अब मोक्ष के द्वार पर पहुंचेंगी अस्थियां, हरिद्वार में बंद था अस्थि विसर्जन Saharnpur News
अस्थियों के विर्सजन की अनुमति मिलते ही लॉकरों में बंद रखी गई प्रियजनों की अस्थियां को बाहर निकालकर हरिद्वार उद्धार के लिए लाया जा रहा है। पावंदी के समय इन अस्थियों को लॉकर में रखा
सहारनपुर, [हेमंत मित्तल]। वैश्विक महामारी कोरोना से आमजन की जीवन शैली ही नहीं बदली, बल्कि इसने मृत्यु उपरांत होने वाले संस्कारों को भी प्रभावित किया है। लॉकडाउन के बीच हरिद्वार में अस्थि विसर्जन पर रोक के चलते सैकड़ों प्रियजनों की अस्थियों को पावन गंगा की धारा का इंतजार था। अब यह बंदिश हटी है तो लॉकर से निकलकर उनके 'उद्धार' का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
सनातन धर्म में जीवन लीला समाप्त होने के पश्चात देह अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है। तीसरे दिन अस्थियों को पवित्र नदी में विसर्जित करने की परंपरा है। सहारनपुर से हरिद्वार की दूरी काफी कम है। इसके चलते ज्यादातर लोग अस्थियों का विसर्जन हरिद्वार में ही करते हैं। कोरोना लॉकडाउन में सुरक्षा और एहतियात की दृष्टि से हरिद्वार में इस परंपरा पर रोक लगा दी गई थी, ताकि भीड़ जुटने से संक्रमण का खतरा न रहे।
अच्छी बात यह है कि उत्तराखंड सरकार ने अब अस्थियों के विसर्जन के लिए इजाजत दे दी है। अब लॉकडाउन में ऐसे वाहनों को आने की अनुमति मिल जाएगी, जो अपने प्रियजनों की अस्थियों का विसर्जन करने हरिद्वार जाना चाहते हैं। शर्त यह है कि ड्राइवर के साथ परिवार के केवल दो सदस्य ही चार पहिया वाहन में एक साथ जा सकते हैं।
पिता की अस्थियां अब होंगी प्रवाहित
नुमाइश कैंप के रहने वाले वीरेंद्र लखन पाल की मृत्यु एक मई को हुई थी। उनके बेटे दीपक लखन पाल का कहना है कि तब से उनके पिता की अस्थियां नुमाइश कैंप स्थित श्मशान घाट के लॉकर में रखी हैं। यह खबर बहुत राहत देने वाली है कि हरिद्वार जा सकेंगे और पिता की अस्थियों को मोक्ष दायिनी गंगा में प्रवाहित कर सकेंगे।
भर चुके हैं लॉकर
सहारनपुर के प्रमुख श्मशान घाटों में बने लॉकर मृतकों की अस्थियों से भर चुके हैं। हाल यह है कि अब अस्थियों को लॉकरों से अलग रखना पड़ रहा है। नुमाइश कैंप श्मशान घाट में 28 लॉकर है। यहां 32 लोगों की अस्थियां रखी हैं। ऐसा ही हाल अंबाला रोड स्थित श्मशान घाट का है। वहां पर भी 30 अस्थियों को विसर्जन का इंतजार है। यही हाल हकीकत नगर स्थित श्मशान घाट का भी है। यहां के लॉकर भर चुके हैं।
पंडित राघव पांडेय ने कहा कि शास्त्रों में वर्णित है कि अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से दिवंगत आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। पतित पावनी गंगा का महत्व भी शास्त्रों में वर्णित है, इसलिए इसका दर्जा मां के बराबर दिया गया है।