यहां मौजूद है INA का नामांकन रजिस्टर, आजादी का संदेश देकर गए थे नेताजी सुभाष
आइएनए का नामांकन रजिस्टर मेरठ में है। इसे मेरठ कॉलेज प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष जेके अग्रवाल ने संजोकर रखा है। रजिस्टर में फौज के अधिकारियों के नाम, रैंक व अन्य ब्योरा है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 12:34 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 01:12 PM (IST)
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबाने वाली आजाद हिंद फौज (आइएनए) के नायक सुभाष चंद्र बोस का मेरठ से एक और रिश्ता है। आइएनए का नामांकन रजिस्टर मेरठ में है और इसे संरक्षित रखा है मेरठ कॉलेज प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष जेके अग्रवाल ने। रजिस्टर में फौज के अधिकारियों का नाम, रैंक व यूनिट के साथ गांव-पता और सेंटर ऑफ रिपोर्ट आदि सिलसिलेवार दर्ज हैं। दरअसल, आइएनए में कर्नल रहे गुरबख्श सिंह ढिल्लों, जेके अग्रवाल को अपना मुंहबोला बेटा मानते थे। कर्नल ढिल्लों ने अपनी आत्मकथा (फ्रॉम माई बोंस) में नेताजी और आइएनए के बारे में तफ्सील से लिखा है। यह आत्मकथा भी कर्नल ढिल्लों ने मेरठ में रहते लिखी थी।
शिक्षित करने की थी ख्वाहिश
‘दैनिक जागरण’ को आइएनए का एनरोलमेंट रजिस्टर दिखाते हुए जेके अग्रवाल बताते हैं कि कर्नल ढिल्लों से उनकी पहली मुलाकात 80 के दशक के शुरू में मेरठ में हुई थी। इसके बाद 25 साल तक लगातार कर्नल ढिल्लों का उनके यहां आना-जाना लगा रहा। कई बार तो ऐसा हुआ कि कर्नल ढिल्लों दीवाली पर आए और होली पर यहां से वापस लौटे। उन दिनों कर्नल ढिल्लों अक्सर बताया करते थे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ख्वाहिश आजादी के बाद देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में शिक्षित करने की थी। नेताजी का मानना था-यदि इतने वर्षो से गुलामी ङोल रहे लोगों पर लोकतांत्रिक शासन थोपा गया तो दो रुपये में चपरासी और एक शराब की बोतल में अधिकारी बिका करेंगे।
नेताजी थे आजाद हिंद फौज के संस्थापक
नेताजी ने आजाद हिंद फौज के गठन के बाद अपने सिपाहियों में ‘दिल्ली चलो’ नारे से ऐसा जोश भरा कि आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना के पसीने छूट गए थे। वहीं, आइएनए के पास लकड़ी की पुरानी बंदूकें और गिने-चुने कारतूस ही हुआ करते थे। बर्मा के मोर्चे पर आइएनए से लड़ रहे ब्रिटिश सेना के मेजर जनरल विलियम विल स्लिम ने इसे दूसरे विश्व युद्ध से भी खतरनाक युद्ध बताया था। जनरल स्लिम ने आइएनए के सैनिकों और अधिकारियों के अदम्य साहस के बारे में अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा है।
1941 में मेरठ आए थे नेताजी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस 1941 में मेरठ आए थे। टाउन हॉल में लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था-जल्द ही ब्रितानियों को भारत छोड़कर भागना होगा और देश आजाद हो जाएगा। उनकी इस बात पर काफी देर तक लोग तालियां बजती रहीं। मेरठ में नेताजी के इस भाषण से ही लोगों को लगने लगा कि अब आजादी दूर नहीं। इतिहासविद प्रो. केडी शर्मा कहते हैं कि नेताजी का भाषण सुनने के बाद काफी लोग आजाद हिंद फौज से भी जुड़े। टाउन हाल के बाद नेताजी राजकीय इंटर कॉलेज गए थे। उन्होंने बेगमबाग के मैदान में भी बैठक की। नेताजी रात में पंडित प्यारेलाल शर्मा के यहां रुके और भोजन भी किया। मेरठ के राजकीय संग्रहालय में नेताजी की कई तस्वीरें हैं, जो उनके विराट व्यक्तित्व को दर्शाती हैं।
श्याम लाल जैन की गवाही की होती है चर्चा
नेताजी के संबंध में गठित खोसला आयोग की जब भी चर्चा होती है तो साथ में मेरठ के श्याम लाल जैन की गवाही का भी जिक्र होता है। दरअसल, श्याम लाल जैन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के टाइपिस्ट थे। नेताजी पर जितनी भी किताबें लिखी गईं, उनमें श्यामलाल जैन का भी उल्लेख मिलता है। केडी शर्मा बताते हैं कि जैन ने अपनी गवाही में कहा था कि-एक दिन नेहरू ने कागज पर लिखा कोई मैटर उन्हें टाइप करने को कहा था। कागज पर लिखा था-‘23 अगस्त 1945 को बोस सागोन से विमान द्वारा रवाना हुए थे। दोपहर 1.30 बजे मंचूरिया पहुंच गए थे। वहां से उन्हें कुछ साथियों के साथ रूस की सीमा में प्रवेश करते देखा गया’। नेताजी की आजाद हिंद फौज के पहले सांसद भी मेरठ से जुड़े शाहनवाज खान थे। नेहरू ने जब पहली बार नेताजी को लेकर जांच आयोग गठित किया था, तो उसमें भी शाहनवाज को प्रमुख बनाया था।
उनकी यादें न भूल पाए
नेताजी की यादें आज भी मेरठ में हैं। शहर की पहचान देने वाला घंटाघर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है। चौ. चरण सिंह विवि का नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गवाह बना है।
शिक्षित करने की थी ख्वाहिश
‘दैनिक जागरण’ को आइएनए का एनरोलमेंट रजिस्टर दिखाते हुए जेके अग्रवाल बताते हैं कि कर्नल ढिल्लों से उनकी पहली मुलाकात 80 के दशक के शुरू में मेरठ में हुई थी। इसके बाद 25 साल तक लगातार कर्नल ढिल्लों का उनके यहां आना-जाना लगा रहा। कई बार तो ऐसा हुआ कि कर्नल ढिल्लों दीवाली पर आए और होली पर यहां से वापस लौटे। उन दिनों कर्नल ढिल्लों अक्सर बताया करते थे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ख्वाहिश आजादी के बाद देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में शिक्षित करने की थी। नेताजी का मानना था-यदि इतने वर्षो से गुलामी ङोल रहे लोगों पर लोकतांत्रिक शासन थोपा गया तो दो रुपये में चपरासी और एक शराब की बोतल में अधिकारी बिका करेंगे।
नेताजी थे आजाद हिंद फौज के संस्थापक
नेताजी ने आजाद हिंद फौज के गठन के बाद अपने सिपाहियों में ‘दिल्ली चलो’ नारे से ऐसा जोश भरा कि आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना के पसीने छूट गए थे। वहीं, आइएनए के पास लकड़ी की पुरानी बंदूकें और गिने-चुने कारतूस ही हुआ करते थे। बर्मा के मोर्चे पर आइएनए से लड़ रहे ब्रिटिश सेना के मेजर जनरल विलियम विल स्लिम ने इसे दूसरे विश्व युद्ध से भी खतरनाक युद्ध बताया था। जनरल स्लिम ने आइएनए के सैनिकों और अधिकारियों के अदम्य साहस के बारे में अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा है।
1941 में मेरठ आए थे नेताजी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस 1941 में मेरठ आए थे। टाउन हॉल में लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था-जल्द ही ब्रितानियों को भारत छोड़कर भागना होगा और देश आजाद हो जाएगा। उनकी इस बात पर काफी देर तक लोग तालियां बजती रहीं। मेरठ में नेताजी के इस भाषण से ही लोगों को लगने लगा कि अब आजादी दूर नहीं। इतिहासविद प्रो. केडी शर्मा कहते हैं कि नेताजी का भाषण सुनने के बाद काफी लोग आजाद हिंद फौज से भी जुड़े। टाउन हाल के बाद नेताजी राजकीय इंटर कॉलेज गए थे। उन्होंने बेगमबाग के मैदान में भी बैठक की। नेताजी रात में पंडित प्यारेलाल शर्मा के यहां रुके और भोजन भी किया। मेरठ के राजकीय संग्रहालय में नेताजी की कई तस्वीरें हैं, जो उनके विराट व्यक्तित्व को दर्शाती हैं।
श्याम लाल जैन की गवाही की होती है चर्चा
नेताजी के संबंध में गठित खोसला आयोग की जब भी चर्चा होती है तो साथ में मेरठ के श्याम लाल जैन की गवाही का भी जिक्र होता है। दरअसल, श्याम लाल जैन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के टाइपिस्ट थे। नेताजी पर जितनी भी किताबें लिखी गईं, उनमें श्यामलाल जैन का भी उल्लेख मिलता है। केडी शर्मा बताते हैं कि जैन ने अपनी गवाही में कहा था कि-एक दिन नेहरू ने कागज पर लिखा कोई मैटर उन्हें टाइप करने को कहा था। कागज पर लिखा था-‘23 अगस्त 1945 को बोस सागोन से विमान द्वारा रवाना हुए थे। दोपहर 1.30 बजे मंचूरिया पहुंच गए थे। वहां से उन्हें कुछ साथियों के साथ रूस की सीमा में प्रवेश करते देखा गया’। नेताजी की आजाद हिंद फौज के पहले सांसद भी मेरठ से जुड़े शाहनवाज खान थे। नेहरू ने जब पहली बार नेताजी को लेकर जांच आयोग गठित किया था, तो उसमें भी शाहनवाज को प्रमुख बनाया था।
उनकी यादें न भूल पाए
नेताजी की यादें आज भी मेरठ में हैं। शहर की पहचान देने वाला घंटाघर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है। चौ. चरण सिंह विवि का नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गवाह बना है।
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