अब सार्वजनिक शौचालयों में नहीं खत्म होगा साबुन, बीस रुपये में तैयार यह लिक्विड सोप खुद बनेगा, लंबा चलेगा
एमआइईटी के प्रोफेसर ने एक ऐसा हैंडवॉश प्रोसेसर-कम-डिस्पेंसर बनाया है जिसे बार-बार भरने की जरूरत नहीं होगी। यह लिक्विड सोप खुद तैयार होगा और आम डिस्पेंसर के मुकाबले लंबा चलेगा।
मेरठ, [विवेक राव]। ट्रेन हों या सार्वजनिक शौचालय, अधिकांश जगह हाथ धोने का साबुन (लिक्विड सोप) मुहैया नहीं होता। कई जगह सोप खत्म हो जाता है, तो कहीं इसका इंतजाम ही नहीं होता है। मेरठ, उप्र स्थित मेरठ इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (एमआइईटी) के प्रोफेसर ने इसका समाधान प्रस्तुत कर दिखाया है। ताकि स्वच्छ भारत में स्वच्छता का अधिकार हर किसी को, हर जगह सुलभ हो।
सहेज लें सेहत को
स्वच्छता का सीधा संबंध सेहत से है। और सेहत का जीवन से। जब सेहत ही न सहेजी जा सके, तो जीवन का अधिकार अधूरा। यह अधूरापन आप हर उस स्थान पर महसूस करते हैं, जहां स्वच्छता का अनुपालन न हो सके। घर या दफ्तर में तो समस्या पेश नहीं आती, लेकिन सार्वजनिक शौचालयों या ट्रेन में शौचालय का उपयोग करने के बाद ठीक से हाथ न धो पाने की समस्या अकसर पेश आती है। कई जगहों पर हाथ धोने के लिए हैंडवॉश डिस्पेंसर (लिक्विड सोप की बोतल) तो मुहैया होती है, लेकिन उसमें साबुन अकसर खत्म हो चुका होता है। अधिकांश शौचालयों और ट्रेनों में तो यह सुविधा ही नहीं होती। ऐसे में यदि पेपर सोप भी न हो तो हाथों को गंदा रखने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। इस समस्या से निपटने और देशभर में चल रही स्वच्छता की मुहिम को एक कदम आगे बढ़ाते हुए एमआइईटी के प्रोफेसर नितिन शर्मा ने ऐसा हैंडवॉश प्रोसेसर-कम-डिस्पेंसर बनाया है, जिससे खुद ही लिक्विड सोप तैयार होता रहेगा। न तो बार-बार खाली होने की समस्या रहेगी और न भरने की।
अन्य डिस्पेंसर से लंबा चलेगा
आम डिस्पेंसर के मुकाबले यह लंबे समय तक काम करता रहेगा। प्रो. नितिन कहते हैं, यही नहीं, ज्यादातर सार्वजनिक शौचालयों में निम्न गुणवत्ता का लिक्विड सोप उपयोग किया जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए हैंडवॉश प्रोसेसर-कम-डिस्पेंसर डिजाइन किया गया है। इसमें बस कुछ मात्र में केमिकल रखना होता है, जो पानी के साथ अपने आप लिक्विड सोप (साबुन) में बदल जाता है। उच्च गुणवत्ता का एक लीटर सोप 20 रुपये में तैयार हो सकता है, जोकि बाजार में उपलब्ध अन्य हैंडवॉश लिक्विड सोप के मुकाबले काफी कम कीमत है। मेरठ इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने इस युक्ति को पेटेंट करा लिया है।
नगर निगम को भेजा प्रस्ताव
मेरठ के सुलभ शौचालयों में इस हैंडवॉश प्रोसेसर-कम-डिस्पेंसर को जल्द ही एमआइईटी की तरफ से नो प्राफिट-नो लॉस आधार पर लगाया जाएगा। संस्थान के चेयरमैन विष्णु शरण अग्रवाल बताते हैं कि नगर निगम और कैंट बोर्ड को इसका प्रयोग करने का प्रस्ताव भेजा जा रहा है।
केवल बीस फिसद केमिकल
लिक्विड सोप बनाने के लिए प्रो. नितिन शर्मा ने एसिड स्लरी (साबुन बनाने में प्रयुक्त रसायन), पानी और सोडियम क्लोराइड का उपयोग किया है। इसमें 20 फीसद केमिकल है, शेष 80 फीसद पानी। डिस्पेंसर में पानी और केमिकल डालने के बाद 10 मिनट में सोप तैयार हो जाता है। एक डिस्पेंसर मैन्युअल है, जबकि दूसरा बैट्री चालित। गांवों के शौचालय में मैन्युअल, जबकि शहरों में बैट्री चालित डिस्पेंसर लगा सकते हैं।
इन्होंने बताया
इस युक्ति से मेरठ सहित देश के अन्य सार्वजनिक शौचालयों और ट्रेनों में सस्ता और गुणवत्तायुक्तहैंडवॉश सोप उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार, स्वास्थ्य मंत्री को भी पत्र लिखा जाएगा।
- डॉ. नितिन शर्मा, एमआइईटी, मेरठ, उप्र