मच्छरों से मत डरना...जांच में 80 फीसद नर निकले हैं
यह मच्छरों के डर से राहत की बात है। मेडिकल कॉलेज स्थित एंटामोलॉजी लैब की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल तक जिले में अस्सी फीसद मच्छर नर मिले हैं।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। संभव है कि खून चूसने वाले मच्छरों से जल्द आपका पाला न पड़े। जिले में मादा मच्छरों की तादाद घटने से स्वास्थ्य विभाग के चेहरे पर मुस्कान है। मेडिकल कॉलेज स्थित एंटामोलॉजी लैब की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल तक जिले में अस्सी फीसद मच्छर नर मिले हैं। मच्छरजनित बीमारियों से काफी हद तक बचाव मिलेगा। बता दें, कि मादा मच्छरों के काटने से ही डेंगू,चिकनगुनिया,मलेरिया एवं फाइलेरिया जैसी बीमारियां होती हैं।
धूप में नष्ट हो रहा लार्वा
जिला मलेरिया विभाग एवं एंटामोलॉजी लैब मच्छरों की प्रजाति,संक्रमण क्षमता एवं लिंग का पता लगाती है। लैब इंचार्ज डॉ.कीर्ति त्रिपाठी ने बताया कि गांवों से शहरों तक विभिन्न क्षेत्रों में सर्विलांस के दौरान अस्सी फीसद नर मच्छर मिले हैं। इस मौसम में एनाफिली,एडीज एवं क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर मिलते हैं। मादा एनाफिलीज से मलेरिया,एडीज से डेंगू एवं क्यूलेक्स से फाइलेरिया बीमारी होती है।
किडनी तक होता है असर
अप्रैल माह तक जुटाई रिपोर्ट के मुताबिक मलेरिया के मरीज मिलने शुरू हो गए हैं,लेकिन अन्य संक्रमण नहीं मिला। मच्छरों के संक्रमण के लिए 28-30 डिग्री तापमान मुफीद होता है,लेकिन इस वक्त 40 डिग्री से ऊपर पारा पहुंचने से लार्वा तक नष्ट हो जा रहे हैं। बारिश के साथ आद्र्रता आते ही मच्छरों का आतंक उभरेगा। सीएमओ डॉ.राजकुमार ने बताया कि गत तीन साल के दौरान बड़ी संख्या में डेंगू,चिकनगुनिया के मरीज मिले हैं। मलेरिया की चपेट में आकर मरीजों की किडनी तक डैमेज हो रही है।
कीटनाशकों से मर रहीं मादा मच्छर
जिला मलेरिया विभाग एवं नगर निगम हर साल एंटी लार्वा फागिंग करते हैं। साथ ही मैलाथियान व डीजल समेत कई जहरीले रसायनों का छिड़काव कर मच्छरों को नष्ट किया जाता है। साथ ही घरों में क्वायल, रसायन एवं कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो मादा मच्छर मानव खून चूसने के लिए घरों के इर्द-गिर्द ज्यादा रहती हैं, जिससे ये कीटनाशकों व छिड़काव की चपेट में आकर मर जाती हैं। डेंगू की एडीज इजिप्टी मच्छर कम ऊंचाई पर उड़ने की वजह से बच्चों को ज्यादा काटती हैं।
इनका कहना है
मच्छरजनित बीमारियों को रोकने के लिए सर्विलांस तेज कर दिया गया है। छिड़काव से लेकर एंटी लार्वा फागिंग की तैयारी है। एंटामोलॉजी-कीट विज्ञान लैब की रिपोर्ट के मुताबिक 80 फीसद मच्छर नर मिले हैं,जो अच्छा संकेत है। सटीक रणनीति के जरिए बारिश में भी मलेरिया समेत तमाम बीमारियों से काफी हद तक बचाव मिल सकता है।
- सत्यप्रकाश, जिला मलेरिया अधिकारी
मेढकों के लुप्त होने से बिगड़ा संतुलन
खेती-बाड़ी में धुआंधार पेस्टीसाइड के प्रयोग से तालाबों में मेढक खत्म हो रहे हैं। छोटे जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। मेढक मच्छरों के साथ ही इसके लार्वा को भी खाता है,लेकिन इनकी संख्या कम होने से मच्छरों की बाढ़ आ गई। मादा मच्छर कमजोर होने से कीटनाशकों के संपर्क में आकर दम तोड़ देती हैं,जबकि नर मच्छर बाहर रहते हुए जीवित बच जाता है। प्रकृति के जानकार इसे खतरनाक असंतुलन भी मानते हैं।
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