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गांधीजी की पुण्यतिथि: मेरठ में अमिट हैं बापू के पदचिह्न, जनवरी 1920 में पहली बार आए थे यहां

गांधीजी की पुण्यतिथि जनवरी 1920 में महात्‍मा गांधी पहली बार मेरठ आए थे। यहां वह मेरठ कॉलेज में छात्रों की उदारता से गदगद हो गए थे।

By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 01:15 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 01:15 PM (IST)
गांधीजी की पुण्यतिथि: मेरठ में अमिट हैं बापू के पदचिह्न, जनवरी 1920 में पहली बार आए थे यहां
गांधीजी की पुण्यतिथि: मेरठ में अमिट हैं बापू के पदचिह्न, जनवरी 1920 में पहली बार आए थे यहां

मेरठ, जेएनएन। महात्मा गांधी का मेरठ में आना इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में प्रार्थना के समय गांधी जी शहीद हुए थे। 30 जनवरी को गांधीजी की पुण्यतिथि मनाई जाती है। गांधी जी के विचार हर पीढ़ी को अपने अपने तरीके से प्रेरित करते रहेंगे। मेरठ का गांधी जी से करीब का नाता रहा है। 22 जनवरी 1920 को पहली बार गांधी जी मेरठ आए थे। मेरठ में राष्ट्रपिता जिन-जिन स्थलों पर गए, उन स्थलों से उनके पदचिह्न कभी मिटने वाले नहीं हैं। इसमें चाहे कैसल व्यू हो, वैश्य अनाथालय, टाउनहाल, डीएन इंटर कॉलेज, मेरठ कॉलेज हो, सनातन धर्मशाला बुढ़ाना गेट हो या फिर असौढ़ा हाउस.. सभी के साथ महात्मा गांधी की याद जुड़ी हुई है।

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बग्‍घी में बैठाया था बापू को

देवनागरी कॉलेज पहले देवनागरी स्कूल था। जब गांधी जी यहां आए थे। 22 जनवरी 1920 की वह सुबह थी। करीब 9.30 बजे गांधी जी पहुंचे थे। यहां पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत हुआ था। एक बग्घी में उन्हें बैठाया गया। जुलूस निकाला गया। गांधी जी एक बार फिर 1929 में इस स्कूल में आए थे। यहां उन्होंने स्वर्गीय सीआर दास के चित्र का अनावरण किया था। उस समय स्कूल के प्रधानाचार्य उग्रसेन थे, जिन्होंने गांधी जी को 600 रुपये भेंट किए थे। वेस्ट एंड रोड पर कैसल व्यू में 22 जनवरी 1920 को दोपहर 12.30 बजे गांधी जी पहुंचे थे। उनके साथ बैरिस्टर इस्माइल खां थे। गांधी जी ने उनके साथ भोजन किया। गांधी जी का भोजन सादा था। भोजन को किसी थाली में नहीं बल्कि पत्तलों में परोसा गया था। मेरठ कालेज में गांधीजी 28 अक्टूबर 1929 को आए थे। छात्रों और शिक्षकों के साथ उन्होंने बैठक की थी। छात्रों ने गांधी जी को आजादी के आंदोलन में सहयोग करने के लिए एक चांदी की प्लेट और सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट की थीं। तब गांधी जी ने यहां के छात्रों के लिए कहा था कि मेरठ कालेज के छात्र उदारता में अन्य जगह से बहुत आगे हैं। टाउनहाल में 1920 और 1929 दोनों बार गांधी जी ने समय बिताया था।

हस्ताक्षर का गवाह वैश्य अनाथालय

गांधी जी वैश्य अनाथालय में 1929 में आए थे। यहां गांधी जी ने रजिस्ट्रर में लिखा था कि किसी की मेहरबानी मांगना अपनी आजादी बेचना है। उनका हस्ताक्षर आज भी हर कोई देख सकता है।

पिताजी में कूट-कूटकर भरे थे गांधीजी के आदर्श

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के आदर्श उनकी पीढ़ी के बाद की पीढ़ियों में भी संस्कार की तरह बढ़ रहे हैं। मेरठ में गांधीजी पर चर्चा होते ही पहला नाम धर्म दिवाकर जी का आता रहा है जो इस साल हमारे बीच नहीं हैं। उन्होंने गांधीजी के विचारों और आदर्शो को बेटे सौरभ दिवाकर तक पहुंचाया जिसे अब वह अगली पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं। गांधीजी की पुण्य तिथि पर स्व. पिता को भी इस साल सौरभ ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। सौरभ के अनुसार पिताजी में महात्मा गांधी जी के आदर्श और उनके सिद्धांत कूट-कूट कर भरे हुए थे। उन्होंने राष्ट्रपिता के विषय में काफी अध्ययन किया। अनेकों लेख लिखे। उनके जीवन पर किताबें लिखी। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से काफी प्रभावित थे।

सौरभ बताते हैं कि जब भी पिताजी से महात्मा गांधी जी के विषय में बात होती थी, तो यही कहते थे कि गांधी जी के विषय में जानना है तो उनके विषय में बहुत पढ़ना पड़ेगा, उनके जीवन और त्याग के बारे में बहुत अध्ययन करना पड़ेगा। वह हमेशा यही कहते थे कि गांधी कोई नाम या व्यक्ति नहीं हैं, यह तो एक विचारधारा है। जो सादगी सरलता और अहिंसा का प्रतीक है। गांधी जी ने देश को आजाद कराने के लिए अहिंसात्मक तरीका अपनाया लेकिन किसी भी अत्याचार को सहन नहीं किया। क्योंकि अत्याचार सहन करना एक कायरता है। इंसान को कायर नहीं होना चाहिए। किसी भी अन्याय का जरूरी नहीं कि हिंसात्मक तरीके से ही विरोध किया जाए। अहिंसा के माध्यम से भी विरोध प्रकट किया जा सकता है जो बहुत ही मजबूत और शक्तिशाली हो सकता है। 


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