माइक्रो जोन में बांटकर होगा भूकंप जोखिम का आकलन
सिस्मिक माइक्रोजोनेशन की रिपोर्ट तैयार करने में जुटे वैज्ञानिक।
मेरठ। भूकंप के जोखिम को आंकने के लिए लिए मेरठ की धरती का परीक्षण (स्टैंडर्ड पेनिट्रेशन टेस्ट) किया गया है। जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआइ) ने मेरठ को 28 माइक्रो लेवल पर बांट कर उनका स्थलीय सर्वे किया है। भू-वैज्ञानिकों की टीम 110 मिट्टी के सैंपल की जांच रिपोर्ट तैयार करने में जुटी है। आंकड़ों और स्थलों की रिपोर्ट का विश्लेषण किया जा रहा है।
क्या होता है सिस्मिक माइक्रोजोनेशन
भूकंप की संवेदनशीलता के पैमाने पर मेरठ जोन-चार श्रेणी में है। इसके बाद केवल जोन-5 ही बचता है। सिस्मिक माइक्रोजोनेशन में भौगोलिक और भूकंप के लिहाज से किसी विशेष क्षेत्र को छोटे स्तरों में विभाजित किया जाता है। भू-वैज्ञानिक यह विभाजन जमीन के हिलने की गति, पानी के बहाव, बाढ़ के स्थान जैसे लक्षणों के आधार पर करते हैं। इन माइक्रो क्षेत्रों में धरती गर्भ की हलचल को माइक्रोजोनेशन कहते हैं। इसके बाद हर माइक्रो साइट की खोदाई कर अलग अलग परतों का अध्ययन कर मिट्टी के सैंपल लिए जाते हैं। एसपी टेस्टिंग भी इसी का भाग है। मेरठ एनसीआर का प्रमुख जनपद है। यहां भूकंप के खतरों को कम करने के साथ ही जोखिम का आंकलन करने के लिए रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
हर साइट की हुई है एसपी टेस्टिंग
सर्वे में 28 साइटों पर धरती की स्टैंडर्ड पेनिट्रेशन (एसपी) टेस्टिंग की गई है। इसमें 63.5 किलोग्राम भार 7.5 मीटर की ऊंचाई से विशेष प्रकार के ड्रिल पर प्रहार किया जाता है। इस दौरान यह देखा जाता है कि कितनी बार के प्रहार से 15 सेंटीमीटर की ड्रिलिंग होती है।
जोन-4 में आने वाले इन स्थानों की हो चुकी मैपिंग
जीएसआइ के नार्थ जोन के वैज्ञानिक राजेश चतुर्वेदी और नाजिया खान ने मेरठ में सूक्ष्म भूकंपीय सर्वेक्षण किया है। इसके पहले टीम देहरादून, चंड़ीगढ़, पंचकुला और जालंधर की सिस्मिक माइक्रोजोनेशन मैपिंग कर चुकी है।
शिविर प्रभारी जीएसआइ
वेदप्रकाश शर्मा का कहना है कि 28 माइक्रो साइट पर अलग-अलग गहराइयों से एकत्र 110 सैंपल विश्लेषण के लिए भू वैज्ञानिकों को दे दिए गए हैं। जांच के बाद रिपोर्ट तैयार होगी।
प्रगति विज्ञान संस्था के सचिव दीपक शर्मा का कहना है कि माइक्रोजोनेशन मैपिंग के बाद भूकंप के खतरों के अनुरूप जनपद के हर माइक्रो क्षेत्र के लिए योजना बनाई जा सकेगी।