स्वतंत्रता के सारथी : पेश किया मॉडल, सीवेज के पानी को बना दिया निर्मल Meerut News
पूर्व शोध छात्र की इस तकनीक से पश्चिमी उप्र के 15 गांवों में ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने आठ करोड़ का फंड जारी किया है।
By Prem BhattEdited By: Published: Tue, 13 Aug 2019 10:33 AM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2019 10:33 AM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। गांवों में हजारों शौचालय तो बन गए, किंतु इनसे निकलने वाले जहरीले सीवेज का क्या करें? इस चुनौती का हल निकालने वाले आइआइटी के इंजीनियर ने हरिद्वार के गांव इब्राहिमपुर में ऐसा मॉडल बनाया, जिसमें पत्थर पर बैक्टीरिया उगाकर सीवेज को खास किस्म के पौधों से गुजारा गया। पानी 90 फीसद साफ हो गया। इस पानी से सिंचाई व मछली पालन के साथ तालाब को रिचार्ज भी किया जा रहा है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस तकनीक से पश्चिमी उप्र के 15 गांवों में ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए आठ करोड़ का फंड जारी किया है।
तीन चेंबर से गुजरकर साफ हुआ पानी
आइआइटी मुंबई से पर्यावरण इंजीनियरिंग में शोध करने वाले मेरठ निवासी डा. दिनेश पोशवाल ने वर्ष 2016 में हरिद्वार जिले के इब्राहिमपुर गांव में सीवेज साफ करने का एक मॉडल बनाया। तालाब के 15 भाग में एक गढ्ढा बनाकर सीवेज जमा किया। इसे तीन चरणों से पास किया गया। पहले चेंबर में सिल्ट और बजरी को अलग किया। दूसरे चेंबर में डाले गए खास किस्म के ईंट और पत्थरों पर कचरे के बैक्टीरिया चिपक जाते हैं। तीसरे चेंबर में खास किस्म के पौधे लगाए गए, जिसकी जड़ों से आक्सीजन उत्सर्जित होती है। इससे प्रक्रिया करते हुए बैक्टीरिया नाइट्रोजन व फास्फोरस जैसे पोषण तत्व बनाते हैं। जड़ों को पोषण मिलता है, जबकि बैक्टीरिया कचरे की गंदगी खा लेते हैं। इस प्रकार ये चक्र कचरे को 80 से 90 फीसद साफ कर देता है।
धर्मशाला में भी सीवेज से सिंचाई
दिनेश ने बताया कि वेटलैंड बेस्ड सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तकनीक से निकले पानी को मछली पालन में यूज किया गया। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और नेशनल इंस्टीटयूट आफ हाइड्रोलोजी के वैज्ञानिकों ने भी इस तकनीक की सराहना की। दिनेश धर्मशाला और चंडीगढ़ की कई कालोनियों में सीवेज को साफ करने वाले प्लांट लगा चुके हैं। शहरों के कई कांपलेक्स में सीवेज से निकले पानी से पार्कों की सिंचाई की जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
शौचालय के वेस्टेज में जानलेवा बैक्टीरिया होते हैं। एक सेप्टिक टैंक खाली होने पर एक साथ पांच हजार व्यक्तियों के मल के बराबर प्रदूषण निकलता है। मैंने हरिद्वार के एक गांव में मॉडल प्लांट लगाकर गांव के प्रदूषित कचरे को साफ किया है। डिपार्टमेंट आफ साइंस टेक्नोलॉजी ने भी इस तकनीक के लिए पांच करोड़ का फंड जारी किया है।
- दिनेश पोशवाल, पूर्व शोध छात्र, आइआइटी मुंबई
तीन चेंबर से गुजरकर साफ हुआ पानी
आइआइटी मुंबई से पर्यावरण इंजीनियरिंग में शोध करने वाले मेरठ निवासी डा. दिनेश पोशवाल ने वर्ष 2016 में हरिद्वार जिले के इब्राहिमपुर गांव में सीवेज साफ करने का एक मॉडल बनाया। तालाब के 15 भाग में एक गढ्ढा बनाकर सीवेज जमा किया। इसे तीन चरणों से पास किया गया। पहले चेंबर में सिल्ट और बजरी को अलग किया। दूसरे चेंबर में डाले गए खास किस्म के ईंट और पत्थरों पर कचरे के बैक्टीरिया चिपक जाते हैं। तीसरे चेंबर में खास किस्म के पौधे लगाए गए, जिसकी जड़ों से आक्सीजन उत्सर्जित होती है। इससे प्रक्रिया करते हुए बैक्टीरिया नाइट्रोजन व फास्फोरस जैसे पोषण तत्व बनाते हैं। जड़ों को पोषण मिलता है, जबकि बैक्टीरिया कचरे की गंदगी खा लेते हैं। इस प्रकार ये चक्र कचरे को 80 से 90 फीसद साफ कर देता है।
धर्मशाला में भी सीवेज से सिंचाई
दिनेश ने बताया कि वेटलैंड बेस्ड सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तकनीक से निकले पानी को मछली पालन में यूज किया गया। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और नेशनल इंस्टीटयूट आफ हाइड्रोलोजी के वैज्ञानिकों ने भी इस तकनीक की सराहना की। दिनेश धर्मशाला और चंडीगढ़ की कई कालोनियों में सीवेज को साफ करने वाले प्लांट लगा चुके हैं। शहरों के कई कांपलेक्स में सीवेज से निकले पानी से पार्कों की सिंचाई की जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
शौचालय के वेस्टेज में जानलेवा बैक्टीरिया होते हैं। एक सेप्टिक टैंक खाली होने पर एक साथ पांच हजार व्यक्तियों के मल के बराबर प्रदूषण निकलता है। मैंने हरिद्वार के एक गांव में मॉडल प्लांट लगाकर गांव के प्रदूषित कचरे को साफ किया है। डिपार्टमेंट आफ साइंस टेक्नोलॉजी ने भी इस तकनीक के लिए पांच करोड़ का फंड जारी किया है।
- दिनेश पोशवाल, पूर्व शोध छात्र, आइआइटी मुंबई
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