फिटनेस से करियर तक के लिए..किक
बॉक्सिंग के बाद फुटबॉल को ही सबसे परिश्रम वाला खेल माना जाता है।
मेरठ,जेएनएन। बॉक्सिंग के बाद फुटबॉल को ही सबसे परिश्रम वाला खेल माना जाता है। स्कूल स्तर पर अधिकतर बच्चे एनर्जी और फिटनेस गेम के तौर पर ही फुटबॉल को स्पोर्ट्स के तौर पर चुनते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से देश में हुए अंडर-17 फुटबॉल वर्ल्ड कप का प्रचार-प्रसार करने के बाद स्कूली बच्चों में फुटबॉल के प्रति रुझान बढ़ने लगा है। अब बच्चे फिटनेस के साथ ही इस रोमांचक खेल को करियर के तौर पर भी देखने लगे हैं। इसके लिए उपयुक्त माहौल फिलहाल भले ही देश में न हो, लेकिन महानगरों के कुछ क्लबों ने देश के विभिन्न शहरों से खिलाड़ियों को लेना शुरू कर दिया है।
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बढ़ रही फुटबॉलर्स की संख्या
मेरठ डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन से पंजीकृत फुटबॉल क्लबों की संख्या पिछले चार सालों में हर साल दो से तीन क्लब बढ़ते हुए 20 तक पहुंच चुकी है। अगले महीने एसोसिएशन की फुटबॉल लीग होने जा रही है। इस साल 24 क्लब खेलेंगे। वहीं जिले के करीब 35 सीबीएसई, आइसीएसई स्कूल ऐसे हैं, जहां खेल के तौर पर फुटबॉल का पहला या दूसरा स्थान है। वर्तमान में जेपी एकेडमी मवाना रोड में चल रही इंटर स्कूल फुटबॉल प्रतियोगिता में 19 टीमें खेल रही हैं। इसमें कई बड़े स्कूलों की टीम परीक्षाओं के कारण हिस्सा नहीं ले सकी। इनके अलावा कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में 50 से अधिक बच्चे फुटबॉल ट्रेनिंग ले रहे हैं।
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छोटे बच्चों में बढ़ रहा रुझान
क्रिकेट में बढ़ती भीड़ के कारण अब छोटे बच्चों का रुझान फुटबॉल की ओर बढ़ रहा है। स्कूलों व क्लबों में 12 साल से छोटे बच्चों की संख्या पिछले दो सालों में काफी बढ़ी है। 12 साल से छोटे बच्चों को गेंद के साथ फिटनेस ट्रेनिंग कराते हुए मैच खिलवाए जाते हैं, जिससे उनकी रुचि बढ़े और बनी रहे। 12 से 16 साल तक के बच्चों की ट्रेनिंग थोड़ी कठिन कर दी जाती है।
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16 साल से कठिन ट्रेनिंग शुरू
स्टेडियम के फुटबॉल कोच ललित पंत के अनुसार 16 साल की आयु से बच्चों की फुटबॉल की कठिन ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। इसमें दूर तक शूट करना, दूर से आ रही गेंद को रिसीव करना, डिफेंड करना आदि शामिल हैं। खेल से फिटनेस पर विशेष फोकस रहता है, जिससे खिलाड़ी को पूरे मैच के दौरान लगातार दौड़ने के बाद भी थकान न हो। 18 साल के बाद सीनियर फुटबॉलर्स की तरह ट्रेनिंग होती है। इस स्तर पर खिलाड़ी व्याप्त संसाधनों में प्रोफेशनल फुटबॉलर्स की तरह प्रशिक्षित किए जाते हैं।
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स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग जरूरी
सेंट मेरीज एकेडमी के फुटबॉल कोच मनोज कुमार के अनुसार बच्चों की ट्रेनिंग में स्टेमिना, फिटनेस, फोकस, टेक्निक, शूटिंग और डिफेंस पर अधिक काम करना पड़ता है। बेसिक फिटनेस और किक मारने की ट्रेनिंग सभी की समान होती है। इसके बाद गोलकीपर, मिडफील्डर, डिफेंस आदि की स्पेशलाज्ड ट्रेनिंग दी जाती है। एक टीम में हर किसी की जिम्मेदारी तय होती है, उन्हें उसी के लिए तैयार किया जाता है। स्कूलों में यह ट्रेनिंग पांचवीं-छठी कक्षा से शुरू हो जाती है।
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इनका कहना है..
- हर साल मेरठ के फुटबॉल खिलाड़ी अंडर-16, अंडर-19 व सीनियर नेशनल प्रतियोगिताओं में दो से चार की संख्या में खेलते हैं। खिलाड़ी अब फुटबॉल में करियर देखने लगे हैं। मेरठ में क्लबों का माहौल नहीं है, इसलिए यहां के खिलाड़ी दिल्ली, अंबाला आदि जगहों के फुटबॉल क्लबों से खेल रहे हैं।
- ललित पंत, फुटबॉल कोच, कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम।
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- स्कूल में बच्चे फिटनेस के लिए फुटबॉल को अधिक महत्व दे रहे हैं। इस स्तर पर उनकी प्रोफेशनल रुचि देखने को कम मिल रही है। शुरुआती ट्रेनिंग में रोमांच मिलने से वह 12वीं तक टीम का हिस्सा बने रहते हैं।
- मनोज कुमार, फुटबॉल कोच, सेंट मेरीज एकेडमी
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- जूनियर वर्ल्ड कप के बाद बच्चों में फुटबॉल के प्रति रुझान बढ़ा है। यही कारण है कि अधिक से अधिक स्कूल फुटबॉल को स्पोर्ट्स करिकुलम में शामिल करने लगे हैं। सीबीएसई की क्लस्टर से नेशनल तक की प्रतियोगिता में फुटबॉल में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है।
- सुशील त्यागी, फुटबॉल कोच, करन पब्लिक स्कूल