अफसर मनमानी छोड़ें तो देर नहीं लगेगी मेरठ को चमन बनने में
वर्ष 2009 से कूड़ा निस्तारण के प्रयास परवान नहीं चढ़ पा रहे हैं। पिछले तीन सालों से कूड़े से सीएनजी का प्रोजेक्ट निगम में ठिकाना तलाश रहा है।
अनुज शर्मा, मेरठ
यह क्रांतिधरा का दुर्भाग्य है। पिछले एक दशक में शहर की सबसे गंभीर समस्या के समाधान के लिए किसी अधिकारी ने प्रयास नहीं किया। शहर में कूड़े के पहाड़ 20 लाख जनता के लिए तो मुसीबत बने हुए ही हैं, देश में शहर की छवि भी धूमिल कर रहे हैं। बसने योग्य बेहतर शहरों के सर्वे में भी कूड़ा ही शहर की फजीहत का सबसे बड़ा कारण बना। वर्ष 2009 से कूड़ा निस्तारण के प्रयास परवान नहीं चढ़ पा रहे हैं। पिछले तीन सालों से कूड़े से सीएनजी का प्रोजेक्ट निगम में ठिकाना तलाश रहा है। कूड़े से अटा शहर, गांवों की हालत बदतर
मेरठ शहर में आबादी के साथ कूड़े की मात्रा हर रोज बढ़ रही है। फिलहाल शहर में रोजाना 900 टन निकल रहा है। निगम के पास समस्त कूड़े को शहर से बाहर ले जाने के लिए पर्याप्त संसाधन ही नहीं हैं। नतीजा कूड़ा गलियों और नाले-नालियों में भरा रहता है। दूसरी ओर निस्तारण नहीं होने से शहर में कूड़े के पहाड़ खड़े हो गए हैं। आसपास के गांव और आबादी भी बदहाल है। वर्ष 2016 तक किला रोड पर गांवड़ी में बने डंपिंग ग्राउंड पर कूड़ा डाला गया। यहां लगभग 20 लाख टन कूड़ा जमा है। दिल्ली रोड पर मंगतपुरम में आठ लाख टन कूड़ा है। हापुड़ रोड पर लोहियानगर डंपिंग ग्राउंड तथा गढ़ रोड पर नई सड़क के मोड़ पर स्थित नगर निगम की भूमि पर बने कूड़ाघर की भी यही स्थिति है। कंकरखेड़ा के गोलाबढ़ में भी कूड़े के ढेर लगे हैं। फैल रही बीमारियां, जनता ने उठाया झंडा
डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहने वाले लोग दुर्गध, 24 घंटे उठते धुएं और बीमारियों से परेशान हैं। उन्होंने मोर्चा खोल दिया है। गांवड़ी में तो दो साल से कूड़ा डालना बंद कर दिया गया है। मंगतपुरम से कूड़ा हटाने का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। नगर आयुक्त अवमानना में फंसे हैं। लोहियानगर में भी भी पिछले कई दिनों से कूड़ा डालना बंद है। नई सड़क पर जनता सड़कों पर है। कंकरखेड़ा में रोजाना निगम के वाहनों को जनता वापस भेज रही है। अफसर ही नहीं चाहते कूड़ा निस्तारण
शहर में कूड़ा निस्तारण की कवायद वर्ष 2009 में केंद्र सरकार के जेएनएनयूआरएम (जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी सुधार मिशन) से शुरू हुई थी। 220 करोड़ के प्रोजेक्ट में घर घर से कूड़ा कलेक्शन और उसे गांवड़ी तक ले जाकर वहां कूड़े से बिजली बनाना शामिल था। योजना केंद्र सरकार की प्राथमिकता में थी। पैसा भी मिला और काम भी शुरू हुआ। कुछ दिनों बाद ही विवाद खड़ा हुआ और काम बंद हो गया। एजेंसी ने अफसरों पर तमाम आरोप लगाए और काम छोड़कर चली गई। वर्तमान में भी ट्रिब्यूनल में इस विवाद की सुनवाई चल रही है। तीन साल से लावारिस घूम रहा
है कूड़ा निस्तारण प्रोजेक्ट
पूर्व महापौर हरिकांत अहलूवालिया के कार्यकाल में निगम बोर्ड ने कूड़ा निस्तारण को प्राथमिकता पर लिया। एजेंसियों से प्रस्ताव मांगे गये। तत्कालीन मंडलायुक्त आलोक सिन्हा के प्रयास से सोलापुर महाराष्ट्र में कूड़े से बिजली बनाने वाली एजेंसी आर्गेनिक रिसाइक्लिंग सिस्टम प्रा. लि. ने 800 टन क्षमता का प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया। उसने निगम से लीज पर 10 एकड़ जमीन और साइट पर कूड़ा पहुंचाने की मांग रखी। प्रोजेक्ट को बड़ी तत्परता के साथ स्वीकृति दे दी गई। तत्कालीन मंडलायुक्त और निगम बोर्ड की सक्रियता के चलते तमाम प्रक्रिया पूरी कर ली गई। एक जनवरी 2017 को गांवड़ी में कूड़ा निस्तारण प्लांट का शिलान्यास भी दिया गया। उसके बाद यह प्रोजेक्ट अफसरों की मनमानी की भेंट चढ़ गया। शिलान्यास के 20 महीने बाद तक भी प्रोजेक्ट धरातल पर नहीं आ सका। बार बार लगने वाली आपत्तियों से एजेंसी के अधिकारी निराश हैं। अभी कई महीने का सफर
इस प्रोजेक्ट को प्रदेश सरकार की तकनीकी संस्था आरसीयूईएस (रीजनल सेंटर फॉर अरबन एंड एनवायरमेंटल स्टडीज) से हरी झंडी मिलने के बाद प्रदेश की हाईपावर कमेटी के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया है। यहां से स्वीकृति मिलने पर इसे केंद्र सरकार के पास वित्तीय सहायता के लिए भेजा जाएगा। हाल फिलहाल प्लांट स्थापना का काम शुरू होने की उम्मीद नहीं है।
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अफसर किसी से नहीं डरते
कूड़े को लेकर शहर में हर ओर हाहाकार मचा है। जनता बीमार हो रही है। सरकार भी खासी चिंतित है। इसके बावजूद अधिकारी मनमानी पर उतारू हैं। आम लोग कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर नगर आयुक्त के खिलाफ अवमानना का केस भी चल रहा है। इसके बाद भी कूड़े को लेकर अफसर गंभीर नहीं हैं।
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न ऑफिस बैठूंगा न बात करूंगा
अफसरों की मनमानी का नजारा देखना है तो आप नगर निगम आइए। नगर आयुक्त मनोज कुमार चौहान ने जैसे जनता से न मिलने की कसम खा रखी है। वह महीने महीने भर ऑफिस नहीं आ रहे हैं। घर में ही अफसरों-कर्मियों को बुलाकर डयूटी कर रहे हैं। इससे भी गंभीर बात वे जनता की सुनवाई के लिए मिले सीयूजी मोबाइल को भी अटेंड नहीं करते। उनकी इस आदत से मंडलीय अफसरों के साथ साथ शासन के अधिकारी भी परेशान हैं।
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इन्होंने कहा..
कूड़ा निस्तारण बेहद जरूरी है। पूर्व अफसरों की तो हमे जानकारी नहीं है लेकिन फिलहाल निगम प्रशासन इसे गंभीरता से ले रहा है। कूड़े को लेकर हाईकोर्ट भी सख्त है। कूड़ा निस्तारण प्रोजेक्ट अब स्वीकृति के अंतिम चरण में है। प्रदेश की हाईपावर कमेटी से हरी झंडी मिलते ही केंद्र सरकार से अनुदान स्वीकृत हो जाएगा। जल्द शहर में कूड़ा निस्तारण होगा।
अलीहसन कर्नी, अपर नगर आयुक्त
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कूड़ा निस्तारण प्रोजेक्ट एक नजर में
एजेंसी : आर्गेनिक रिसाइक्लिंग सिस्टम प्रा. लि. सोलापुर महाराष्ट्र
क्षमता : 400 टन
लागत : लगभग मिला 220 करोड़
उत्पादन : सीएनजी, आरडीएफ (सीमेंट फैक्ट्री का ईंधन) और जैविक खाद
आवश्यक भूमि : 10 एकड़
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मेरठ का कूड़ानामा
प्रतिदिन कूड़ा : 900 मीट्रिक टन
निगम की क्षमता : 420 मीट्रिक टन
संग्रहण केंद्रों की संख्या : 60
पर्यावरण अनुकूल संग्रहण केंद्र शून्य
आवश्यक सफाई कर्मचारी : 5600 से 7000 तक
स्वीकृत पद : 2267
कार्यरत स्थाई कर्मचारी : 946
आउटसोर्सिग और एवजीदार : 2400
कुल वाहन : 154
आवश्यक वाहन : 800
शहर में नाले 285