प्राणवायु प्राण लेने को आतुर, नहीं समझे तो बंद हो जाएगी सांसें Meerut News
पर्यावरणविद अनिल जोशी ने कहा कि अभी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यह विकास का विनाश रूप है। हमने हर चीज को जीडीपी से जोड़ दिया है। यह उसी का परिणाम है।
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। जिस प्राणवायु को हम जीवन का आधार मानते हैं, वही प्राणवायु आज प्राण लेने को आतुर है। समय रहते हुए अगर हम चेते नहीं तो भयंकर प्रभाव देखने को मिलेगा। यह कहना है पर्यावरणविद अनिल जोशी का। जो बुधवार को डीएन डिग्री कॉलेज में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उद्घाटन करने आए थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि अभी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यह विकास का विनाश रूप है। हमने हर चीज को जीडीपी से जोड़ दिया है। यह उसी का परिणाम है। दिल्ली को देश का दिल कहते हैं। आज उस दिल पर ही संकट गहराया है।
तो नीति नियंताओं की चिंता बढ़ने लगी है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण और पर्यावरण को लेकर हर वर्ग को जागरूक होना पड़ेगा। देश में मेरठ और इंदौर दो ऐसे शहर हैं जहां से पर्यावरण को लेकर एक बड़े आंदोलन की तैयारी की गई है। उन्होंने बताया कि आज पर्यावरण और प्रदूषण दोनों में प्राकृतिक विकल्पों का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि जो भी विकल्प तैयार हो रहे हैं वह प्रकृति के खिलाफ है। वाटर प्यूरीफायर या एयर प्यूरीफायर से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। जिन घरों में यह लगे हैं उन्हें भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
डीएन कालेज परिसर का पूरा पानी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जमीन के अंदर जाएगा
बुधवार को डीएन डिग्री कॉलेज में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उद्घाटन किया गया। जागरूक नागरिक एसोसिएशन की जल संरक्षण को लेकर चलाई मुहिम के तहत इस सिस्टम को डीएन कॉलेज में लगाया गया है। इसका लोकार्पण पर्यावरणविद् डॉ अनिल जोशी ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बीएस यादव प्राचार्य ने की संचालन अनीता पुंडीर ने किया।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जरूरी
अनिल जोशी ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या, पानी का बारिश बाजारीकरण, ग्लोबल वार्मिंग औद्योगीकरण के कारण जल का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इस समस्या से निपटने के लिए यदि कोई सबसे सरल उपाय है तो वह जल संचय है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित कर वर्षा के जल को फिल्टर कर भूजल में समाहित किया जा सकता है ।जिससे धरती की कोख भी भरेगी और जल का स्तर भी बढ़ेगा। संस्था के सचिव गिरीश शुक्ला ने बताया कि धरती के अंदर लगातार गिरते भूजल स्तर को सुधारना है तो बरसा काजल संरक्षित करना।