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Independence Day 2022: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ दमदारी से डटी रहीं शामली की ज्ञान देवी

भारत छोड़ो आंदोलन में शामली शहर निवासी स्वतंत्रता सेनानी ज्ञानदेवी धीमान के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। पुलिस के दारोगा की यातनाएं देने पर भी स्वतंत्रता सेनानी बोलती रहीं वंदे मातरम। आंदोलन में भाग लेने पर हुई थी 21 हुई थी कैद की सजा।

By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2022 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2022 07:30 AM (IST)
Independence Day 2022: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ दमदारी से डटी रहीं शामली की ज्ञान देवी
स्वतंत्रता सेनानी ज्ञानदेवी धीमान के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

शामली, जागरण संवाददाता। जिले की महिलाओं ने आजादी में अमूल्य योगदान दिया है। इस आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामली शहर निवासी स्वतंत्रता सेनानी ज्ञानदेवी धीमान के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ज्ञान देवी पर पुलिस ने यातनाएं दी। पुलिस ने लाठियों से उनकी पिटाई की। यहीं नहीं सड़क पर घसीट-घसीटकर उन पर जुल्म किए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, बल्कि डटकर अंग्रेजों का मुकाबला किया।

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उत्साही स्वतंत्रता सेनानी थीं

साल 1902 में जन्मी जिला ज्ञानदेवी धीमान उत्साही स्वतंत्रता सेनानी थीं। वर्ष 1930 में हुए नमक सत्याग्रह में उन्हें पांच माह का कड़ा कारावास हुआ था, लेकिन इसके बाद वे लगातार देशभक्ति की राह पर आगे बढ़ती रही। साल 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें तीन माह की कैद हुई और 30 रुपये जुर्माना भी उन पर लगाया गया था। वहीं 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें 21 माह की कैद की सजा सुनाई गई। स्वतंत्रता आजादी के आंदोलन के साथियों के साथ मिलकर ज्ञानदेवी शामली कोतवाली में तिरंगा फहराने पहुंच गईं थीं। वहां तैनात दरोगा असलम ने इसका विरोध किया। उस जालिम ने ज्ञान देवी व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों पर खूब लाठियां बरसाई गईं। उन्हें सड़क पर गिराकर दूर तक घसीटा गया, लेकिन इसके बाद भी ज्ञानदेवी वंदेमातरम का ही नारा लगाती रही।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजदीकी रही ज्ञान देवी

शामली शहर के धीामनपुरा फाटक के निकट ज्ञानदेवी के पौत्र उदयपाल धीमान व प्रपोत्र सौहेल धीमान अपने परिवार के साथ रहते है। दादी ज्ञानदेवी धीमान को मिले ताम्र पत्र व उनके चित्रों को देखकर आज भी गर्व करते है। वे बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से ज्ञान देवी के बेहद नजदीकी संबंध रहे। प्रयागराज की नैनी जेल में भी उन्हें रखा गया था। पूर्व पंडित जवाहर लाल नेहरू भी उनकी हिम्मत, जज्बे की खूब तारीफ किया करते थे। इंदिरा गांधी का उन्हें दिया ताम्र पत्र आज भी परिवार के पास सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि परदादा प्यारेलाल भी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।

शिलापट पर लिखी है संघर्ष की कहानी

शहर के सहारनपुर तिराहा स्थित पार्क में स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाली ज्ञान देवी की प्रतिमा लगी है। इस प्रतिमा के नीचे लिखे शिलापट्ट पर आजादी के आंदोलन में किए उनके संघर्ष की कहानी भी लिखी है। यह प्रतिमा आज की युवा पीढ़ी को देशभक्ति के लिए प्रेरित करती है।


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