बबीता बेटी दिव्या को सेना में जाने को प्रेरित कर रही हैं। दिव्या ने पहला आवेदन भी किया है लेकिन लॉकडाउन में प्रक्रिया रुकने पर उन्हें इंतजार करना पड़ रहा है। बबीता के अनुसार बच्चे यदि फौज में न भी जा सके तो वह पूरी कोशिश करेंगे कि बहू और दामाद उन्हें फौजी ही मिलें।
तब हुई नई शुरुआत
बबीता के अनुसार शहादत के समय बेटा साढ़े चार और बेटी डेढ़ साल की थी। आर्मी क्वार्टर में रहने के दौरान उन्होंने पेट्रोल पंप ठेके पर दिया था, जिसकी हालत दिन ब दिन खराब हो गई। फिर इंडियन ऑयल के ही फील्ड ऑफिसर राजेश शरण ने मदद और मार्गदर्शन किया। बच्चों को देहरादून के समरवैली स्कूल में बोíडंग में भेजा। इसकी फीस सेना से मिलती रही। उसके बाद बहन के बेटे अमित चौधरी के साथ पंप को संभाला और दूसरी शुरुआत हुई।
दूसरी लड़ाई में हुए थे शहीद
बबीता के अनुसार दो राजपूताना रायफल्स के साथ लड़ते हुए पहले हमले में मेरठ के ही सीएचएम एशवीर सिंह शहीद हुए थे। बटालियन पर दूसरे हमले में कंपनी कमांडर बीएन थापर की अगुवाई में 28 जून को लांस नायक सतपाल सिंह सहित सभी 11 लोग आमने-सामने की लड़ाई में शहीद हो गए थे। उसके बाद ही वह मेरठ में रहने लगीं।