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शादी से बचने को छोड़ा घर, इन्होंने दिया सहारा; अफसर बनकर लौटी बेटी

अगर खुली आंखों से कोई सपना देखा जाए और उसे पूरा करने के लिए मजबूत इरादों से आगे बढ़ा जाए तो कोई भी रुकावट उस सपने को साकार करने से नहीं रोक सकती।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 12:06 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 12:06 PM (IST)
शादी से बचने को छोड़ा घर, इन्होंने दिया सहारा; अफसर बनकर लौटी बेटी

विवेक राव, मेरठ। अगर खुली आंखों से कोई सपना देखा जाए और उसे पूरा करने के लिए मजबूत इरादों से आगे बढ़ा जाए तो कोई भी रुकावट उस सपने को साकार करने से नहीं रोक सकती। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मेरठ की संजू रानी वर्मा ने, जिन्होंने पढ़ाई के लिए घर छोड़ा और अफसर बनकर लौटीं। आइए जानते हैं उनके संघर्ष से भरे प्रेरणादायी सफर के बारे में...

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पिता चाहते थे बेटी किसी तरह इंटर पास कर ले तो शादी कराकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ जाए, लेकिन बेटी के सपने ऊंचे और इरादे बुलंद थे। जब साथ देने वाली मां का साया भी सिर से उठ गया और शादी का दबाव बढ़ने लगा तो घर छोड़ना ही एक मात्र रास्ता दिखा। घर छोड़ा, लेकिन सपना नहीं। किराए के घर पर रहीं, ट्यूशन पढ़ाई, खुद भी तैयारी की और अब अफसर बनकर घर लौटीं। यह कहानी है उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली संजू रानी वर्मा की, जिन्होंने 2018 की यूपी-पीसीएस की परीक्षा पास कर ली है और वह अब वाणिज्य कर अधिकारी बन गई हैं।

अपने परिवार की पहली स्नातक : संजू पहले शास्त्रीनगर में अपने परिवार के साथ रहती थीं। उनकी तीन बहनें, तीन भाई हैं। पांचवें नंबर पर संजू हैं। पिता रमेश चंद पहले किसान थे, फिर परिवार की जिम्मेदारी बढ़ी तो व्यापारी बने। पिता की सोच पढ़ाई-लिखाई के खिलाफ थी। उनकी सोच बस बेटों को अपना काम करने और बेटियों को कुछ पढ़-लिखकर शादी कराने तक सीमित रही। पिता नहीं चाहते थे कि संजू 12वीं से आगे पढ़े। पढ़ाई छोड़ने का दबाव संजू पर तभी से पड़ने लगा। भाइयों की भी यही सोच थी। मां भगवती देवी ने थोड़ा हौसला दिया तो संजू को सहारा मिला। आरजी इंटर कॉलेज से 12वीं और आरजी डिग्री कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की। तभी सोच लिया कि अब आइएएस अफसर बनना है। संजू अपने परिवार में पहली संतान हैं जो स्नातक तक पहुंचीं। आगे पढ़ना उनका सपना था, लेकिन उनके इस सपने के रास्ते में तमाम रुकावटें भी आईं।

मां का साथ छूटा तो संजू ने घर छोड़ा : 2013 में संजू को सहारा देने वाली मां दुनिया को छोड़कर चली गईं तो पिता और भाइयों का दबाव शादी के लिए और भी बढ़ा। उन्होंने आगे पढ़ाने से पूरी तरह से मना कर दिया। पिता का कहना था कि लड़कियों के लिए नौकरी जरूरी नहीं है। अधिकारी बनने के लिए रिश्वत का पैसा कहां से आएगा। संजू ने जब यह कहा कि वह अपना खर्च खुद निकालेंगी तब भी परिवार उन्हें पढ़ाने को तैयार नहीं था। संजू की सगाई भी कर दी गई। तनाव और दबाव जब हद से अधिक हुआ तो संजू ने घर छोड़ दिया। फिर किराए पर मकान लेकर ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकाला। साथ ही अपनी सिविल सेवा की तैयारी भी करती रहीं। कई प्राइवेट स्कूलों में भी पढ़ाया। संजू की एक छोटी बहन है, जो जन्म से बोल नहीं पाती। संजू अपनी पढ़ाई के साथ छोटी बहन को भी सहारा दे रही हैं।

यह है लक्ष्य : संजू का लक्ष्य आइएएस बनने का है। वह पीसीएस की परीक्षा तक नहीं देना चाहती थीं, लेकिन शिक्षक अभिषेक के कहने पर पीसीएस 2018 की परीक्षा में बैठीं और सफल हुईं।

पहली बार में प्रारंभिक परीक्षा पास की : संजू ने पहली बार वर्ष 2008 में आइएएस की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी। उनके शिक्षक अभिषेक शर्मा बताते हैं कि अगर परिवार का साथ मिला होता तो संजू 2012 में ही आइएएस बन गई होती, लेकिन बीच में पिता के एक्सीडेंट और कोमा में जाने के बाद संजू पर पढ़ाई छोड़ने और शादी का दबाव बढ़ गया। संजू को बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जब मां का साथ छूटा और शादी का दबाव बढ़ा तो संजू ने 2013 में घर छोड़ दिया। इसके बावजूद वह पढ़ाई में लगी रहीं।

अब खुश हैं पिता : संजू अब भी किराए के घर पर अकेले रहती हैं। पीसीएस में चयन के बाद संजू पिता से मिलने अपने घर गईं तो पिता ने माला पहनाकर स्वागत भी किया। कहा कि आज उसकी मां जिंदा होती तो बहुत खुश होती।

इन्होंने दिया सहारा : संजू का कहना है कि उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा अपने शिक्षक अभिषेक शर्मा से मिली। जिस अनुराग से उनकी सगाई हुई थी उन्होंने भी प्रेरित किया। लड़कों की तरह रहती थीं संजू संजू बताती हैं कि परिवार में लड़के और लड़की को लेकर जो सोच थी, उसके चलते वह काफी समय तक अपने बालों को कपड़े से बांध कर रखती थीं। खुद लड़कों की तरह रहती थीं। संजू अभिभावकों से कहना चाहती हैं कि वह लड़के या लड़की दोनों को अवसर दें। वहीं, लड़कियों से उनका कहना है कि परिवार की प्रतिष्ठा पर आंच न आए, इसका खयाल उन्हें रखना है। बहन, पत्नी, मां किसी भी रिश्ते में हों अपने दायित्व को कभी नहीं भूलें।


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