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प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना है तो सीख लीजिये 'पुरानी हिदी'

हिदी और संस्कृत से पहले लोग प्राकृत भाषा बोलते थे। आज इसे भूल गए हैं। जैन और अन्य तमाम धर्मग्रंथ इसी भाषा में लिखे गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 08 Oct 2019 07:00 AM (IST)
प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना है तो सीख लीजिये 'पुरानी हिदी'
प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना है तो सीख लीजिये 'पुरानी हिदी'

मेरठ,जेएनएन। हिदी और संस्कृत से पहले लोग प्राकृत भाषा बोलते थे। आज इसे भूल गए हैं। जैन और अन्य तमाम धर्मग्रंथ इसी भाषा में लिखे गए हैं। भाषा के ज्ञान के अभाव में लोग न तो उन्हें खुद से पढ़ पाते हैं और न ही उनका संदेश समझ पाते हैं। जैन समाज के प्रमुख संत आचार्य विद्या सागर जी महाराज के परम शिष्य प्रणम्य सागर जी महाराज इस पुरानी हिदी को संजीवनी देने में जुटे हैं। वे जिस शहर में जाते हैं वहीं प्राकृत भाषा की क्लास शुरू हो जाती है। अब ऑनलाइन क्लास के जरिये भारत समेत कई देशों के हजारों लोग प्राकृत भाषा सीख रहे हैं।

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प्राकृत हमारी दादी मां, संस्कृत पितामह

जैन संत प्रणम्य सागर महाराज ने प्राकृत भाषा का पाठ्यक्रम चार पुस्तकों में तैयार किया है। इनमें उन्होंने प्राकृत भाषा (पुरानी हिदी) का परिचय देते हुए कहा है कि प्राकृत हमारी दादी मां हैं, संस्कृत पितामह। हिदी हमारी मां है, अपभ्रंश हमारा पिता और अंग्रेजी हमारी पत्नी है। जैनमुनि का कहना है कि प्राकृत मूल भाषा है। भारत में प्रादेशिक भाषाओं में प्राकृत भाषा के शब्द सुने जाते हैं। समाज में आज एक ओर भौतिक और वैज्ञानिक संपन्नता का दिग्दर्शन हो रहा है, वहीं मानव अशांत होकर कर्तव्यों और मूल्यों से विमुख होता जा रहा है। सही मार्ग पर ग्रंथ ला सकते हैं और वे प्राकृत भाषा में लिखे हैं।

दो साल से चल रहीं क्लास

प्रणम्य सागर महाराज ने वर्ष 2017 में रेवाड़ी चातुर्मास के दौरान प्राकृत भाषा की कक्षा शुरू की। वहां अब दो स्थानों पर कक्षा चल रही है, जिसमें 100 से ज्यादा शिक्षार्थी हैं। एक जनवरी 2019 से ऑनलाइन कक्षा शुरू की गई। यह पाठशाला 9 वाट्सएप ग्रुपों के माध्यम से चलती है। कुछ समय में ही भारत के साथ-साथ यूएसए, जापान, लंदन, श्रीलंका, स्विटजरलैंड समेत दर्जनों देशों में रह रहे दो हजार से ज्यादा लोग इससे जुड़ गए। कक्षा से स्थानक और श्वेतांबर संप्रदाय के लोग भी जुड़े हैं। प्रत्येक कक्षा में दो शिक्षक हैं। अगस्त में पहली परीक्षा, 13 को दीक्षा

प्राकृत भाषा के शिक्षण का केंद्र रेवाड़ी बना है। डॉ. अजेश जैन शास्त्री और नेहा जैन यहीं से ऑनलाइन और ऑफलाइन क्लास का संचालन कर रहे हैं। दोनों ने बताया कि 25 अगस्त को देशभर में 32 केंद्रों पर प्राकृत भाषा की ऑफलाइन परीक्षा हुई, जिसमें शामिल हुए देश-विदेश के शिक्षार्थियों का 13 अक्टूबर को मेरठ के होटल डी रोजेज में दीक्षा कार्यक्रम है। वैकल्पिक भाषा के रूप में कराएं अध्ययन

प्रणम्य सागर महाराज ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और संस्कृति मंत्रालय को पत्र भेजकर प्राकृत भाषा को वैकल्पिक भाषा के रूप में अध्ययन की स्वीकृति प्रदान करने की मांग की है। उन्होंने बताया है कि एसओएएस लंदन यूनिवर्सिटी में आज भी प्राकृत भाषा का अध्ययन कराया जाता है।


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