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परंपरागत नहीं औषधीय खेती में बढ़ रहा किसानों का रुझान, इस तरह दोगुनी हुई आय

कई गांवों के किसान औषधीय खेती कर रहे हैं। इसमें ओरिगेनों थाइम लैमन ग्रास मोरिंगा जर्मन कमोमाइल आदि प्रमुख है। अनेक किसानों ने पारंपरिक खेती से तौबा कर औषधीय खेती को तवज्जो दी तो धरती ने सोना उगलना शुरू कर दिया।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 11:33 AM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 11:33 AM (IST)
परंपरागत नहीं औषधीय खेती में बढ़ रहा किसानों का रुझान, इस तरह दोगुनी हुई आय
सहारनपुर में औषधीय खेती कर रहे क‍िसान।

सहारनपुर, बृजमोहन मोगा। परंपरागत खेती की बढ़ती लागत और घटती आमदनी से किसानों का रूझान औषधीय खेती की ओर बढ़ रहा है। कई गांवों के किसान औषधीय खेती कर रहे हैं। इसमें ओरिगेनों, थाइम, लैमन ग्रास, मोरिंगा, जर्मन कमोमाइल आदि प्रमुख है। अनेक किसानों ने पारंपरिक खेती से तौबा कर औषधीय खेती को तवज्जो दी तो धरती ने सोना उगलना शुरू कर दिया। इस तब्दीली ने न सिर्फ किसानों की जेब भारी की बल्कि जमीन को भी सेहत की सौगात दे दी।

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ऐसे हुई शुरुआत

जिले के गांव हलालपुर निवासी किसान मदन लाल सैनी ने कुछ साल पहले परंपरागत खेती छोड़ राष्ट्रीय औद्योगिक मिशन के अंर्तगत औषधीय फसलों की खेती शुरू की। इसी बीच उनकी मुलाकात अमेरिका समेत कई देशों को औषधीय उत्पादों की आपूर्ति करने वाली फ्लैक्स फूड कंपनी के वरिष्ठ प्रसार अधिकारी डेनमार्क निवासी जान जारगन लार्सन से हुई थी। लार्सन ने 2004 में उनके गांव का भ्रमण किया और पारसले, ओरिगेनो व अन्य औषधीय खेती की उत्पादन तकनीक, आर्थिक लाभ आदि की जानकारी दी थी। मदनलाल ने आसपास के गांव बालपुर, हलालपुर, शाहपुर, शकलापुरी सहित आधा दर्जन गांवों में किसानों को औषधीय खेती के लिए प्रेरित किया और कुछ वर्ष पहले तक किसानों ने ओरिगेनों, मारजोरम, थाइम, सेज, पारसले, बेसिल, लकी आदि की खेती की परंतु अब कुछ ही किसान सिर्फ ओरिगेनों व थाइम की खेती कर रहे हैं। कुछ किसानों ने इनके स्थान पर दूसरी औषधीय खेती शुरु की है। वर्तमान में हलालपुर गांव के पदम सिंह राणा व सहारनपुर के अनिल बंसल आदि किसान ओरिगेनों की खेती कर रहे हैं। जबकि बालपुर के मोहित, महावीर सिंह व मोहन सिंह आदि किसान थाइम की औषधीय खेती कर रहे हैं।

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ी

कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ अपनी देखरेख में ओरिगेनों व थाइम आदि खेती कराते हैं। किसानों के मुताबिक, इन फसलों के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती। ओला, पाला व बेमौसम बारिश का भी कुप्रभाव नहीं पड़ता। जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है।

ऐसे होता है औषधीय प्रयोग

मदनलाल बताते हैं कि वह पिछले 17 साल से औषधीय खेती कर रहे हैं। ओरिगेनो का प्रयोग कैंसररोधी दवाएं बनाने में किया जाता है। जबकि थाइम खून को पतला करता है। लैमन ग्रास का तेल कई बीमारियों में काम आता है।

औषधीय खेती में दुगना लाभ

बालपुर के किसान मदनलाल सैनी का कहना है कि औषधीय खेती में गन्ना, धान, गेहूं आदि की तुलना में दोगुना लाभ मिलता है। धान या गेहूं में पांच हजार रुपये प्रतिबीघा के हिसाब से भी बचत नहीं हो पाती। जबकि औषधीय फसलों की खेती में किसानों को इससे कहीं ज्यादा लाभ होता है।


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