मेरठ में 11 सौ स्कूली वाहन, 630 की जांच, 48 मानकों पर खरे
मानकों को ताक पर रखकर चल रहे स्कूली वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
मेरठ। कुशीनगर में मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर स्कूली बस के ट्रेन की चपेट में आने से 13 बच्चों की मौत के बाद भी स्थानीय परिवहन अधिकारी चैन की नींद सो रहे हैं। पिछले दिनों स्कूली वाहनों की फिटनेस चेकिंग अभियान में अधिकांश वाहन पहुंचे ही नहीं। आरटीओ मेरठ द्वारा केवल 48 वाहनों को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
पिछले दो रविवार को आरटीओ द्वारा साकेत स्थित आइटीआइ में स्कूली वाहनों की फिटनेस जांच का कैंप आयोजित किया गया था। इसमें केवल 630 स्कूली वाहन जांच के लिए पहुंचे। इक्का दुक्का वाहनों को छोड़ दें तो कोई भी वाहन सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन पर खरा नहीं उतरा। केवल 48 वाहनों को एनओसी जारी की गई है। दो तिहाई स्कूलों के वाहन जांच के लिए पहुंचे ही नहीं
आरटीओ मेरठ में 11 सौ वाहन स्कूली बच्चों को लाने ले जाने के लिए रजिस्टर्ड हैं। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सैकड़ों की संख्या में वाहन बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं। दौराला, मोदीपुरम, मवाना, सरधना और शहर के बाहरी स्कूलों में गांवों से बच्चों को लाने ले जाने वाले वाहन अपनी समय सीमा पूरी कर चुके हैं। वहीं, ई रिक्शा, रिजेक्टेड टेंपो या अन्य वाहन भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
उप परिवहन आयुक्त संजय माथुर ने बताया कि जिन स्कूलों ने वाहन की जांच नहीं कराई है, उन्हें एक सप्ताह में जांच कराने का नोटिस दिया गया है। बिना फिटनेस के चल रहे वाहनों को सीज करने की कार्रवाई की जा रही है। शुक्रवार को भी चार स्कूली वाहन सीज किए गए। यह हैं स्कूली बसों के मानक
- बस की रफ्तार चालीस किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- मेडिकल किट होनी चाहिए
- चलती स्कूल बस में बच्चों को खड़ा नहीं होना चाहिए। इसके लिए बस में शिक्षिका का होना जरूरी है।
- बस में दो आपातकालीन दरवाजे होने चाहिए।
- हर स्कूल बस का रंग पीला होना चाहिए।
- बस के आगे और पीछे 'स्कूल आन ड्यूटी' जरूर लिखा होना चाहिए।
- बस के पीछे भी स्कूल का नाम और पता लिखा होना चाहिए। बस चालक के लिए नियम
- चालक को कम से कम पांच साल का गाड़ी चलाने का अनुभव हो।
- चालक शिक्षित और वर्दी में होना चाहिए, कमीज पर नाम लिखा हो। अंतरराष्ट्रीय मानकों में सीट बेल्ट जरूरी
स्कूली बसों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो नियम बने हैं उनमें हर सीट पर बैठने वाले बच्चे के लिए सीट बेल्ट की अनिवार्यता है। यह नियम अभी भारत में नहीं है। सीट बेल्ट के प्रावधान से बच्चों के हताहत होने की संभावना कम हो जाती है।