Special Column: मेरठ में बंदर बना मदारी, नचा रहा सारा सरकारी सिस्टम
बंदरों की उछलकूद से अब तक तो जनता ही परेशान थी लेकिन अब सरकारी महकमों की नींद हराम है। बदले परिदृश्य में बंदर मदारी बनकर सिस्टम को नचा रहा है और वे नाचने को मजबूर हैं।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। कभी दफ्तर के अंदर, कभी कोरोना का सैंपल लेकर पेड़ पर बंदर। मेरठ में इन दिनों यह तस्वीर आम हो गई है। बंदरों की उछलकूद से अब तक तो जनता ही परेशान थी, लेकिन अब सरकारी महकमों की नींद हराम है। बदले परिदृश्य में बंदर मदारी बनकर सिस्टम को नचा रहा है और वे नाचने को मजबूर हैं। बंदरों का खौफ अधिकारियों के चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता है। इस बार बंदरों ने कलक्ट्रेट पर अटैक किया। मानो जिलाधिकारी के गोपनीय दस्तावेजों की ऑडिट के लिए पहुंचा हो। बंदर दफ्तर के अंदर घुसा तो क्लर्क लठैत बने। कोई इस कोने तो कोई उस कोने। बंदर तो न दिखा, पर इनकी उछलकूद भी खूब थी। इसके पहले जिला अस्पताल में मरीज का ऑक्सीजन मॉस्क हटाते, घरों में कब्जा जमाते, कोरोना का सैंपल लिए पेड़ पर चढ़े बंदर देश-दुनिया में खूब वायरल हो चुके हैं।
गजब! न तुम जानो न हम
जिला प्रशासन से लेकर नगर निगम तक ने मेरठ को सालों पहले ओडीएफ घोषित कर अपनी पीठ थपथपा ली। दिल्ली-लखनऊ से अवार्ड-प्रशस्ति पत्र ले आए। लेकिन हकीकत में क्या मेरठ ओडीएफ है, यही यक्ष प्रश्न है। गांव-देहात को तो छोड़ दीजिए। शहर के बीच कालोनियों का सीवर सीधे नीलों में गिर रहा है। जब सीवर नालों में खुला गिर रहा है और नाले इसे काली नदी तक खुले-खुले पहुंचा रहे हैं तो फिर क्या इसे ओडीएफ कहा जाएगा। बड़ी-बड़ी कालोनियों में मोटा स्टांप शुल्क और विकास की राशि जमा करने वाले लोगों को शायद यह पता ही नहीं कि शहर को महामारी में धकेलने में सुबह-शाम वे भी योगदान दे रहे हैं। और तो और इस काम के दो जिम्मेदार विभाग एमडीए, नगर निगम यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि नालों में सीवर न बहे, इसका समाधान कौन सुनिश्चित करे। हद है।
कोसा है... बारिश का बोसा है
फिल्म गुरु में आसमान से झरती बूंदों को बाहों में समेटने की कोशिश करती विश्व सुंदरी ऐश्वर्या के गीत के बोल गुनगुनाएं तो ‘कोसा’ और ‘बारिश का बोसा’, दो शब्द मिलेंगे। मतलब हुआ ‘रेशम-सा’ और ‘बारिश का चुंबन’। अब जरा खयालों से निकलिए और झमाझम के बाद की तस्वीर से रू-ब-रू होइए। जरा सी बारिश में भी घुटने तक जलभराव, उफनते नाले, गंदगी में सना गर्म पानी आपको जैसे ही छुएगा, सावन का सारा मूड ध्वस्त न हो जाए तो कहिए। कहा जाता है आफत की बारिश और जिम्मेदार फिर बच निकलते हैं। हर साल विकसित होते शहर को यही बारिश आईना दिखाती है। व्यवस्था का पानी उतारती है लेकिन जिम्मेदार हालात सुधारने की बजाय मुंह छिपा लेते हैं। इन अनुभवों से हैरान-परेशान आम शहरी तो घटाओं की घेराबंदी देख हाथ जोड़ दोहराने लगते हैं.. बरसो ना मेघा बरसो।
क्या काला वाली कालिख धुल जाएगी
सोतीगंज में अवैध कटान का एक अहम सूत्रधार राहुल काला को पुलिस ने टांग में गोली मार दी। बरमुडा पहने काला अस्पताल भी पहुंचा और फोटो सेशन के जरिए खाकी ने मुठभेड़ की कहानी सुनाई। बताने की कोशिश की कि बदमाशों पर खाकी कोई रहम नहीं करती। लेकिन क्या इन तस्वीरों से खाकी का वह दाग धुल जाएगा जो काला की तस्वीरों के बहाने सामने आया था। यह वही काला है, पुलिस को मौज-मस्ती कराते जिसकी तस्वीरें खूब वायरल हुईं। बिकरू कांड में मेरठ पुलिस न झुलस जाए, ऐसी बातें यह अभी चल ही रही थीं कि काली रात में काला से मुठभेड़ हो गई। चंद मिनटों में ही इसके डेढ़ दर्जन काले कारनामे भी पुलिस ने गिना दिए। यानी खाकी को पता था राहुल कितना काला है। ठीक वैसे ही जैसे कानपुर वाले विकास दुबे के बारे में वहां की पुलिस जानती थी।