मेरठ बवाल: बेजार माहौल में सिर्फ अश्रुधार, मदद की है दरकार
भूसा मंडी मछेरान में झुग्गी-झोपड़ियों की आग ठंडी पड़ चुकी है लेकिन दिलों में सिस्टम के प्रति ज्वाला अभी भी धधक रही है। चौथे दिन पीड़ितों ने अपना जला हुआ सामान संभाला।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 10 Mar 2019 12:18 PM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2019 12:18 PM (IST)
मेरठ, [पंकज तोमर]। भूसा मंडी मछेरान, जहां सिर्फ अश्रुधार है। आशियाने के साथ तबाह हुए परिवारों को मदद की दरकार है। माहौल सामान्य तो है, लेकिन बेजारगी साफ झलक रही है। झुग्गी-झोपड़ियों की आग ठंडी पड़ चुकी है, लेकिन दिलों में सिस्टम के प्रति ज्वाला अभी भी धधक रही है। शनिवार को चौथे दिन पीड़ितों ने अपना जला हुआ सामान तो संभाल लिया, परंतु खुद डगमगाए रहे।
राख के ढेर से निकाला सामान
क्षेत्र में मस्जिद की लोगों ने साफ-सफाई की। सैकड़ों अकीदतमंदों ने नमाज अदा की। इससे पूर्व उन्होंने अपना जला हुआ सामान राख के ढेर से निकाला। कुछ लोगों ने लोहे के सामान को कबाड़ी को बेचकर रोटी का इंतजाम किया। चहल-पहल भी रही। ज्यादातर दुकान नहीं खुली। कुछ लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया और पीड़ितों के लिए राशन व कपड़े लेकर पहुंचे। कई मददगारों ने तो शिविर लगाकर भोजन कराया। पीड़ित परिवारों ने कहा कि पुलिस और कैंट बोर्ड टीम के कारण वह दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए हैं। वह खुद तो क्या, बच्चों का पेट तक नहीं भर पा रहे हैं। यदि लोग उनकी सहायता न करते तो उनका जीवन तबाह हो जाता।
दिन तो कट जाता है, रात नहीं
पीड़ित परिवारों की मांग है कि शासन-प्रशासन उन्हें घर बनाकर दे। उनका दिन तो बिलखते हुए कट जाता है, परंतु सर्द रात नहीं कटती। बच्चों को ओढ़ाने के लिए चादर तक नहीं है।
मासूमों की क्या खता
बवाल के खौफ में जी रहे मासूम बच्चों करी क्या खता है। कई बच्चे अपनी मां की गोद में हैं तो कई पांच साल से छोटे हैं। यह मासूम पूरा दिन राख में खेलते हैं और रात में उसी पर सो जाते हैं। सबसे बड़ा खामियाजा तो बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
सिर ढंकने को तमाम जतन
पीड़ित परिवारों ने सिर ढकने के लिए तमाम जतन भी किए हैं। लाठी-डंडों के सहारे चादर, तिरपाल और बैनर आदि तानकर धूप और रात की ठंड से बचाव के इंतजाम कर रहे हैं। परिवारों की हालत इतनी बदतर हो गई कि कई दिनों से मुंह तक नहीं धोया है।
इन्होंने बताया
फिलहाल माहौल पूर्ण तरह सामान्य है। लोग अपने जरूरी कार्य निपटाने लगे हैं। आगजनी के पीड़ितों की पुलिस स्तर पर जो मदद हो सकती है, वह की जा रही है।
- डा. अखिलेश नारायण सिंह, एसपी सिटी
राख के ढेर से निकाला सामान
क्षेत्र में मस्जिद की लोगों ने साफ-सफाई की। सैकड़ों अकीदतमंदों ने नमाज अदा की। इससे पूर्व उन्होंने अपना जला हुआ सामान राख के ढेर से निकाला। कुछ लोगों ने लोहे के सामान को कबाड़ी को बेचकर रोटी का इंतजाम किया। चहल-पहल भी रही। ज्यादातर दुकान नहीं खुली। कुछ लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया और पीड़ितों के लिए राशन व कपड़े लेकर पहुंचे। कई मददगारों ने तो शिविर लगाकर भोजन कराया। पीड़ित परिवारों ने कहा कि पुलिस और कैंट बोर्ड टीम के कारण वह दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए हैं। वह खुद तो क्या, बच्चों का पेट तक नहीं भर पा रहे हैं। यदि लोग उनकी सहायता न करते तो उनका जीवन तबाह हो जाता।
दिन तो कट जाता है, रात नहीं
पीड़ित परिवारों की मांग है कि शासन-प्रशासन उन्हें घर बनाकर दे। उनका दिन तो बिलखते हुए कट जाता है, परंतु सर्द रात नहीं कटती। बच्चों को ओढ़ाने के लिए चादर तक नहीं है।
मासूमों की क्या खता
बवाल के खौफ में जी रहे मासूम बच्चों करी क्या खता है। कई बच्चे अपनी मां की गोद में हैं तो कई पांच साल से छोटे हैं। यह मासूम पूरा दिन राख में खेलते हैं और रात में उसी पर सो जाते हैं। सबसे बड़ा खामियाजा तो बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
सिर ढंकने को तमाम जतन
पीड़ित परिवारों ने सिर ढकने के लिए तमाम जतन भी किए हैं। लाठी-डंडों के सहारे चादर, तिरपाल और बैनर आदि तानकर धूप और रात की ठंड से बचाव के इंतजाम कर रहे हैं। परिवारों की हालत इतनी बदतर हो गई कि कई दिनों से मुंह तक नहीं धोया है।
इन्होंने बताया
फिलहाल माहौल पूर्ण तरह सामान्य है। लोग अपने जरूरी कार्य निपटाने लगे हैं। आगजनी के पीड़ितों की पुलिस स्तर पर जो मदद हो सकती है, वह की जा रही है।
- डा. अखिलेश नारायण सिंह, एसपी सिटी
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