'हम दोषों को नहीं देखेंगे तो उन्नति कैसे कर पाएंगे'
स्वयं को अच्छी प्रकार जानना चाहिए। दूसरों पर दोषारोपण ठीक नहीं है। कोई जन्म, कर्म से हीन क्यों न हो उसका उपहास नहीं करना चाहिए। चौ. चरण सिंह विवि के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित व्यास समारोह में तीसरे दिन पदम पुराण पर प्रतिभागियों ने वाद- विवाद यह बात कही।
मेरठ । स्वयं को अच्छी प्रकार जानना चाहिए। दूसरों पर दोषारोपण ठीक नहीं है। कोई जन्म, कर्म से हीन क्यों न हो उसका उपहास नहीं करना चाहिए। चौ. चरण सिंह विवि के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित व्यास समारोह में तीसरे दिन पदम पुराण पर प्रतिभागियों ने वाद- विवाद यह बात कही।
पक्ष में उदारेंद्र कुमार पाराशर ने कहा कि आत्मचिंतन से उन्नति की प्राप्ति हो सकती है। पक्ष में आरुषि वशिष्ठ ने कहा कि अल्बर्ट आइस्टीन जैसे वैज्ञानिक को भी लोगों ने कहा था कि वह कुछ कर नहीं सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने दोष को जानकर उसे दूर किया और एक महान वैज्ञानिक साबित हुए। विपक्ष में बोलते हुए इशिता फौजदार ने कहा कि यदि हम दोषों को नहीं देखेंगे तो उन्नति कैसे कर पाएंगे। मुख्य अतिथि डा. चंद्रशेखर मिश्र ने कहा कि धर्म, कर्म, आचार आदि सभी आवश्यक हैं। यदि हम स्वयं को जान गए तो सब कुछ जान गए। डा. द्वारिकानाथ त्रिपाठी ने व्यास समारोह की सराहना की। वाद - विवाद प्रतियोगिता में केएल इंटरनेशनल की आरूषि वशिष्ठ प्रथम, इशिता फौजदार दूसरे और आइआइएमटी के भवानींद्र कुमार पाराशर तीसरे स्थान पर रहे। सांत्वना पुरस्कार उदारेंद्र पाराशर को मिला। बाबूराम स्मारयित्री पर केएल इंटरनेशनल का कब्जा रहा। निर्णायक में डा. सरिता रस्तोगी, डा. अनीता अग्रवाल, सोबरन सिंह रहे। दूसरे सत्र में डा. विश्वनाथ स्वाई ने जीवन प्रबंधन पर शोध प्रस्तुत किया। डा. अरविंद कुमार तिवारी ने प्रयाग में स्नान करने, वहां विश्राम करने से होने वाले फल के विषय में बताया। डा.पूनम लखनपाल, डा. राजवीर, डा. संतोष कुमारी, डा. नरेंद्र कुमार, डा. अंजलि त्यागी, सविता, विनीता, पारुल, आशा, काजल भाटी, प्रवेश, शुभम, अनिका, राहुल आदि का सहयोग रहा।
मनमोहक दृश्य
तीसरे सत्र में एमए प्रथम सत्र के छात्र प्रदीप कुमार ने अर्जुन के स्त्रीत्व कथा को प्रस्तुत किया। इसमें दिखाया जाता है कि अर्जुन त्रिपुरी देवी की तपस्या करते हैं, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिपुरी देवी उन्हें सरोवर में ले जाती हैं। जिसमें स्नान करने के बाद अर्जुन स्त्रीवेश में बाहर निकलते हैं और स्त्रीत्व को अनुभव करते हुए अपने मूल स्वभाव को भूल जाते हैं। चौथे सत्र में संस्कृत में छात्र- छात्राओं ने कविता पाठ किया।