सुनिए वित्त मंत्री जी : शिक्षा क्षेत्र को चाहिए ऐसी संजीवनी जो दुश्वारियों को कर सके दूर Meerut News
मेरठ और सहारनपुर मंडल के एक हजार से अधिक कॉलेजों के बोझ से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय दबा हुआ है। इस बार बजट से शिक्षा के क्षेत्र को काफी उम्मीदें हैं।
मेरठ, जेएनएन। मेरठ और सहारनपुर मंडल के एक हजार से अधिक कॉलेजों के बोझ से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय दबा हुआ है। सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों को लेकर कोई एक मानक नहीं है। माध्यमिक शिक्षा सरकारी और निजी खेमे में बटी हुई है। निजी स्कूलों में अमीर और गरीब की खाई बढ़ती जा रहा है। तमाम अवरोधों के बीच शिक्षा आगे बढऩे की कोशिश कर रही है। शिक्षा क्षेत्र में एक ऐसी संजीवनी चाहिए जो इन दुश्वारियों को दूर कर उसे आगे बढ़ाने में मदद करे।
स्कूलों को फर्नीचर की दरकार
मेरठ एजुकेशन हब के तौर पर उभर रहा है। उच्च शिक्षा की बात करें तो दो राज्य विश्वविद्यालय है। तीन निजी विश्वविद्यालय भी चल रहे हैं। 42 से अधिक मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेज छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं। प्राइमरी और सेकेंडरी के एक हजार से अधिक स्कूल बच्चों की शिक्षा दे रहे हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में अभी तक बच्चों के फर्नीचर तक की व्यवस्था नहीं हो पाई है।
व्यवस्था बनाए जाने की जरूरत
सरकारी माध्यमिक स्कूलों के पास वेतन के अलावा अपने लैब और छात्रों को अन्य सुविधा देने के लिए किसी तरह के बजट का प्रावधान नहीं है। निजी स्कूलों पर इतने तरह के टैक्स हैं, कि वह शिक्षा को महंगी करने के लिए मजबूर हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर जो शोध कार्य के लिए सरकार फंड दे रही है, उसका कितना उपयोग हो रहा है। उसकी निगरानी करने के लिए कोई एजेंसी नहीं है। सहारनपुर में राज्य विश्वविद्यालय की घोषणा हो गई, लेकिन अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाया। इसकी वजह से चौ. चरण सिंह विवि पर बोझ है। इसे लेकर व्यवस्था बनाए जाने की जरूरत है।
ये है शिक्षा जगत की अपेक्षा
उच्च शिक्षण संस्थानों में रिक्त पद भरे जाएं।
शिक्षा क्षेत्र में बजट बढ़ाया जाए।
राज्य विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जाए।
व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
शिक्षित युवाओं के रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था हो।
इनका कहना है
उच्च शिक्षा में सरकारी और गैरसरकारी तंत्र में दोनों जवाबदेही तय करने के लिए मानीटरिंग सेल बनाने की जरूरत है। सरकार जो फंड खर्च करती है। उसकी उपयोगिता कितनी है। उसे देखे। हर विश्वविद्यालय को कम से कम दो अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से प्रति वर्ष करार करने का प्रावधान भी बजट में होना चाहिए
- प्रो. दिनेश कुमार, अर्थशास्त्र विभाग, चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय
महाविद्यालयों में काफी रिक्त पद पड़े हुए हैं। इससे उच्च शिक्षा के सामने चुनौती है। शिक्षा के बजट में ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए कि पठन पाठन के लिए शिक्षकों की कमी न रहे। उच्च शिक्षा में व्यवसायिक शिक्षा को और बढ़ाने की भी जरूरत है।
- डा. संजीव महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, एनएएस कॉलेज
व्यवसायिक शिक्षा के लिए हर शहर में कुशल प्रशिक्षक और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएं। जिससे युवाओं को डिग्री की जगह हुनर बढ़ाने का मौका मिले। इसके लिए बजट में कुछ प्रावधान किया जाना चाहिए। साथ ही शोध के लिए जरूरी संसाधन भी संस्थाओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- डा. मंजू गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, मेरठ कॉलेज
स्कूली शिक्षा में आधारभूत ढांचे को विकसित करने की जरूरत है। बगैर किसी भेदभाव के सरकारी, अनुदानित, सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों को एक समान तरीके से बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए। नई शिक्षा नीति के प्रावधानों के तहत सकल घरेलू उत्पाद का छह फीसद सकल शिक्षा पर खर्च करने का प्रावधान होना चाहिए।
- सुशील कुमार सिंह, प्रधानाचार्य, डीएन इंटर कॉलेज
स्कूल गैर व्यवसायिक संस्थान हैं। लेकिन जिस तरह से व्यवसायिक बिजली का शुल्क, हाउस टैक्स, वाटर टैक्स बढ़ाया जाता है। उससे फीस बढ़ती है। इसका असर अभिभावकों पर पड़ता है। इसमें छूट दिया जाए तो फीस भी कम होगी। बजट में बच्चों के लिए सामान्य बीमा का भी प्रावधान होना चाहिए।
- राहुल केसरवानी, सचिव, सहोदय स्कूल संगठन
नई शिक्षा नीति आने वाली है। शिक्षा, शिक्षक, छात्र के गुणात्मक विकास पर आधारित हो। स्कूल स्तर पर कौशल विकास के कार्यक्रमों को और अधिक बढ़ाने की जरूरत है। ताकि 12वीं तक बच्चे कोई न कोई स्किल सीख सकें। ताकि आगे डिग्री हासिल करने की दौड़ थमे।
- चंद्रलेखा जैन, प्रिंसिपल, सेंट जोंस सीनियर सेकेंडरी स्कूल