CoronaEffect: हर गली, कालोनी कर रही सैनिटाइजेशन की मांग, आपदा से निपटने की तैयारी Meerut News
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लोग घरों में कैद हैं। घर के अंदर लोग वह सारे एहतियात बरत रहे हैं जो विशेषज्ञ बता रहे हैं। इनदिनों सैनिटाइजेशन की डिमांड बढ़ गई है।
मेरठ, [दिलीप पटेल]। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लोग घरों में कैद हैं। घर के अंदर लोग वह सारे एहतियात बरत रहे हैं जो विशेषज्ञ बता रहे हैं। लेकिन घर के बाहर की भी उन्हें चिंता है। क्योंकि जरूरी वस़्तुओं की खरीदी के लिए लोगों का निकलना ही पड़ेगा। ऐसे में हर कॉलोनी सैनिटाइजेशन की डिमांड कर रही है। लोग बिल्कुल हाथ की धुलाई की तरह ही सड़क, नाली, नाले और कचरा डंपिंग स्थलों पर दवा छिड़काव चाहते हैं। लेकिन नगर निगम लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा है। कहने को 22 वाहन लगा रखे हैं। लेकिन इनकी मॉनीटरिंग नहीं हो रही है। जब से संक्रमित मरीजों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से समस्या और बढ़ गई है। लोग फोन कर रहे हैं। कंट्रोल रूम से वाहन भेजने के आश्वासन दिए जा रहे हैं। पर पहुंच नहीं रहे।
आपदा से निपटने की तैयारी
कोरोना की दस्तक तो अचानक ही मानी जाएगी। इसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की थी। लेकिन अब सबक लेने की जरूरत है। जिला प्रशासन और नगर निगम के पास आपदा से निपटने के इंतजाम नाकाफी हैं। कोरोना के मरीज जब मिलने शुरू हुए तब नगर निगम को आश्रय स्थलों की याद आई। जब संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तो सैनिटाइजेशन के लिए पीठ वाली दवा छिड़काव की मशीने खरीदी गईं। जरूरतें पूरी करने में विभाग एक-दूसरे का मुंह ताकते नजर आए। दरअसल, आपदा को लेकर कोई तैयारी ही नहीं है। शहर की 20 लाख की आबादी है। दो बार बारिश में जलभराव की स्थिति भी बन चुकी है। आज कोरोना है कल कोई दूसरा वायरस भी हो सकता है। इस बात को ध्यान में रखकर जरूरी संसाधन जुटाने होंगे। निगम का काम सुविधाएं देने का है। बोर्ड फंड में आपदा पर बात करनी होगी।
निगम कर्मियों का बड़ा दिल
सफाई और पेयजल की सेवाएं करने वाले नगर निगम ने संकट के दौर में बड़ा दिल दिखाया है। जहां एक ओर नगर निगम अधिकारियों और कर्मचारियों ने एक दिन के वेतन से कम्युनिटी किचन शुरू कर दी। वहीं महापौर ने अपनी अलग कम्युनिटी किचन शुरू की। दोनों किचन से प्रतिदिन 6000 से अधिक लोगों तक भोजन के पैकेट पहुंच रहे हैं। गौर करने वाली बात ये है कि प्रस्ताव नगर आयुक्त ने जब रखा तो उन्हें भी यह यकीन नहीं था कि फौरन उनके कर्मचारी हां कर देंगे। अधिकारी तो तैयार ही थे, इंजीनियर, बाबू यहां तक कि सफाई कर्मचारियों ने भी एक दिन का वेतन देने में गुरेज नहीं की। याद है ये वही सफाई कर्मचारी हैं जो अक्सर वेतन के लिए ही नगर आयुक्त कार्यालय घेरते रहे हैं। पर जब जरूरत पड़ी तो सबसे पहले हामी भरने वालों में वही लोग मौजूद थे।
अब कचरा न लौटे दोबारा
कोरोना वायरस के भय से ही सही। शहर साफ-सुथरा दिखने लगा है। बाजार हो या फिर संकरी गलियां लॉकडाउन के बाद से कचरे के ढेर नजर नहीं आ रहे हैं। लोग घरों में बैठे हैं। वायरस के डर से जरा-जरा सा कचरा सड़क पर फेंकने की आदत जहां छूट गई है वहीं, नगर निगम की सफाई को लेकर बेताबी भी सड़क पर नजर आई। लेकिन यह बरकरार रखना चुनौती है। कोरोना वायरस का प्रकोप अगर एक-दो महीने में खत्म हो गया तो बारिश का मौसम आने वाला है। ऐसे में कचरा सड़क पर दोबारा न लौटे, इसके लिए नगर निगम को अब मुस्तैद रहना होगा। शहर के लिए यह सबक लेने का समय है कि जो व्यवस्थाएं लॉकडाउन के समय कर सकते हैं। ऐसी ही व्यवस्था लॉकडाउन समाप्त होने के बाद क्यों नहीं हो सकती है। इसके लिए कुछ लोग सोंच बदलें और कुछ निगम भी।