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Ayodhya: हस्‍त‍िनापुर से पहली बार धर्म और आस्‍था को मिली थी वैज्ञानिक प्रमाणिकता

1951-52 में हस्तिनापुर में हुई खोदाई में लगभग 3200 वर्ष पुरानी सभ्यता के निशां मिले थे। धर्म और आस्था की प्रमाणिकता पर पहली मोहर हस्तिनापुर की धरती पर ही लगी थी।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 03:59 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 03:59 PM (IST)
Ayodhya: हस्‍त‍िनापुर से पहली बार धर्म और आस्‍था को मिली थी वैज्ञानिक प्रमाणिकता
Ayodhya: हस्‍त‍िनापुर से पहली बार धर्म और आस्‍था को मिली थी वैज्ञानिक प्रमाणिकता

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। अयोध्या में मंदिर निर्माण के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) की रिपोर्ट की अहम भूमिका रही। दरअसल, आस्था की वैज्ञानिक प्रमाणिकता को सुप्रीम कोर्ट से जो आज कानूनी मान्यता मिली, उसका फामरूला तो 67 वर्ष पहले मेरठ के हस्तिनापुर से निकला था। 1951-52 में हस्तिनापुर में हुई खोदाई में मिले साक्ष्यों से पहली बार धर्म और आस्था को वैज्ञानिक प्रमाणिकता मिली थी।

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एएसआइ की खोदाई के निष्कर्षो को आधार मानकर अयोध्या का जो फैसला शनिवार को आया उसी तरह एएसआइ के निर्देश पर ही बीबी लाल की अगुवाई में 1951-52 में पहली बार हस्तिनापुर में खोदाई हुई। इसमें कई सभ्यताओं के निशान मिले थे। इसमें सबसे पुरानी सभ्यता महाभारतकालीन मानी गई थी। यानी धर्म और आस्था की प्रमाणिकता पर पहली मोहर हस्तिनापुर की धरती पर ही लगी थी।

एएसआइ के अधीक्षक रहे कौशल किशोर शर्मा कहते हैं कि निश्चित तौर पर हस्तिनापुर में हुई खोदाई आजाद भारत में पहली कोशिश थी जिसमें हमारी धार्मिक मान्यताओं और आस्था को वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर प्रमाणित किया गया। हालांकि उत्खनन कार्य और आगे बढ़ाना चाहिए था, ताकि स्थिति ज्यादा स्पष्ट, प्रमाणिक और पुख्ता हो। अगर ऐसा होता तो जो थोड़ी शंकाएं हस्तिनापुर को लेकर उठाई जातीं उनका भी उत्तर मिल सकता था।

खोदाई में इन सभ्यताओं के निशान मिले थे

3200 वर्ष पुरानी सभ्यता : हस्तिनापुर की खोदाई में जो सबसे पुरानी सभ्यता मिली, वह लगभग 3200 वर्ष पुरानी थी। इसमें ऑकवर्ड कलर्ड पॉटरी और कॉपर होर्ड की वस्तुएं मिली थीं। सिनौली उत्खनन में भी इसी तरह की सभ्यता मिली है।

3100-2800 वर्ष पुरानी सभ्यता

इसी खोदाई में चित्रित धूसर मृदभांड यानी पेंटेड ग्रे वेयर मिला। कार्बन डेटिंग में यह लगभग 3100 से 2800 वर्ष पुरानी आंकी गई। इतिहासकारों ने चित्रित धूसर मृदभांड की सभ्यता को महाभारत के समकालीन बताया था। महाभारत का कालखंड भी 3100 वर्ष पूर्व का ही माना जाता है।

2600-2300 वर्ष पुरानी सभ्यता

यह बौद्ध और महावीर का समय माना जाता है। मौर्य काल के लोहे के कई उपकरण भी खोदाई में मिले थे।

1400-1200 वर्ष पुरानी सभ्यता

यह कालखंड सल्तनत काल का है। इस समय के मंदिरों के अवशेष मिले थे। हालांकि जो प्रमाण मिले, उससे ऐसा लगता है कि तब तक हस्तिनापुर अपना मूल स्वरूप खो चुका था और यहां छोटा-मोटा रिहायशी इलाका ही रहा होगा।

2100-1800 वर्ष पुरानी सभ्यता

इस कालखंड में सूंग, कुषाण, शाख सभ्यता के लोगों की मौजूदगी इसी कालखंड की मानी जाती है। हस्तिनापुर की माटी के नीचे से बीबी लाल और उनकी टीम को इस सभ्यता के लोगों की बसावट के साक्ष्य मिले थे।


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