काश! मेरी अंधेरी दुनिया के लिए जमीं पर कोई फरिश्ता मिल जाए
मेरठ आई बैंक में कम उम्र के रजिस्टर्ड जरूरतमंदों को नहीं मिल पा रही पुतली।
By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 11:38 AM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 11:38 AM (IST)
मेरठ (दिलीप पटेल)। ये पंक्तियां उन दृष्टि बाधितों की जिंदगी के स्याह पन्ने का सच हैं जो अंधेरी जिंदगी में रोशनी की एक किरण फूटती देखना चाहते हैं। वे शहर और राज्य की सीमाएं भी लांघ रहे लेकिन उम्र के हिसाब से पुतली नसीब नहीं हो रही। बेशक, इस काम में मेडिकल की कुछ शर्तें और जटिलताएं भी हैं लेकिन उन्हें शिद्दत से इंतजार है उस शुभ घड़ी का, ताकि इस खूबसूरत दुनिया के नजारों को जी भरकर निहार सकें। इन्हीं जरूरतमंदों में सीतामढ़ी (बिहार) के धरहरा गांव की 14 वर्षीय रेनू है, जो इतनी दूर से चलकर मेरठ में आई है। ढाई साल पहले दायीं आंख में लगी चोट ने उनकी रोशनी छीन ली। इसके बाद बांयी आंख की रोशनी भी धुंधली हो गई। डॉक्टरों ने सलाह दी कि पुतली प्रत्यारोपण के बाद ही दांयी आंख की रोशनी लौट सकेगी।
स्याह अंधेरों से लौटा हूं रोशनी की तलाश में।
मैं मीलों भटका हूं जिंदगी की आस में।
बिहार में उम्र के हिसाब से पुतली उपलब्ध नहीं हो सकी तो कंकरखेड़ा निवासी बुआ नीतू उसे मेरठ ले आईं। इस उम्मीद के साथ कि मेरठ में नेत्रदान बहुत होते हैं, शायद उसे उसकी उम्र के हिसाब से पुतली मिल जाए। जून में मेडिकल कॉलेज के आई बैंक में रजिस्ट्रेशन कराया था। करीब छह माह से लगातार आई बैंक के चक्कर लगा रही हैं। बुआ नीतू बताती हैं कि पढ़ाई-लिखाई सब बंद हैं। बेसब्री से पुतली मिलने का इंतजार है।
इसी तरह मोदी नगर की 16 वर्षीय मानसी दोनों आंखों से नहीं देख सकतीं। बचपन से उनके माता-पिता आस लगाए हैं कि एक दिन उनकी बेटी भी दुनिया को देख सकेगी। काउंसलर मीनाक्षी द्विवेदी ने बताया कि आई बैंक में वैसे तो 1150 से अधिक लोग वेटिंग में हैं लेकिन पांच से 25 साल तक के करीब 60 जरूरतमंद ऐसे हैं, जिनको उम्र के हिसाब से ए ग्रेड की पुतली नहीं मिल पा रही है।
कम उम्र में मृत्यु पर हों नेत्रदान तो बने बात
मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. लोकेश कुमार सिंह का कहना है कि अक्सर एक्सीडेंट या अन्य कारणों से कम उम्र के लोगों की मृत्यु होती है। यदि मेरठ में कम उम्र में नेत्रदान होने लगे तो किशोर-किशोरियों की जिंदगी में रोशनी की किरण आ सकती है। इसका कारण यह है कि कम उम्र में प्रत्यारोपण के लिए ए ग्रेड की कार्निया की जरूरत पड़ती है।
इनका कहना--
बच्चों में नेत्र प्रत्यारोपण तभी किया जाता है जब अच्छी क्वालिटी की कार्निया मिलती है। अधिकतर 70 साल से ऊपर के वृद्धजन ही नेत्रदान करते हैं। इसके चलते ए ग्रेड की कार्निया उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। लोग इस बात को समझें और कम उम्र में मृत्यु होने पर भी नेत्रदान करें। हम इंतजार कर रहे हैं। जैसी ही अच्छी कार्नियां मिलेगी जरूरतमंदों को पुतली प्रत्यारोपण कराएंगे।
-डॉ. अलका गुप्ता, नेत्र रोग विशेषज्ञ मेडिकल कॉलेज
स्याह अंधेरों से लौटा हूं रोशनी की तलाश में।
मैं मीलों भटका हूं जिंदगी की आस में।
बिहार में उम्र के हिसाब से पुतली उपलब्ध नहीं हो सकी तो कंकरखेड़ा निवासी बुआ नीतू उसे मेरठ ले आईं। इस उम्मीद के साथ कि मेरठ में नेत्रदान बहुत होते हैं, शायद उसे उसकी उम्र के हिसाब से पुतली मिल जाए। जून में मेडिकल कॉलेज के आई बैंक में रजिस्ट्रेशन कराया था। करीब छह माह से लगातार आई बैंक के चक्कर लगा रही हैं। बुआ नीतू बताती हैं कि पढ़ाई-लिखाई सब बंद हैं। बेसब्री से पुतली मिलने का इंतजार है।
इसी तरह मोदी नगर की 16 वर्षीय मानसी दोनों आंखों से नहीं देख सकतीं। बचपन से उनके माता-पिता आस लगाए हैं कि एक दिन उनकी बेटी भी दुनिया को देख सकेगी। काउंसलर मीनाक्षी द्विवेदी ने बताया कि आई बैंक में वैसे तो 1150 से अधिक लोग वेटिंग में हैं लेकिन पांच से 25 साल तक के करीब 60 जरूरतमंद ऐसे हैं, जिनको उम्र के हिसाब से ए ग्रेड की पुतली नहीं मिल पा रही है।
कम उम्र में मृत्यु पर हों नेत्रदान तो बने बात
मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. लोकेश कुमार सिंह का कहना है कि अक्सर एक्सीडेंट या अन्य कारणों से कम उम्र के लोगों की मृत्यु होती है। यदि मेरठ में कम उम्र में नेत्रदान होने लगे तो किशोर-किशोरियों की जिंदगी में रोशनी की किरण आ सकती है। इसका कारण यह है कि कम उम्र में प्रत्यारोपण के लिए ए ग्रेड की कार्निया की जरूरत पड़ती है।
इनका कहना--
बच्चों में नेत्र प्रत्यारोपण तभी किया जाता है जब अच्छी क्वालिटी की कार्निया मिलती है। अधिकतर 70 साल से ऊपर के वृद्धजन ही नेत्रदान करते हैं। इसके चलते ए ग्रेड की कार्निया उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। लोग इस बात को समझें और कम उम्र में मृत्यु होने पर भी नेत्रदान करें। हम इंतजार कर रहे हैं। जैसी ही अच्छी कार्नियां मिलेगी जरूरतमंदों को पुतली प्रत्यारोपण कराएंगे।
-डॉ. अलका गुप्ता, नेत्र रोग विशेषज्ञ मेडिकल कॉलेज
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