रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के..
आइएएस निशांत जैन की पुस्तक का जागरण कलम कार्यक्रम में विमोचन।
रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के..
मेरठ, जेएनएन। हिदी भाषा किसी से कमतर नहीं। हिदी के दम पर आसमान की बुलंदी छू सकते हैं। सीमित साधन में अपनी साधना से सफलता को चूम सकते हैं। जरूरत है खुद की लकीर बड़ी करने की। फिर राह में आने वाली हर मुश्किल आसान हो जाएंगी। हमारे आसपास ऐसी कई कहानियां बिखरी पड़ी हैं, जिससे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। आइएएस निशांत जैन की लिखी कहानी रुक जाना नहीं, समाज को नई दिशा देने वाले लोगों की कहानी है। जो निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
एक लेखक के तौर पर निशांत ने अपनी पुस्तक में अपने आइएएस बनने के सफर को बयां किया है। मेरठ जैसे शहर से पढ़ाई कर सिविल सेवा में हिदी माध्यम में टॉपर रहे, अखिल भारतीय स्तर पर 13वीं रैंक लॉकर हिदीभाषी और हिदी क्षेत्र के युवाओं को सिविल सेवा को लेकर आत्मविश्वास बढ़ाया। उनकी पुस्तक हर किसी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
दरअसल, गुरुवार को होटल क्रिस्टल में निशांत जैन शहर के साहित्य प्रेमियों, शिक्षकों, युवाओं, समाज के विभिन्न क्षेत्र के लोगों से रूबरू हुए। उनकी पुस्तक की प्रेरक कहानियों को लोगों ने उत्सुकता से सुना। शहर में यह अवसर मिला कलम श्रृंखला के तहत। प्रभा फाउंडेशन की ओर से अहसास वुमैन के सहयोग से यह कार्यक्रम हुआ। दैनिक जागरण इसमें मीडिया पार्टनर रहा। पुस्तक के लेखक निशांत जैन से चौ.चरणसिंह विश्वविद्यालय के हिदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने संवाद किया। संचालन अहसास वुमैन मेरठ की गरिमा मित्तल और अंशु मेहरा ने किया। कार्यक्रम में मेरठ कॉलेज के शिक्षक, शिक्षिकाएं, समाज के विभिन्न क्षेत्रों से लोग शामिल रहे।
26 प्रेरणादायक कहानियां
निशांत जैन ने बताया कि रुक जाना नहीं.. पुस्तक में सिविल सेवा में सफल 26 लोगों की अनकही कहानियां हैं। एक कहानी का जिक्र करते हुए मुरादाबाद से किसान की बेटी इल्मा अफरोज के संघर्ष को बताया। इल्मा जिस परिवेश में रहती थीं, पढ़ाई का माहौल नहीं था। 14 साल की आयु में पिता का साया सिर से उठ गया, लेकिन मां ने चुनौती से आंखें मिलाना सिखाया। अब इल्मा आइपीएस की ट्रेनिंग पर हैं। निशांत ने कहा कि इल्मा जैसे देश में बहुत से युवा हैं, जिनका जीवन दूसरों को प्रेरित करता है। बस जरूरत हैं, उन सभी से प्रेरणा लेने की।
अस्त-व्यस्त नहीं, व्यस्त और मस्त रहें
निशांत जैन ने अपनी पुस्तक में मेरठ कॉलेज से बीए, एमए की पढ़ाई करने, पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम प्रूफ रींिडंग का काम करने से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी पहुंचने, एक सरकारी नौकरी करने और फिर आइएएस बनने की पूरी कहानी और उसके संघर्ष को भी लिखा है। उन्होंने बताया कि जीवन में सफलता के लिए अस्त व्यस्त नहीं, बल्कि व्यस्त और मस्त रहने की जरूरत है। जो व्यक्ति खुश रहता है, वह अपने आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बनाता है।
गीता एक मार्गदर्शक से कम नहीं
निशांत जैन ने अपनी पुस्तक में गीता के निष्काम कर्मयोग को जोड़कर भी प्रेरणा दिया है। निशांत ने पुस्तक में पहले मार्गदर्शक के तौर पर बताया कि कर्म करते हुए फल की इच्छा करना चाहिए, लेकिन आसक्त होने से बचना चाहिए। दूसरा दूसरे के विचारों का भी सम्मान करना चाहिए। तीसरा मार्गदर्शक मध्यम मार्ग, क्योंकि यह हर राह को आसान बना सकता है।
मेरठ को साहित्य और संस्कृति के मंच पर उभारने की कोशिश
कलम में निशांत जैन ने पाठकों के पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि देश में हिदी का जो भी मानक रूप है, वह मेरठ का है। मेरठ की खड़ी बोली ही हिदी का आधार है। मेरठ जैसे शहर में साहित्य, संस्कृति, कला पर काम कम हुआ है। उनकी कोशिश होगी कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से इसे आगे बढ़ाने की।
सभी को मिली किताब
सभी लोगों को लेखक निशांत जैन की लिखी पुस्तक उनके हस्ताक्षर के साथ मिली। क्रिस्टल पैलेस के ऑनर राजेंद्र सिंघल ने निशांत जैन को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। पाठकों के पूछे कुछ सवाल
1-आप पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम जॉब और कविता लिखने के लिए समय कैसे निकालते थे? नैमिष पांडेय
2- इंग्लिश माध्यम से पढ़ने के बाद हिदी में लिखने पर संकोच रहता है कि कहीं कविता सामान्य तो नहीं होगी? वंदना तनेजा
3-आइएएस बनकर क्या बदलाव लाएं? अंशु मेहरा लेखक के जवाब
1-टाइम मैनेजमेंट ही सफलता की कुंजी है। यही करने से आप भीड़ से अलग होते हैं। अगर कुछ लिखना सुकून देता है, तो वक्त की पाबंदी नहीं होती।
2-हिदी और अंग्रेजी दोनों पर कमांड रखें। हिदी में अगर अच्छी कविता है तो वह अपने आप आगे बढ़ेगी। संकोच छोड़कर लिखते रहिए।
3-माउंट आबू में जनजाति बच्चों के बीच में मिशन संवाद चलाता था। इससे बच्चों में आए बदलाव और उनका फीडबैक खुद को संतोष देता है।