फिर अघोषित बंदी का शिकार हुआ उद्योग जगत
भोलेनाथ के जलाभिषेक से पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब सप्ताह भर की अघोषित नाकेबंदी लागू है।
मेरठ। भोलेनाथ के जलाभिषेक से पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब सप्ताह भर की अघोषित नाकेबंदी लागू है। पहले ही विभिन्न किस्म की बंदिशें झेल रहे गाजियाबाद-मेरठ-मुजफ्फरनगर, सहारनपुर के औद्योगिक क्षेत्र को इस बार भी करीब एक हजार करोड़ का फटका लगने के आसार हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी मेरठ इस बार भी अघोषित बंदी का शिकार है। कांवड़ यात्रा से पहले पश्चिम के जनपदों को बंदी से बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने तमाम दावे किए थे। यात्रा शुरू होते ही दावे हवाई हो गए। रास्तों का जाम, रूट डायवर्जन, आयात-निर्यात पर पाबंदी पूर्व वर्षो की तरह ही है। एनएच-58 पर बसे मुजफ्फरनगर से लेकर गाजियाबाद तक का पूरा इलाका करीब सप्ताह भर बंद रहता है। यहा की औद्योगिक इकाईयां भी उत्पादन बंदी का शिकार हैं। पश्चिम की इस पटटी में स्थित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उत्पाद बनाने वाली इकाईयां भी हैं। यहां बड़े स्तर पर आर्डर पर माल भी तैयार किया जाता है। कांवड़ यात्रा से लगे झटके ने आर्डर की आपूर्ति में तो देरी करा ही दी, साथ ही लघु और सूक्ष्म उद्योगों को भी तगड़ा झटका लगा है। उद्योगों पर तगड़ी मार
एक हफ्ते के लिए एनएच-58 बंद होने से वेस्ट यूपी के इस संभावनाशील क्षेत्र में बड़ा औद्योगिक नुकसान होगा। मेरठ में उद्योग को वर्तमान स्थिति को देखकर करीब 750 करोड़ का झटका लगेगा। खुदरा व्यापार को कितना नुकसान पहुंचता है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। मुजफ्फरनगर का स्टील और फर्नस उद्योग को भी 250 करोड़ की चपत का अनुमान है। लघु-सूक्ष्म के साथ खुदरा को भी फटका
बड़े उद्योगों के साथ लघु और सूक्ष्म को भी तगड़ा फटका लगा है। जिले में तीन हजार छोटी औद्योगिक इकाईयां है। इन इकाईयों में भी उत्पादन लगभग बंद हो चुका है। अनुमान के मुताबिक इन इकाईयों के बंद होने से 150 करोड़ का कारोबार प्रभावित होगा। ऐसे ही खुदरा कारोबार को भी 100 करोड़ से अधिक की चपत लगेगी। दूर हुई दिल्ली
एनसीआर की बड़ी आबादी दिल्ली में नौकरी करती है। अघोषित बंदी दिहाड़ी कामगारों की रोजी-रोटी पर संकट पैदा करती है। जिले के तमाम हिस्सों से दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा आदि के लिए बड़ी संख्या में निजी बसों का संचालन होता है। ऐसे ही मेरठ में उद्योगों के बंद होने से भी स्थानीय के साथ बाहरी कामगारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है। उद्यमियों ने खुद को किया तैयार
अब पश्चिम के उद्यमियों ने ही खुद को झटका सहने के लिए तैयार कर लिया है। उद्यमी मानते हैं कि कांवड़ यात्रा आस्था का प्रतीक है, ऐसे में इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। उद्यमियों ने कांवड़ यात्रा को देखते हुए पहले ही बड़े आर्डर की डिलीवरी कर दी, जबकि कुछ को कांवड़ यात्रा के बाद के लिए टाल दिया। कांवड़ ने दिया घूमने का मौका
कांवड़ यात्रा ने उद्यमियों को घूमने का मौका भी उपलब्ध कराया है। लगभग दस दिनों तक औद्योगिक इकाईयां बंद रहने के कारण वर्तमान में 25 प्रतिशत उद्यमी परिवार के साथ घूमने के लिए निकल गए हैं। विभिन्न उद्योगों से जुडे़ बाहर के 75 प्रतिशत कामगार भी घर चले गए हैं। बड़ी संख्या में कामगार हरिद्वार के लिए भी रवाना हुए हैं। जनपद की स्थित
बड़ी औद्योगिक इकाई - 1250
सात दिन में होगा प्रभाव - 750 करोड़
लघु औद्योगिक इकाई - 10 हजार
इकाईयों को होगा प्रभाव - 250 करोड़
सूक्ष्म औद्योगिक इकाईयां - 20 हजार
इकाईयों को होगा प्रभाव - 150 करोड़
खुदरा कारोबार पर प्रभाव - 100 करोड़
कामगारों की संख्या - 5 लाख इन्होंने कहा--
कांवड़ यात्रा से छोटे-बडे़ उद्योगों पर बड़ा प्रभाव हर बार पड़ता है। जनपद में ही हजार करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित होता है। सवाल आस्था का है। इस कारण उद्यमी भी पहले से ही कांवड़ के दौरान होने वाली दिक्कतों को लेकर तैयार रहते हैं।
संजीव मित्तल, डिवीजन चेयरमैन, आइआइए उद्योगों पर कांवड़ यात्रा का प्रभाव तो हर बार पड़ता है। आर्थिक रूप से नुकसान भी झेलना पड़ता है। अब उद्यमी ज्यादा परेशान नहीं होते। उद्यमी खुद को कांवड़ यात्रा से जोड़ लेते हैं और शिविर लगाकर शिव भक्तों की सेवा भी करते हैं।
सुरेंद्र प्रताप, संयोजक, चेंबर ऑफ कामर्स