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एक ऐसा चर्च जहां फारसी-देवनागरी में लिखे हैं बाइबिल के हेम

बाइबिल के हेम (स्तोत्र) को देवनागरी लिपि में अनुवाद करवाकर इसे चर्च में लगाया था ताकि अगर हिंदू और फारसी चर्च में जाते हैं तो उन्हें इसाईयों के धर्मग्रंथ के संदेश की जानकारी हो सके।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 23 Dec 2017 12:28 PM (IST)Updated: Sat, 23 Dec 2017 12:29 PM (IST)
एक ऐसा चर्च जहां फारसी-देवनागरी में लिखे हैं बाइबिल के हेम
एक ऐसा चर्च जहां फारसी-देवनागरी में लिखे हैं बाइबिल के हेम

मेरठ [रवि प्रकाश तिवारी]। उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च मेरठ में है। इस चर्च की खासियत यह है कि यह सामाजिक समरसता का प्रतीक है। 1822 में निर्मित इस प्रोटेस्टेंट चर्च में बाइबिल की गाथा को न सिर्फ अंग्रेजी बल्कि फारसी और देवनागरी लिपि में भी उल्लेखित किया गया है। यह काम आज से लगभग 192 वर्ष पूर्व बेगम समरू ने किया था। बेगम समरू ने बाइबिल के हेम (स्तोत्र) को देवनागरी लिपि और फारसी में अनुवाद करवाकर इसे चर्च को भेंट किया था, ताकि अगर हिंदू और फारसी चर्च में जाते हैं तो उन्हें इसाईयों के धर्मग्रंथ के संदेश की व्यापकता की जानकारी हो सके।
बेगम समरू ने यह काम तब किया था, जब इस प्रोटेस्टेंट चर्च में केवल यूरोपीय सैन्य अफसरों और जवानों को ही प्रार्थना की अनुमति थी। यूरोपीय अधिकारी नीचे बेंचों पर बैठकर जबकि जवानों के लिए ऊपर खड़े होकर प्रार्थना की व्यवस्था थी। तब यह गैरीसन कैंट था। वर्ष 1904 में मेरठ छावनी में कैंट ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात कर्नल टीएन पार्कर ने मेरठ छावनी के बारे में लिखे गए इतिहास के बारे में इस बात का उल्लेख किया है कि जब 1822 में चर्च बनकर तैयार हुआ तो उसके कुछ वर्षों बाद ही बेगम समरू ने तोहफे के तौर पर इस चर्च को चार टैबलेट भेंट किए थे।

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यह उल्लेखनीय है कि बेगम समरू एक इसाई योद्धा से विवाह के बाद कैथलिक हो गई थीं, बावजूद इसके उन्होंने प्रोटेस्टेंट चर्च के लिए ये टैबलेट्स बनवाए। इनमें दो टैबलेट फारसी जबकि दो देवनागरी लिपि में हैं। ये चारों अब भी चर्च की उत्तरी और दक्षिणी दीवार पर लगे हुए हैं। यूरोपीय पर्यटकों के लिए यह आज भी कौतूहल का विषय बना हुआ है। अगर देवनागरी की लिपि को पढऩे की कोशिश करें तो काफी कुछ भले ही समझ में न आए, लेकिन वर्तमान की देवनागरी लिपि से कई शब्द मिलते-जुलते हैं और यह ईश्वर का उपदेश प्रतीत होता है।

यानी इन टैबलेट्स पर बाइबिल के हेम (स्तोत्र) लिखे हुए हैं। इनके कई ऐसे शब्दों की बनावट गुरमुखी जैसी भी है। इतिहासविद् डा. अमित पाठक कहते हैं कि संभवत्त उत्तर भारत के सबसे पुराने इस चर्च में देवनागरी लिपि में अंकित शब्द पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देवनागरी के सफरनामे की कडिय़ां भी जोड़ते हैं। इसके साथ ही फरसी में लिखे टैबलेट साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश देते हैं।

तीन साल में बना था यह चर्च
मेरठ छावनी में उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक इस चर्च का निर्माण 1819 में शुरू हुआ था और यह 1822 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया। इस चर्च में 200 वर्ष से भी पुरानी बाइबिल की पुस्तक और लकड़ी के बने पाइप ऑर्गन आज भी हैं। इतना ही नहीं, इस चर्च के निकट ही एक सेंट जोंस सीमेट्री है, जो 1810 से चल रही है। इस सीमेंट्री में आम लोगों के साथ ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान भारतीयों के हाथों मारे गए फिरंगियों को भी दफनाया गया था। उनकी कब्रें आज भी मिलती हैं।
 


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