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Equestrian Competition: यहां घोड़ों की हर चाल में है नया खेल Meerut News

यूं तो घोड़े रफ्तार के लिए पहचाने जाते हैं लेकिन आरवीसी में चल रही प्रतियोगिताओं में अगर आप कुछ समय बिताएं तो यह भ्रम दूर हो जाएगा।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sat, 14 Mar 2020 04:25 PM (IST)Updated: Sat, 14 Mar 2020 04:25 PM (IST)
Equestrian Competition: यहां घोड़ों की हर चाल में है नया खेल Meerut News
Equestrian Competition: यहां घोड़ों की हर चाल में है नया खेल Meerut News

मेरठ, [अमित तिवारी]। मेरठ में इन दिनों छावनी के रिमाउंट वेटनरी कोर सेंटर एंड कॉलेज में घुड़सवारी प्रतियोगिता चल रही है। यूं तो घोड़े रफ्तार के लिए पहचाने जाते हैं, लेकिन आरवीसी में चल रही प्रतियोगिताओं में अगर आप कुछ समय बिताएं तो यह भ्रम दूर हो जाएगा। यहां इनाम लंबी छलांग भरने का है तो धीमी चाल का भी उतना ही मोल। जमीन पर पड़े पेग को उठाने के लिए रफ्तार भरना अगर किसी को रोमांचित करता है तो कहीं जंगल की तमाम विषमताओं को एक-एक लांघने का प्रदर्शन भी खेल का हिस्सा है। इवेंटिंग में ड्रेसाज, शो-जंपिंग, क्रॉस कंट्री के अलावा टेंट पेगिंग, पोलो, एंडुरेंस आदि ऐसे खेल हैं, जो घोड़ों की प्रतिभा को गहराई से बताते हैं, समझाते हैं। यूरोपियन देशों में घुड़सवारी शीर्ष पर है तो भारतीय घुड़सवारी भी एशिया में अव्वल दर्जे तक पहुंच चुकी है। खेल के मैदान में मनुष्य व घोड़े के बीच का तालमेल ही घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में पदकों के रंग में दिखती है। आइए, हम आज आपको लिए चलते हैं मेरठ छावनी के इक्वेस्ट्रियन नोड में और घुड़सवारी के रोमांचकारी खेलों के बारे में थोड़ा जान लेते हैं।

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वर्ष 1921 में गठित हुई संस्था

घुड़सवारी की अंतरराष्ट्रीय संस्था फेडरेशन इक्वेस्टर इंटरनेशनेल (एफईआइ) का गठन वर्ष 1921 में बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, जापान, नॉर्वे, स्वीडन और अमेरिका के राष्ट्रीय संगठनों के साथ हुआ। वर्तमान में स्वीटजरलैंड स्थित एफईआइ मुख्यालय के अंतर्गत दुनियाभर के 134 नेशनल इक्वेस्ट्रियन फेडरेशन नामित हैं। हालांकि इससे पहले वर्ष 1907 में इंग्लैंड में आयोजित ओलंपिया में पहला शो-जंपिंग का बड़ा आयोजन हुआ था। तब घुड़सवारी के कोई नियम निर्धारित नहीं थे। वर्ष 1917 में अमेरिकन हॉर्स शो एसोसिएशन का गठन हुआ और वर्ष 1925 में ब्रिटिश शो-जंपिंग एसोसिएशन का गठन किया गया। भारत में आजादी के बाद मेजर जनरल आरकेआर बालासुब्रमण्यम की अगुवाई में सेना के घुड़सवार दिल्ली हॉर्स शो का आयोजन 50 व 60 के दशक में करते थे। उनकी मदद से ही 14 मार्च 1967 को नेशनल इक्वेस्ट्रियन फेडरेशन ऑफ इंडिया का गठन हुआ। वर्ष 1971 में भरतीय फेडरेशन ने एफईआर से मान्यता ली और वर्ष 1982 से भारतीय घुड़सवार एशियन गेम्स में हिस्सा ले रहे हैं।

आठ खेलों को है अंतरराष्ट्रीय मान्यता

एफईआइ ने सामान्य व पैरा इक्वेस्ट्रियन के अंतर्गत घुड़सवारी के आठ खेलों को मान्यता प्रदान की है। इनमें ड्रेसाज, ड्राइविंग, एंडुरेंस, इवेंटिंग, पैरा इक्वेस्ट्रियन, रीनिंग, शो-जंपिंग और इक्वेस्ट्रियन वॉल्टिंग हैं। इनमें से भारत में इवेंटिंग के अंतर्गत ड्रेसाज, शो-जंपिंग और क्रॉस कंट्री के अलावा एंडुरेंस, पोलो और टेंट पेगिंग के घुड़सवारी इवेंट होते हैं। भारत में पैरा इक्वेस्ट्रियन का कोई खेल नहीं होता है। इसके अलावा वॉल्टिंग, रीनिंग और ड्राइविंग की घुड़सवारी प्रतियोगिताएं भी यहां नहीं होती हैं। देश में दिल्ली, मेरठ, बेंगलुरू, चंडीगढ़, जयपुर, कोलकाता, चेन्नई, पांडीचेरी, पुणे, मुंबई और भोपाल में घुड़सवारी खेलों के संसाधन व्याप्त हैं। ओलंपिक्स में घुड़सवारी कुछ ऐसे खेलों में शामिल हैं जहां महिला व पुरुष प्रतिभागी एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिभाग करते हैं।

इवेंटिंग में होते हैं घुड़सवारी के तीन खेल

घुड़सवारी के इवेंटिंग खेल में ड्रेसाज, क्रॉस कंट्री और शो-जंपिंग, तीनों शामिल हैं। यह खेल तीन दिनों तक चलता है। इसमें सबसे पहले ड्रेसाज होता है। इसमें एक छोटे से एरिना में घुड़सवार घोड़े के साथ धीमी चाल के साथ निर्धारित समय में आगे-पीछे, दायें-बायें चलते हुए अपने तालमेल का प्रदर्शन करते हैं। इसमें बेहद बारीक गलतियों पर भी पेनाल्टी मिलती है इसलिए घुड़सवारों को सबसे अधिक पेनाल्टी इसी इवेंट में मिलती है। इसके बाद क्रॉस कंट्री में तीन से चार किमी के जंगली क्षेत्र में निचले स्तर की प्रतियोगिता में 12 से 20 और उच्च स्तरीय प्रतियोगिता में 30 से 40 फेंस यानी बाधाओं को पार करना होता है। रास्ते में गड्ढे व पानी के छोटे तालाब को भी पार करना होता है। इसमें घोड़े और घुड़सवार की फिटनेस बेहद जरूरी है। ट्रैक से बाहर जाने और फेंस को पार करने से घोड़े के मना करने पर पेनाल्टी मिलती है, जो ड्रेसाज की पेनाल्टी में जुड़ती है। इवेंटिंग में अंतिम इवेंट शो-जंपिंग होता है। इसमें एक बड़े एरिना में एक से 1:40 मीटर ऊंचे तक के फेंस बने होते हैं। इसके लिए निर्धारित 70 से 72 सेकेंड में सभी बाधाओं को बिना इन पर लगी बल्ली गिराए पार करना होता है। हर गिरती बल्ली के साथ चार पेनाल्टी मिलती हैं। तीनों इवेंट में सबसे कम पेनाल्टी पाने वाला घुड़सवार इवेंटिंग का विजेता होता है।

बदल गया इवेंटिंग का स्तर

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घुड़सवारी के खेल से अधिक से अधिक देशों को जोडऩे के लिए एफईआइ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की घुड़सवारी प्रतियोगिता कांकर काम्प्लेट इंटरनेशनल (सीसीआइ) में बदलाव करते हुए अब इसे फाइव स्टार गेम बना दिया गया है। इसमें सीसीआइ फोर-स्टार को ही फाइव स्टार बनाते हुए सीसीआइ वन-स्टार को थोड़ा आसान किया है। भारत में जो नोविस इवेंटिंग होता था, वह अब सीसीआइ वन-स्टार इंट्रो है। भारत में अब तक सीसीआइ के टू-स्टार चैंपियनशिप ही होती थी, लेकिन साल 2019 से थ्री-स्टार इवेंटिंग प्रतियोगिताएं होने लगीं। एशियन गेम्स में अब तक सीसीआइ वन-स्टार स्तर की घुड़सवारी होती थी, जो अब टू-स्टार हो गई है। सीसीआइ टू, थ्री व फोर स्टार इवेंट में लांग व शॉर्ट दोनों होता है। शॉर्ट इवेंट में क्रॉस कंट्री की दूरी कम होती है जबकि जंपिंग की बाधाएं अधिक होती हैं। ओलंपिक्स में सीसीआइ फोर-स्टार होता है। सीसीआइ फाइव-स्टार का इवेंट केवल इंग्लैंड के बैडमिंटन व बर्गली में ही होता है।

भारत में शुरू हुआ टेंट पेगिंग

टेंट पेगिंग के खेल में अत्यधिक स्पीड और घुड़सवार की पैनी नजर के साथ सटीक निशाना बेहद जरूरी होता है। इसकी शुरुआत भारतीय युद्ध इतिहास में दिखती है, जब दुश्मन की छावनी पर औचक हमला करने के दौरान तंबू खड़ा करने के लिए लगे पेग यानी खूंटे से रस्सी बांधी जाती थी। तेजी से आगे चलते हुए घुड़सवारों का दल उन्हीं खूटों को भाले से उखाड़ते हुए आगे बढ़ते और पीछे की टुकड़ी तंबू में फंसे दुश्मन सैनिकों पर हमला करती। इसी तरह टेंट पेगिंग प्रतियोगिता में जमीन पर पेग लगाए जाते हैं। इसमें करीब सौ मीटर की दूरी से घुड़सवार को एक हाथ में घोड़े की लगाम और दूसरे हाथ में भाला पकड़े पूरी रफ्तार के साथ बढ़ते हुए जमीन पर लगे पेग पर भाला मारना होता है। इसमें एकल व टीम प्रतिस्पर्धा भी होती है। पेग में भाला घुसने पर ही प्वाइंट मिलते हैं।

एंडुरेंस में परखा जाता है घोड़े का धैर्य

एंडुरेंस का मतलब धैर्य होता है। इस प्रतियोगिता में घुड़सवार को घोड़े के साथ लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। इसमें घुड़सवार और घोड़े को बेहद धैर्य के साथ आगे बढऩा पड़ता है जिससे घोड़े की धड़कन काबू में रहे। इसमें 16 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ही घोड़े को ले जाने की इजाजत होती है। एंडुरेंस की प्रतियोगिता में सफर में अनिवार्य पड़ाव होते हैं, जहां घोड़े को ठंडा करना पड़ता है। रुकने के 20 मिनट के बाद घोड़े की हृदय गति 64 बीट्स प्रति मिनट या उससे कम होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही घोड़े को आगे की प्रतियोगिता के लिए फिट माना जाता है। 20 मिनट में पल्स डाउन न होने पर घोड़े की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसे डिसक्वालीफाई कर दिया जाता है। एंडुरेंस प्रतियोगिता में 20, 40, 60 और 80 किमी तक की प्रतियोगिता होती है। वर्ष 1900 की शुरुआत में एंडुरेंस राइडिंग की शुरुआत सेना के घुड़सवारों के लिए किया गया था। उन्हें पांच दिन तक करीब 300 मील यानी 483 किलोमीटर तक चलने के लिए प्रशिक्षित किया गया। कैवेलरी टेस्ट को 1950 की शुरुआत में स्पोट्र्स से जोड़ा गया। दूरी कम होती गई और प्रतिभागिता बढ़ती गई। 1978 में एफईआइ ने एंडुरेंस को इंटरनेशनल स्पोर्ट की मान्यता दी।

पोलो यानी घोड़े पर बैठकर हॉकी

घुड़सवारी खेलों में पोलो को आम भाषा में घोड़े पर बैठकर हॉकी खेलना कहा जाता है। हालांकि अब पोलो प्रचलित शब्द है। इसमें चार-चार घुड़सवारों की दो टीमें घोड़े पर सवार होकर बड़ी हॉकी जैसी स्टिक से लकड़ी या प्लास्टिक की गेंद को प्रतिद्वंद्वी टीम के गोल में डालने की कोशिश करते हैं। आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज ही एक ऐसी संस्था है जिसमें ड्रेसाज, शो-जंपिंग, क्रॉस कंट्री, टेंट पेगिंग, एंडुरेंस और पोलो ग्राउंड एक ही परिसर में स्थित है।

यह भी खेल होते हैं बेहद रोमांचकारी

भारत में न होने वाले घुड़सवारी खेलों में ड्राइविंग बेहद रोमांचक है। इसमें घोड़ा गाड़ी का इस्तेमाल होता है जिसमें एक, दो या चार घोड़े लगे रहते हैं। तीन लोग सवार होकर इस इवेंट के ड्रेसाज, क्रॉस कंट्री और बाधाओं को पार करते हैं। इसमें जंपिंग नहीं होती लेकिन निर्धारित रास्ते पर रफ्तार के साथ बचते हुए निकलना पड़ता है। रीनिंग के खेल में घुड़सवार घोड़े को एक गोलाकार में गोल-गोल घुमाते और रोकते हैं। इसे कैंटर भी कहा जाता है। वहीं इक्वेस्ट्रियन वॉल्टिंग में घुड़सवार घोड़े के ऊपर जिमनास्टिक के करतब या डांस करते हुए आगे बढ़ता है। यह नजारा अक्सर सर्कस में देखने को मिलता रहा है। 


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