रोजगार न मिला तो टूट जाएगी जीवन की डोर
लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए कामगारों के सामने अब दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी कठिन हो रहा है। करीब दो माह पूर्व दिल्ली व नोएडा से गांव पहाड़पुर लौटे प्रवासी कामगारों के पास जो कुछ था वह परिवार की भूख मिटाने में खर्च कर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार की योजनाओं को कुछ न कुछ लाभ उन्हें मिलेगा लेकिन अभी तक निराशा ही हाथ लग रही है।
मेरठ, जेएनएन। लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए कामगारों के सामने अब दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी कठिन हो रहा है। करीब दो माह पूर्व दिल्ली व नोएडा से गांव पहाड़पुर लौटे प्रवासी कामगारों के पास जो कुछ था वह परिवार की भूख मिटाने में खर्च कर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार की योजनाओं को कुछ न कुछ लाभ उन्हें मिलेगा लेकिन अभी तक निराशा ही हाथ लग रही है। अब वे सरकार से रोजगार मुहैया कराने की मांग कर रहे है। अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं कि यदि रोजगार न मिला तो उनके जीवन की डोर टूट जाएगी।
कोरोना महामारी के चलते दो माह बाद भी लॉकडाउन चल रहा है। प्रवासी कामगार फैक्ट्री व अन्य कामकाज बंद होने से अपने घर लौट आए हैं। अब उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। मवाना तहसील क्षेत्र के गांव पहाड़पुर निवासी अंकुश नोएडा में इलेक्ट्रिक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे, लेकिन फैक्ट्री बंद होने के कारण वह मार्च अंत में अपने साथी विकास के साथ घर लौट आए। लॉकडाउन के कारण कहीं और कामकाज ढूंढने भी नहीं जा सकते। गांव में पिता के साथ कभी कभी मजदूरी पर चले जाते हैं लेकिन यह जीविका के लिये पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि यही हाल रहा तो परिवार भुखमरी के कगार पर भी पहुंच सकता है।
इसी गांव के राहुल की हालत भी जुदा नहीं है। सोनीपत में काम करते थे। विक्की दिल्ली में मोबाइल कंपनी में थे लेकिन लॉकडाउन के कारण कंपनी बंद होने पर घर आ गए। रोजगार नहीं होने से आíथक संकट से जूझ रहे हैं। प्रशासन भी सुध नहीं ले रहा है। मनरेगा में काम के लिए ग्राम प्रधान सतीश से भी मिल चुके हैं लेकिन अभी तक काम नहीं मिला। ऐसे ही कितने कामगार हैं जो काम बंद होने पर किसी तरह घर तो पहुंच गए लेकिन अब खुद व परिवार के गुजारे को लेकर चिंतित हैं।