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पांच जिंदगियों को उम्रभर के जख्म दे गई वासु की मौत

12 साल के वासु यादव को ऋषिकेश के भोगपुर स्थित चिल्ड्रन एकेडमी में किस तरह तड़पाकर मारा गया यह सुनकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उसकी मौत पांच जिंदगी को गहरे जख्म दे गई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 03:00 AM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 06:22 AM (IST)
पांच जिंदगियों को उम्रभर के जख्म दे गई वासु की मौत
पांच जिंदगियों को उम्रभर के जख्म दे गई वासु की मौत

मेरठ । 12 साल के वासु यादव को ऋषिकेश के भोगपुर स्थित चिल्ड्रन एकेडमी में किस तरह तड़पाकर मारा गया यह सुनकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उसकी मौत पांच जिंदगी को गहरे जख्म दे गई है। वह तीन बहनों का इकलौता भाई था। उसके पिता सदमे में हैं। मां फोटो से लिपट कर रो रही है। बहनों का भी बुरा हाल है। गमजदा परिवार की सिर्फ एक ही मांग है, आरोपितों को उम्रकैद की सजा दी जाए।

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परिवार की माली हालत बेहद कमजोर

मूल रूप से उड़ीसा के रहने वाले झप्पी सिंह यादव दशकों से सहारनपुर के कुष्ठाश्रम में रहे थे। करीब सात माह से वह ब्रह्मापुरी थाना क्षेत्र के श्री विवेकानंद कुष्ठाश्रम में परिवार समेत रहते हैं। उनकी बड़ी बेटी शिवानी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है, जबकि उससे छोटी प्रीति 11वीं की छात्रा है और उससे छोटी रीना नौवीं में पढ़ती है। यह दोनों बहनें भी चिल्ड्रन एकेडमी में ही पढ़ती हैं और ग‌र्ल्स हॉस्टल में रहती हैं। सातवीं कक्षा का वासु ब्वॉयज हॉस्टल में रहता था। झप्पी सिंह ने बताया कि उनकी माली हालत बेहद खराब है। वह किसी तरह अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वह पत्‍‌नी श्यामा के साथ मेरठ में रहते हैं। छुट्टी के दिनों में सभी बच्चे मेरठ आते रहते हैं।

पांच साल का पढ़ने चला गया था वासु

झप्पी सिंह ने बताया कि उनका बेटा पांच साल की उम्र में ही अपनी दोनों बहनों के साथ पढ़ने चला गया था। वह मां को बहुत याद करता था, लेकिन चारों बच्चों को कामयाब बनाने के लिए पढ़ाना जरूरी है। उन्होंने अपने सीने पर पत्थर रखकर बेटे को दूर रखा। उन्हें क्या पता था कि वह हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। चारों बहन-भाई पढ़ाई में बेहद होनहार हैं।

बीमारी ने सब कुछ बर्बाद कर दिया

झप्पी सिंह की आंखों में यह कहते हुए आंसू आ गए कि उनका परिवार बीमारी ने बर्बाद कर दिया। पहले उनके माता-पिता कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। इसके बाद वह खुद भी हो गए। पत्‍‌नी भी इसका शिकार हो गई। कहीं बच्चे इस रोग की चपेट में न आ जाए, इसलिए उन्हें खुद से दूर रखा। बेटे की मौत का जख्म कभी नहीं भर पाएगा।

मदद की दरकार

पीड़ित परिवार को मदद की दरकार है। वह कहते हैं, बच्चों को मजदूरी कर पढ़ा रहे हैं। कई बार खुद भूखा रहकर बच्चों की फीस देनी पड़ती है।


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