बच्चियों का यौन शोषण : Page 3 फिल्म थी, रोंगटे खड़े कर देने वाली ये कहानी असली है
2005 में बनी मूवी-पेज-3 की कहानी से मिलती-जुलती घटनाओं की जड़ में जटिल मानसिक विकार हैंजो शहरी एकांत के सन्नाटे में पलती है। रिटायर अफसर की करतूत से शहर शर्मसार है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Sat, 04 May 2019 11:14 AM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 11:14 AM (IST)
मेरठ,जेएनएन। जागृति विहार कॉलानी में एलआइसी के रिटायर अफसर द्वारा बच्चियों के साथ यौन शोषण के सनसनीखेज मामले ने शहरवासियों को झकझोर कर दिया है। मेट्रो कल्चर का साइड इफेक्ट कहें या नैतिकता की टूटती डोर। छोटे शहरों में भी रोंगटे खड़े कर देने वाली कुंठा फन उठा चुकी है। 2005 में बनी मूवी-पेज-3 की कहानी से मिलती-जुलती घटनाओं की जड़ में जटिल मानसिक विकार हैं,जो शहरी एकांत के सन्नाटे में पलती है। रिटायर अफसर की इस करतूत से शहर शर्मसार है।
मर्यादाओं को लगातार रौंद रहे
मेडिकल कालेज की रिपोर्ट बताती है कि यौन कुंठा के नाग दर्जनों मासूमों को डस चुके हैं। यौन सुख की तलाश में भटकते व्यक्ति मर्यादाओं को रौंद देते हैं। ऐसा व्यक्ति क्रूर भी होता है। जागृति विहार में लंबे समय से एक व्यक्ति बच्चियों के साथ यौन संबंध बना रहा था। सीसीटीवी फुटेज में वो एक साथ कई लड़कियों के साथ लिप्त नजर आ रहा है।
कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन
मानसिक रोग विशेषज्ञों ने इसे ‘कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन’बताया है। इसमें व्यक्ति सामान्य व्यवहार से हटकर क्रियाकलाप करता है। मनोचिकित्सकों ने इसे ‘सेक्सुअल परवर्जन यानी भटकाव’कहा है। व्यक्ति छोटे-छोटे बच्चों के अलावा बकरी,कुत्ते एवं अन्य जानवरों के साथ भी यौन व्यवहार करता है।
अपना ही वीडियो देखने का रोग
ऐसे व्यक्ति घटना को निंदनीय जानते हुए भी अपराध करते हैं। सुख के लिए भटकाव में ऐसे मनोरोगी अपनी अश्लील वीडियो तक बनाते हैं। पड़ताल में ये भी पता चला है कि ज्यादातर मरीज परिवार में अलग-थलग या हीन भावना के शिकार होते हैं। उन्हें अपनी गलती का पूरा पता होता है,लेकिन कंपल्सिव-आवेगात्मक व्यवहार उन्हें अपराध के लिए बाध्य करता है। विशेषज्ञों ने इसे ओसीडी-आब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर से मिलती-जुलती बीमारी बताया है, जिसमें व्यक्ति बार-बार हाथ धोता है या ताला बंद करने के बाद इसे कई बार चेक करता है। जबकि उसे पता होता है कि ये असामान्य व्यवहार है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
ये न्यूरोसाइकेटिक और साइक्लोजिकल दोनों ही बीमारी है। अपना ही वीडियो बनाकर उसे देखना वायरिज्म का रोग है, जिसके जरिए व्यक्ति सुख की तलाश करता है। ये कुंठा से भरा हुआ डिसआर्डर है, जिससे मासूमों को बनाने की जरूरत है। इनके संबंध बनाने से मासूम बच्चों में कई प्रकार के घातक यौन रोग हो सकते हैं।
- डा.सुनील जिंदल, वरिष्ठ एंड्रोलाजिस्ट
ये ‘कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन’ बीमारी है। इसमें ‘सेक्सुअल परवर्जन’ यानी सामान्य से हटकर बच्चों व जानवरों के साथ भी संबंध बना सकता है। ये मानसिक बीमारी शहरी चकाचौंध में तेजी से बढ़ रही है। व्यक्ति अपने संवेगों को रोक नहीं पा रहा, जबकि उसे गलती का पता होता है। ऐसे व्यक्ति संवेदनहीन व क्रूर भी होते हैं। इसमें हाइड्रो ट्राप्टोएमीन हार्मोन्स की कमी मिलती है।
- डा. सत्यप्रकाश, न्यूरो साइकेटिस्ट
पैराफीलिया बीमारी के संकेत
घटना की परतें उधड़ने के साथ ही यौनाचार की मानसिक बीमारी से संबंधित कई तथ्य सामने आए हैं। मेडिकल कालेज में न्यूरोसाइकेटिस्ट रहे डा.सत्यप्रकाश बताते हैं कि इस बीमारी को पैराफीलिया कहते हैं। ये यूरोपीय देशों की बीमारी कही जाती थी जो मेरठ जैसे छोटे शहरों तक पहुंच गई। इस बीमारी में व्यक्ति का सामान्य व्यवहार बदल जाता है। कई युवकों में युवतियों से संबंध बनाने में दिलचस्पी नहीं होती,जो ऐसी ही बीमारी है।
हार्मोन्स की कमी
न्यूरोसाइकेटिस्ट बताते हैं कि ऐसे मानसिक मरीजों में हाइड्रो ट्राप्टोएमीन हार्मोन्स की कमी मिलती है। इसी वजह से व्यक्ति जानवरों तक से भी यौन व्यवहार की ओर भटक जाता है। इसकी कोई दवा नहीं है। सिर्फ विहैवियरल थेरपी देकर मरीज को नियंत्रित किया जाता है।
मर्यादाओं को लगातार रौंद रहे
मेडिकल कालेज की रिपोर्ट बताती है कि यौन कुंठा के नाग दर्जनों मासूमों को डस चुके हैं। यौन सुख की तलाश में भटकते व्यक्ति मर्यादाओं को रौंद देते हैं। ऐसा व्यक्ति क्रूर भी होता है। जागृति विहार में लंबे समय से एक व्यक्ति बच्चियों के साथ यौन संबंध बना रहा था। सीसीटीवी फुटेज में वो एक साथ कई लड़कियों के साथ लिप्त नजर आ रहा है।
कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन
मानसिक रोग विशेषज्ञों ने इसे ‘कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन’बताया है। इसमें व्यक्ति सामान्य व्यवहार से हटकर क्रियाकलाप करता है। मनोचिकित्सकों ने इसे ‘सेक्सुअल परवर्जन यानी भटकाव’कहा है। व्यक्ति छोटे-छोटे बच्चों के अलावा बकरी,कुत्ते एवं अन्य जानवरों के साथ भी यौन व्यवहार करता है।
अपना ही वीडियो देखने का रोग
ऐसे व्यक्ति घटना को निंदनीय जानते हुए भी अपराध करते हैं। सुख के लिए भटकाव में ऐसे मनोरोगी अपनी अश्लील वीडियो तक बनाते हैं। पड़ताल में ये भी पता चला है कि ज्यादातर मरीज परिवार में अलग-थलग या हीन भावना के शिकार होते हैं। उन्हें अपनी गलती का पूरा पता होता है,लेकिन कंपल्सिव-आवेगात्मक व्यवहार उन्हें अपराध के लिए बाध्य करता है। विशेषज्ञों ने इसे ओसीडी-आब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर से मिलती-जुलती बीमारी बताया है, जिसमें व्यक्ति बार-बार हाथ धोता है या ताला बंद करने के बाद इसे कई बार चेक करता है। जबकि उसे पता होता है कि ये असामान्य व्यवहार है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
ये न्यूरोसाइकेटिक और साइक्लोजिकल दोनों ही बीमारी है। अपना ही वीडियो बनाकर उसे देखना वायरिज्म का रोग है, जिसके जरिए व्यक्ति सुख की तलाश करता है। ये कुंठा से भरा हुआ डिसआर्डर है, जिससे मासूमों को बनाने की जरूरत है। इनके संबंध बनाने से मासूम बच्चों में कई प्रकार के घातक यौन रोग हो सकते हैं।
- डा.सुनील जिंदल, वरिष्ठ एंड्रोलाजिस्ट
ये ‘कंपल्सिव सेक्सुअल एडिक्शन’ बीमारी है। इसमें ‘सेक्सुअल परवर्जन’ यानी सामान्य से हटकर बच्चों व जानवरों के साथ भी संबंध बना सकता है। ये मानसिक बीमारी शहरी चकाचौंध में तेजी से बढ़ रही है। व्यक्ति अपने संवेगों को रोक नहीं पा रहा, जबकि उसे गलती का पता होता है। ऐसे व्यक्ति संवेदनहीन व क्रूर भी होते हैं। इसमें हाइड्रो ट्राप्टोएमीन हार्मोन्स की कमी मिलती है।
- डा. सत्यप्रकाश, न्यूरो साइकेटिस्ट
पैराफीलिया बीमारी के संकेत
घटना की परतें उधड़ने के साथ ही यौनाचार की मानसिक बीमारी से संबंधित कई तथ्य सामने आए हैं। मेडिकल कालेज में न्यूरोसाइकेटिस्ट रहे डा.सत्यप्रकाश बताते हैं कि इस बीमारी को पैराफीलिया कहते हैं। ये यूरोपीय देशों की बीमारी कही जाती थी जो मेरठ जैसे छोटे शहरों तक पहुंच गई। इस बीमारी में व्यक्ति का सामान्य व्यवहार बदल जाता है। कई युवकों में युवतियों से संबंध बनाने में दिलचस्पी नहीं होती,जो ऐसी ही बीमारी है।
हार्मोन्स की कमी
न्यूरोसाइकेटिस्ट बताते हैं कि ऐसे मानसिक मरीजों में हाइड्रो ट्राप्टोएमीन हार्मोन्स की कमी मिलती है। इसी वजह से व्यक्ति जानवरों तक से भी यौन व्यवहार की ओर भटक जाता है। इसकी कोई दवा नहीं है। सिर्फ विहैवियरल थेरपी देकर मरीज को नियंत्रित किया जाता है।
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