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Pollution Effect: चीन से पांच गुना भारतीय बच्चों की प्रदूषण से हो रही मौत, तेजी से घट रही उम्र; पढ़ें पूरी रिपोर्ट

प्रदूषण के कारण भारत में चीन की तुलना में पांच गुना बच्‍चों की मौत हो रही है। एनसीआर में हर तीसरे बच्चे के फेफड़े में विकार और पल्मोनर हैमरेज मिल रहा है। ईपीसीए के चेयरमैन भूरेलाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र बताया है।

By Prem BhattEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 08:54 PM (IST)
Pollution Effect: चीन से पांच गुना भारतीय बच्चों की प्रदूषण से हो रही मौत, तेजी से घट रही उम्र; पढ़ें पूरी रिपोर्ट
चीन की तुलना में भारतीय बच्‍चों की मौत तेजी से हो रही है।

संतोष शुक्ल, मेरठ। एनसीआर में प्रदूषण की धुंध के साथ आंकड़े भी डराने लगे हैं। चीन की तुलना में भारत में पांच गुना बच्चों की मौत हो रही है। एनसीआर में हर तीसरे बच्चे के फेफड़े में विकार और पल्मोनर हैमरेज मिल रहा है। ईपीसीए के चेयरमैन भूरेलाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र बताते हुए आगाह किया है कि यहां बच्चों की सेहत पर गंभीर खतरा है।

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बच्चों में जेनेटिक बीमारियां भी

Environmental pollution Control Authority (EPCA) की टीम ने वेस्ट यूपी का माहभर में दो बार निरीक्षण कर रिपोर्ट शासन को भेजी है। मेरठ के लोहियानगर समेत दर्जनों स्थानों पर खतरनाक कचरा जमा मिला। नालों में खतरनाक रसायनों की गंध मिली। ईपीसीए ने मुजफ्फरनगर के जानसठ, भोपा और जौली रोड स्थित दर्जनों पेपरमिलों और बजबजाते रजवाहों का निरीक्षण किया। सफेद खतरनाक रसायनों को सुलगते हुए देखा। गहरी धुंध और रासायनिक बदबू से क्षेत्र में बड़ी संख्या में सांस एवं कैंसर के मरीज बढ़ गए हैं। चिमनियों से कार्बन डाइआक्साइड (Carbon Dioxide), कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड जैसी खतरनाक गैसें निकल रही हैं। इससे हवा में पीएम-2.5 एवं पीएम-10 का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। चौ. चरण सिंह विवि के रसायन विज्ञानी डा. आरके सोनी का कहना है कि मेरठ के रुड़की रोड व गंगानगर से निकलते नाले में हाइड्रोजन सल्फाइड की तेज गंध है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है।

ज्यादा आक्सीजन लेते हैं बच्चे

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों में निमोनिया ज्यादा हो रहा है जो उनकी मौत का बड़ा कारण है। मेडिकल कालेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डा. विजय जायसवाल का कहना है कि बच्चों में ज्यादा आक्सीजन की जरूरत पड़ती है, इसलिए सांस लेने की गति भी तेज होती है। ऐसे में उनके शरीर में आक्सीजन के साथ प्रदूषित कण भी पहुंचकर बीमारी बनाते हैं।

प्रति एक हजार में प्रदूषण से मरने वाले बच्चों की दर

- भारत-एक हजार में 48 बच्चे

- दक्षिण अफ्रीका-एक हजार में 40.5 बच्चे

- ब्राजील-एक हजार में 16.4 बच्चे

- चीन-एक हजार में 10.7 बच्चे

इनका क्‍या है मानना 

भारत में 40 फीसद बच्चे शहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां गैस चेंबर जैसे हालात बन रहे हैं। शोध में साफ हुआ है कि पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों की मौत में वायु प्रदूषण बड़ा रिस्क फैक्टर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मान चुका है कि एनसीआर के हर तीसरे बच्चे के फेफड़े में बीमारी मिल रही है। गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर में धूल व धुंध काफी ज्यादा है। -डा. भूरेलाल, चेयरमैन, ईपीसीए

बच्चों के लंग्स विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होंगे। कई बच्चों में पल्मोनरी हैमरेज मिला। फेफड़े कमजोर होने पर निमोनिया का खतरा कई गुना होता है। वजन के अनुपात में बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा आक्सीजन लेते हैं। कई बार मुंह से सांस लेने पर सूक्ष्म विषाक्त कण फेफड़े के अंदर तक दाखिल हो जाते हैं। उन्हेंं प्रदूषित हवा से हर हाल में बचाएं। -डा. अमित उपाध्याय, बाल रोग विशेषज्ञ 


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