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बारूद के गोले भी डिगा न सके वीरों के कदम

पूर्वी पाकिस्तान को हाथ से निकलता देख बौखलाई पाकिस्तानी वायु सेना ने तीन दिसंबर 1971 को पश्चिमी क्षेत्र में वायु सेना पर हमला कर दिया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 04:00 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 06:09 AM (IST)
बारूद के गोले भी डिगा न सके वीरों के कदम
बारूद के गोले भी डिगा न सके वीरों के कदम

मेरठ, जेएनएन : पूर्वी पाकिस्तान को हाथ से निकलता देख बौखलाई पाकिस्तानी वायु सेना ने तीन दिसंबर 1971 को पश्चिमी क्षेत्र में वायु सेना पर हमला कर दिया था। जमीन पर पाकिस्तानी सेना ने फिरोजपुर में सतलज नदी पर बने हुसैनीवाला ब्रिज को पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के लिए उसी शाम पूरा जोर लगाकर हमला किया। हवाई हमले से अनजान इस मोर्चे पर तैनात भारत की 14वीं आर्टी ब्रिगेड पर पाकिस्तानी सेना ने एक इंफैंट्री आर्मर्ड ब्रिगेड और दो आर्टी ब्रिगेड के साथ करीब डेढ़ सौ टैंकों ने हमला किया था। पूरी रात गोलों से शोले बरसाने के बाद भी पाकिस्तानी सेना महज एक प्लाटून को पार कर डेढ़ किमी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर सकी। इसके बाद भी भारतीय जवानों ने दुश्मन को नदी पार नहीं करने दिया।

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सेना की आंख बन कर डटे रहे

युद्ध के समय फॉरवर्ड ऑब्जर्वेशन ऑफिसर का महत्व सेना की आंख की तरह होता है। सतलज नदी के किनारे बने किले में करीब डेढ़ सौ फिट ऊंचे मीनार के ऊपर से दुश्मन क्षेत्र में नजर गाड़े कर्नल डीके शर्मा (तब कैप्टन) अपने तीन अन्य साथियों के साथ तैनात थे। वह फिरोजपुर में तैनात गनों को दुश्मन टुकड़ी के ठिकाने भेजते रहे जिससे भारतीय गनें भी गोलियां बरसाती रही। युद्ध के दौरान सबसे पहले ऐसी ही पोस्ट को उड़ाया जाता है जिससे दुश्मन सेना की आर्टीलरी को ब्लाइंड किया जा सके। पाकिस्तानी टैंकों के स्पॉटर गनों ने बार-बार उस ओर फायर किया, लेकिन सामने खड़े पुराने बरगद के पेड़ ने हर बार दुश्मन के गोलों को झेला और पोस्ट को बचाए रखा।

धुआं और धूल का गुबार था सामने

कंकरखेड़ा के श्रद्धापुरी में रह रहे कर्नल डीके शर्मा बताते हैं कि तीन गुना अधिक शक्ति के साथ दुश्मन के हमले में चारों ओर धूल और धुएं के गुबार के बीच केवल गोलों से निकले ओले ही गिरते दिखे। दिन ढलने के बाद हुए हमले में सामने कुछ नजर नहीं आ रहा था। दुश्मन टैंकों व आर्टीलरी ने पूरी रात गोलीबारी की। भारतीय 130 एमएम गनें भी लगातार जवाब देती रहीं। रात करीब 12 बजे एक गोला सतलज नदी पर बने रेल-रोड ब्रिज पर गिरा जिससे वह टूट गया। ब्रिज के दूसरी ओर 15वीं पंजाब बटालियन के खालसा वीरों ने घंटों पाकिस्तानी इंफैंट्री को रोके रखा। ब्रिज टूटने पर बोट से अपनी सीमा में आकर लड़े।

एक सेकेंड पहले बचाई साथियों की जान

कर्नल डीके शर्मा के अनुसार टैंक का स्पॉटर गन हिट होने के तुरंत बाद गोला भी उसी निशाने पर दागा जाता है। इसीलिए सुबह पहली पौ फूटने से पहले ही उन्होंने साथियों को नीचे उतरने के लिए तैयार कर लिया था। स्पॉटर गन की एक गोली मीनार पर बनी लोहे की चादर को छूकर निकली। उसके ठीक बाद दूसरा स्पॉटर हिट हुआ। वह तत्काल साथियों संग नीचे कूद गए। सभी हवा में ही थे कि ठीक एक सेकेंड बाद जोरदार धमाके के साथ ऊपर गर्म धूल ही शेष बची।

गन के साथ शहीद हुए चार जवान

सतलज नदी के किनारे दो बैट्री यूनिट तैनात थी। दूसरे दिन सुबह पाकिस्तानी वायु सेना के हवाई हमले में एक गोला एक गन पर गिरा। उस गन के साथ गनर बख्तावर सिंह, लांस नायक जीत राम, गनर किशन गडगे और गनर टी. कन्नान करीब 20 फिट नीचे दलदल में दबकर शहीद हो गए। दो दिन बाद उन्हें दलदल से निकाला जा सका। कर्नल केडी शर्मा के बाइनाकुलर, हेलमेट, जूता और जैकेट से सुबह स्पि्लंटर के टुकड़े आर-पार मिले। कर्नल डीके शर्मा के उस जैकेट को छावनी में तैनात उनके बटालियन 223 फील्ड रेजिमेंट में आज भी रखा गया है।

दुश्मन के सामने अदम्य साहस के साथ डटे रहने के लिए कर्नल डीके शर्मा को राष्ट्रपति वीवी गिरि ने 24 नवंबर 1972 को वीर चक्र प्रदान किया था।


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