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Gyanotsav At CCSU : नौकरी करने की जगह दूसरों को नौकरी दें युवा, देश के लिए जीना सीखें Meerut News

चौधरी चरण सिंह विवि की ओर से आयोजित ज्ञानोत्सव के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने अपनी बातें रखीं।

By Prem BhattEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 03:42 PM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2019 03:42 PM (IST)
Gyanotsav At CCSU : नौकरी करने की जगह दूसरों को नौकरी दें युवा, देश के लिए जीना सीखें Meerut News
Gyanotsav At CCSU : नौकरी करने की जगह दूसरों को नौकरी दें युवा, देश के लिए जीना सीखें Meerut News

मेरठ, जेएनएन। Shiksha Sanskriti Utthan Nyas देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। देश के लिए मरने के बजाय देश के लिए जीना सीखें। हर युवा आज नौकर बनना चाहता है, जबकि ऐसी शिक्षा ग्रहण करने की जरूरत है जो दूसरों को नौकरी दे सके। शिक्षा में जीवन की पूरी दृष्टि होनी चाहिए। यह बात शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और चौधरी चरण सिंह विवि की ओर से मंगलवार को आयोजित ज्ञानोत्सव के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कही।

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बढ़ रहा किताबों का बोझ

विवि के नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह में आयोजित ज्ञानोत्सव के पहले सत्र में अतुल कोठारी ने कहा कि वर्तमान में बच्चों के ऊपर किताबों का इतना बोझ डाल दिया जाता है कि वह स्कूल जाने से कतराते हैं। नई शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों को स्कूल जाने में आनंद आए। बच्चों को समाज, जीवन, देश आदि के प्रति कुछ दृष्टि प्राप्त हो। मुख्य अतिथि सूर्य प्रकाश टोंक ने कहा कि नैतिकता और जीवन मूल्य खत्म करने वाली शिक्षा नहीं होनी चाहिए। संस्कार और संस्कृति शिक्षा से गायब होती जा रही है। शिक्षा बच्चों को केवल जीविका चलाना सिखा रही है।

पाश्चात्य शिक्षा अपूर्णता का परिचय

इसमें जीवन मूल्य, संस्कृति और संस्कार भी आ जाएं तो शिक्षा के साथ न्याय होगा। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एनके तनेजा ने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा अपूर्णता का परिचय है। इसका उद्देश्य धन से मनुष्य को प्रभावित करना है। मनुष्य साधन मात्र नहीं है। भारतीय संस्कृति का समाज और राष्ट्र के लिए चिंतन करना आर्थिक उपेक्षा नहीं है। पैकेज वाली शिक्षा के साथ हमें मानवता के प्रति बोध रखना जरूरी है, जिसमें परिवार, समाज, राष्ट्र, मानवता के प्रति कर्तव्य का बोध भी होना चाहिए। तभी शिक्षा संपूर्ण होगी।

ये रहे मौजूद

संचालन प्रो. पवन कुमार शर्मा, डा. अलका तिवारी ने किया। आयोजन अध्यक्ष प्रो. जयमाला ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रांतीय अध्यक्ष समीर कौशिक ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की पृष्ठभूमि रखी। न्यास के क्षेत्रीय अध्यक्ष कैलाश शर्मा, आयोजन सचिव प्रो. जगबीर भारद्वाज, बरेली विवि के कुलपति प्रो. अनिल कुमार शुक्ला, प्रो. वीरपाल, प्रो. जितेंद्र ढाका, प्रो. पीके शर्मा, कुलसचिव धीरेंद्र कुमार वर्मा, डा. राजीव सिजेरिया, डा. योगेंद्र शर्मा, मितेंद्र कुमार सहित अन्य का सहयोग रहा। कार्यक्रम में सांसद राजेंद्र अग्रवाल सहित शिक्षक, विद्यार्थी, सामाजसेवी व अन्य लोग उपस्थित रहे।

ओम के उच्चारण से शांति

उद्घाटन सत्र में अतुल कोठारी ने तीन बार ओम का उच्चारण कर उसके प्रभाव के विषय में पूछा। फिर असतो मां सदगमय, तमसो मां ज्योतिर्गमय का अर्थ पूछा। विवि के विधि विभाग के शिक्षक योगेंद्र शर्मा ने असतो मां सदगमय का अर्थ बताया। वहीं सत्यकाम स्कूल की 10वीं की छात्र नंदनी सिंह ने ओम के उच्चारण से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को बताया। अतुल कोठारी ने ओम को मन को एकाग्रचित करने का सबसे बड़ा मंत्र बताया, जिससे शांति प्रदान होती है।

अपनी भाषा में जल्दी सीखते हैं बच्चे

शिक्षा में सुधार के लिए समाज और शिक्षाविदों से फीडबैक लेकर सरकार को समय-समय पर सुझाव देने का काम शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास कर रही है। इसी क्रम में विश्वविद्यालय में ज्ञानोत्सव आयोजित किया गया है। न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा में भाषा एक महत्वपूर्ण बिंदू है। नई शिक्षा नीति में इसे लेकर कई सुझाव दिए गए हैं। भाषा का विरोध शुद्ध राजनीति है। विश्व के सभी भाषाविद् और शोध यह बता चुके हैं कि बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजों को जल्दी सीखते हैं। भाषा को थोपने की जगह स्वैच्छिक बनाने की जरूरत है। देश में अंग्रेजी सहित 23 भाषा हैं। अंग्रेजी पढ़ें, इसका विरोध नहीं है। दो अन्य भारतीय भाषाओं को भी पढ़ें।

हिंदी माध्यम के छात्र पिछड़ रहे

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सिविल सेवा में हिंदी माध्यम के छात्र पिछड़ रहे हैं, सीसेट से पहले उनकी संख्या अधिक थी। अब सीसेट क्वालीफाई के लिए रह गया है। सीसेट का बैकलॉग भरने में थोड़ा वक्त लगेगा। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी दूर करने के लिए शिक्षा को थ्योरी से अधिक प्रैक्टिकल पर जोर देना होगा। उनके लगातार लिखने से ही सेना में चतुर्थ श्रेणी के पद की नियुक्ति में अंग्रेजी खत्म की गई। वह केंद्रीय सेवाओं में इस तरह अंग्रेजी की बाध्यता को खत्म करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। देश की तरक्की और मौलिकता के लिए केवल अंग्रेजी जरूरी नहीं। 


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