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Mother's Day: तू है तो अंधेरे पथ में हमें सूरज की जरूरत क्या होगी

बच्चों की परवरिश से लेकर उन्हें मुकाम तक पहुंचाने में मां की भूमिका अहम होती है। अब मां न सिर्फ खुद मुकाम हासिल कर रही हैं बल्कि अपनी बहू-बेटी और बेटों को भी आत्‍मनिर्भर बना रही

By Edited By: Published: Sun, 12 May 2019 04:00 AM (IST)Updated: Sun, 12 May 2019 04:00 AM (IST)
Mother's Day: तू है तो अंधेरे पथ में हमें सूरज की जरूरत क्या होगी
Mother's Day: तू है तो अंधेरे पथ में हमें सूरज की जरूरत क्या होगी

मेरठ, जेएनएन। बच्चों की परवरिश से लेकर उन्हें मुकाम तक पहुंचाने में मां की भूमिका अहम होती है। लेकिन कुछ मां ऐसी भी हैं जिन्होंने न सिर्फ खुद मुकाम हासिल किया, बल्कि अपनी बहू-बेटी और बेटों को भी उनकी पसंद और उन्हें फ्रीडम का अहसास करवाते हुए उनकी मंजिल तक पहुंचाया। आज न सिर्फ वह स्वयं एक ऊंचे मुकाम पर बैठी हैं, बल्कि बच्चों को भी समय-समय पर गाइड करती रहती हैं। मदर्स-डे के अवसर पर दैनिक जागरण की टीम से शहर की कुछ चुनिंदा माताओं और उनके बच्चों ने अपने जज्बात साझा किए...।
थ्री 'के' ही बन गई पहचान
बेटे-बेटी को मुकाम तक पहुंचाने के लिए तो हर मां प्रयास करती है, लेकिन बहू को बेटी मानकर उन्हें पढऩे और करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं। डा. किरण प्रदीप ने शादी के बाद पीएचडी कर शिक्षा और चित्रकला के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। आज सभी उनकी प्रतिभा के कायल हैं। डा. किरण ने न सिर्फ बेटी कृतिका को उसकी रुचि के अनुसार दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करवाया। बल्कि तीन माह पहले ही घर आई बहू कनिका को भी सीए की पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया। कनिका पूरी स्वतंत्रता के साथ अपनी सीए की पढ़ाई और एक शिक्षण संस्था में कॉर्डिनेटर की जॉब कर रही हैं। तभी तो आज लोग सास-बहू और बेटी को थ्री 'के' के नाम से पुकारने लगे हैं।
सास मॉडलिंग तो बहू संभाल रही है बिजनेस
45 साल की उम्र में मॉडलिंग और फिल्म जगत में कदम रखने वाली मोनिका कोहली के लिए बॉलीवुड की राह आसान नहीं थी। वहां फिल्म में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था। लेकिन मोनिका कोहली ने परिवार वालों की यह सोच बदल दी और आगे चलकर उनकी सास संयोगिता कोहली ने मां की तरह उनका पूरा साथ दिया। ऐसे ही मोनिका के घर जब विनिता बहू बनकर आई तो उन्होंने उसे बेटी की तरह माना और उसे काम करने की पूरी आजादी दी। आज विनिता घर ही नहीं, बल्कि गारमेंट का पूरा बिजनेस खुद संभालती हैं और सास-बहू की यह जोड़ी अब औरों के लिए भी एक मिसाल बन गई है।
पहले खुद को संभाला, अब बना रही हैं बच्चों का भविष्य
डा. मधु सिंह बीएससी कर रही थीं, जब उनकी शादी हुई। कुछ ही समय बाद हालात ऐसे बिगड़े की डा. मधु का तलाक हो गया। ऐसे में खुद का भविष्य और बच्चों की जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं था। लेकिन मां ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया और तलाक के बाद मधु ने बीएड, एमफिल में टॉप कर जेआरएफ और पीएचडी कर न सिर्फ अपना भविष्य संवारा, बल्कि आज उनका बेटा निशांत दिल्ली विवि से ग्रेजूएशन और बेटी प्रिया ने 92 फीसद अंक प्राप्त कर 12वीं उत्तीर्ण की है। प्रिया इंटीरियर डिजाइनर बनना चाहती हैं, मधू कहती हैं कि बेटियों के लिए आजादी जरूरी है, जिससे वह जीवन के निर्णय स्वयं ले सकें।

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घर गिरवी रख बेटी को पढ़ाई के लिए भेजा अमेरिका, अब बेटी कर रही मां का सपना साकार
मां ने शादी के बाद अपनी मंजिल हासिल की। उसके बाद बेटी को अमेरिका भेजकर न सिर्फ मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल कराई, बल्कि बेटी अब वहां नौकरी भी कर रही है। डा. नीरा तोमर ने शादी के बाद बीए के बाद बीएड, एमए एमएड, एमफिल और पीएचडी की। आज वह एक सरकारी स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य कर रही हैं और बेटियों का भविष्य संवार रही हैं। बल्कि उन्होंने दस बेटियों को गोद भी ले रखा है, जिनकी पढ़ाई का खर्च वह स्वयं उठाती हैं। वहीं उन्होंने अपना घर तक गिरवी रखकर बेटी अंजलि को अमेरिका पढऩे भेजा और उसे अपने पैरों पर खड़ा किया, नीरा तोमर का एक ही सपना था कि बेटी भी उन्हीं की तरह एक मुकाम हासिल कर उनका नाम रोशन करे।
मां की प्रेरणा ने बदल दी जीवन की राह
मां उस कुम्हार की तरह होती है, जो जैसे चाहे बच्चों के भविष्य को संवार सकती है। मां विमला को घर और आसपास के पार्क में पौधे लगाते देख कब सावन कन्नौजिया ने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया, उन्हें भी नहीं पता चला। हाल ही में 12वीं पास करने वाले सावन 18 युवाओं की टीम लेकर पिछले कुछ सालों से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। सावन कहते हैं कि मां घर के आसपास पौधे लगती थी तो मैं हमेशा उनकी मदद करता था। आज अपनी टीम के साथ फाजलपुर रोड पर पंक्षियों के लिए सकोरे रखने से लेकर घड़ौली के स्कूलों में पौधरोपण, शहर के पार्क में पौधे लगाने के अलावा सावन कई बार अपनी टीम के साथ काली नदी की साफ सफाई तक कर चुके हैं। सावन कहते हैं कि शहर को प्र्रदूषण मुक्त करना ही उनका सपना है।

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