घर की रौनक बेटियां होती हैं अनमोल
समय बदला और लोगों की सोच भी। कभी बेटी के जन्म पर दुखी होने वाले परिवार और माता-पिता अब बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं कर रहे हैं।
मेरठ, जेएनएन। समय बदला और लोगों की सोच भी। कभी बेटी के जन्म पर दुखी होने वाले परिवार और माता-पिता अब बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं कर रहे हैं। आज बेटियां न सिर्फ बेटों से कहीं आगे निकलकर भविष्य संवार रही हैं, बल्कि माता-पिता की सेवा कर खुद को बेटों के बराबर साबित कर रही हैं।
ऐसे में बेटों के लिए रखा जाना वाला अहोई अष्टमी का व्रत अब माताएं बेटियों के लिए भी रखने लगी हैं। व्रत रखकर उनकी लंबी आयु की प्रार्थना की जा रही है। माता-पिता का कहना है कि बेटे और बेटी में अंतर करना अब गुजरे जमाने की बात है। अब तो बेटियां भी बेटों कहीं आगे है।
बेटियों के लिए रखती हूं व्रत
पुराने समय में बेटियों को घर से बाहर निकलने में परेशानी होती थी। उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए वे काफी समय तक पिछड़ी रहीं। समाज की मानसिकता बदली तो बेटियों ने वह कर दिखाया जो बेटे भी नहीं कर पाए। मेरी दो बेटियां है। ओस और वाणी। मैं हर साल उनकी लंबी उम्र के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हूं।
-रीना आशीष सदर
बेटे से बढ़कर है बेटी
एक मां के सबसे करीब होती है बेटी। वह बिना कुछ कहे मां का हर दर्द समझ जाती है। मेरी एक ही बेटी है प्रदीप्ता। उसने कभी भी बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी। हमारी बेटी बेटों से भी बढ़कर है।
-प्रतिभा माहेश्वरी आबूलेन
नन्हीं परियों से है घर की रौनक
बेटियां घर की रौनक होती हैं। माता पिता के दिल के करीब बेटियां ही होती हैं। मेरी तीन बेटियां हैं। सौम्या, भव्या और अनन्या। तीनों की उम्र में अधिक अंतर नहीं है। वह कभी एक दूसरे से लड़ती हैं तो कभी खेलती भी हैं। मेरी तीनों परियों से ही मेरे घर की रौनक है। अहोई अष्टमी का व्रत बच्चों के लिए रखा जाता है। फिर चाहे बेटे हो या बेटियां।
-रुचि शर्मा पंचशील कालोनी गढ रोड
अब समय और लोगों की सोच दोनों ही बदल गए हैं। बेटी और बेटे का अंतर खत्म हो गया है। बेटियां पढ़ लिखकर अपना भविष्य संवार रही हैं। माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं। मेरी एक ही बेटी है इरा। मैं उसके लिए हर साल अहोई अष्टमी का व्रत करती हूं। मेरा बेटा भी यही है और बेटी भी।
-शिल्पी आबूलेन