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सपने अपने : झुमका चौराहे से सीखो Meerut NEWS

शहर के विकास को लेकर अधिकारियों की लापरवाही से मंत्रि‍यों को काफी परेशानी हो रही है। क्‍योंकि चुनाव के मद्देनजर फाइले तो खूब बनी है पर कार्य दिखाई नहीं दे रहा है।

By Prem BhattEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 04:37 PM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 04:37 PM (IST)
सपने अपने : झुमका चौराहे से सीखो Meerut NEWS
सपने अपने : झुमका चौराहे से सीखो Meerut NEWS

मेरठ, जेएनएन। बरेली ने अपनी वह पहचान देश-दुनिया में दे दी है जिससे हमें सीखने की जरूरत है। झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में गाना खूब प्रसिद्ध हुआ। उसी तरह से वहां बनाए गए झुमका चौराहे ने सुर्खियां बटोर लीं। बरेली का नाम झुमके से जुड़ गया था। तो मेरठ की भी तो पहचान खेल उत्पाद, खिलाड़ियों, स्वतंत्रता क्रांति और महाभारत से है। वर्षो पहले शहर में एक चौराहा विकसित किया बैट-बॉल और फुटबॉल बनाने वाली कंपनी एचआरएस ने। फुटबॉल चौराहा या एचआरएस चौराहा नाम पड़ा। उसके अलावा शहर या कहें पूरे जिले में एक अदद ऐसा चौराहा नहीं है जो यहां की पहचान बताता हो। चौराहों को लेकर खूब फाइलें तैयार हुईं लेकिन सब फर्जी बातें निकलीं। अवस्थापना निधि से खर्च हुआ न ही जनप्रतिनिधियों की निधि से। दुनिया में पहचान बना चुकीं कंपनी को गोद देकर भी एक क्रांति या बल्ला चौराहा नहीं बनवाया जा सका।

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मंत्री फिक्रमंद अफसर नजरबंद

शहर के बड़े अफसरों, जनप्रतिनिधियों, प्राधिकरण और नगर निगम को अपनी कार्यशैली अब बदलने की जरूरत है। पर्दे वाली कार से शहर में झांकने की भी जरूरत है। घर से निकल कर दफ्तर में आकर चंद फाइलों पर चिड़िया बैठाकर शाम को फिर वापस चले जाने वाली परंपरा से नहीं निकलेंगे तो हर बार मंत्री ही याद दिलाएंगे कि शहर में करना क्या चाहिए। स्थिति इतनी खराब है कि शहर में प्रवेश द्वार बनाने की नसीहत ही प्रभारी मंत्री ने नहीं दी बल्कि बागपत रोड पानी निकासी की समस्या को हल करने के लिए निर्देश भी उन्हें देना पड़ा। वैसे तो प्रभारी मंत्री के स्तर के ये मामले नहीं है, लेकिन जब हाकिम अपनी जिम्मेदारी का काम नहीं करेंगे तो मंत्री को ही नालियों की याद दिलानी पड़ेगी। आखिर बजबजाती नाली से भी तो मतदाता रुसवाई कर सकते हैं। नजरबंद अफसरों को अब फिक्रमंद बनना चाहिए।

परियोजनाएं आईं, कालोनियां ढूढ़ों

मेरठ जैसा शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जिसे चारों तरफ से विकास परियोजनाओं ने घेर लिया हो। दो एक्सप्रेस-वे, छह राष्ट्रीय राजमार्ग, रैपिड रेल, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, मेट्रो व स्मार्ट सिटी से जिसकी तीन-चार साल में रौनक पूरी तरह से बदलने वाली हो। उस शहर में आगे आने वाले समय में आवासीय योजनाओं की जरूरत के हिसाब से कोई प्लानिंग नहीं हो रही है। आवासीय योजना के लिए बनाए गए विकास प्राधिकरण व आवास परिषद फिलहाल हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वर्षो पहले बनाई गई कॉलोनियों को नहीं संवार पाए हैं। नई कॉलोनी को विकसित करना या लैंड बैंक बनाने की भी कोई योजना नहीं है। यह तो छोड़िए शासन की महत्वाकांक्षी योजना लैंड पूलिंग स्कीम के तहत कॉलोनी बसाने में एमडीए किसानों से शुरुआती बातचीत में ही हांफ गया। अब तो लोगों को यहां-वहां बसने के लिए प्राइवेट बिल्डरों की कॉलोनियां ढूंढनी पड़ेगी।

एमडीए की मौजूदगी कहां

सभी शहरों की तरह मेरठ में भी मेरठ विकास प्राधिकरण है। पर शहर में यह प्राधिकरण कहीं दिखाई भी नहीं देता। शहर में कहीं से भी प्रवेश करिए। कहीं भी घूमते रहिए कहीं भी एमडीए के होने का अहसास दिखाई नहीं देगा। विकास छोड़िए, रोहटा रोड के फ्लाईओवर को छोड़कर खुद एमडीए कार्यालय के पास के चौराहे पर उसके नाम के गमले तक नहीं हैं। एमडीए से चंद दूरी पर कलक्ट्रेट और एसएसपी कार्यालय के सामने वाली रोड पर गमले दिखते हैं पर उसमें मेरठ नगर निगम लिखा है। कोई ऐसा रास्ता नहीं जहां एमडीए कहता हो आइए आपका मेरठ में स्वागत है। देश के सर्वोच्च सेवा के अफसर इसके मुखिया बनते हैं लेकिन मौजूदगी नहीं दिखा पाते। खैर, एमडीए शहर में क्या मौजूदगी दिखाएगा जो अपना ही गलत पता देकर गुमराह करता हो। कार्यालय कहीं और है वेबसाइट कहती है कार्यालय विकास भवन में है। 


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