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Delhi-Meerut Rapid Rail & Expressway: इस समय अधूरे कामों को मिल सकती है गति, पर प्रशासन ने कर दिया है बंद

लाकडाउन के चलते जगहों से श्रमिक वापस लौट रहे हैं। ये रोजी-रोटी की तलाश में हैं। आप मेरठ और आसपास के क्षेत्रों पर नजर डालें तो इन दिनों दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर चिपियाना के पास रैपिड रेल कूड़ा निस्तारण प्लांट फ्रेट कारिडोर आदि तमाम परियोजनाओं पर काम चल रहा है।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Thu, 06 May 2021 12:39 PM (IST)Updated: Thu, 06 May 2021 04:45 PM (IST)
Delhi-Meerut Rapid Rail & Expressway: इस समय अधूरे कामों को मिल सकती है गति, पर प्रशासन ने कर दिया है बंद
लाकडाउन के दौरान रैपिड रेल से लेकर कई विकास कार्य अधूरे ।

मेरठ, जेएनएन। मानव श्रम के बेहतर प्रबंधन और लंबित परियोजनाओं को गति देने का अवसर सामने बाहें पसारे खड़ा है लेकिन सटीक व्यवस्था की कमी के चलते हम अवसर खो रहे हैं। आपदा में अवसर तलाश लेने वाला प्रबंधन ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है लेकिन इस मोर्चे पर हम कहीं न कहीं चूक रहे हैं। इसे थोड़ा तरीके से समझते हैं। कोरोना काल में जगह-जगह लाकडाउन के चलते तमाम जगहों से श्रमिक वापस लौट रहे हैं। ये श्रमिक खाली हैं और रोजी-रोटी की तलाश में हैं। आप मेरठ और आसपास के क्षेत्रों पर नजर डालें तो इन दिनों दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर चिपियाना के पास, रैपिड रेल, कूड़ा निस्तारण प्लांट, फ्रेट कारिडोर आदि तमाम परियोजनाओं पर काम चल रहा है। विडंबना यह है कि इनमें से अधिकांश परियोजनाएं इसलिए बंद हैं, अथवा उनके काम की गति इसलिए अति मंद है क्योंकि उन्हें श्रमिक नहीं मिल रहे। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि कई श्रमिकों के संक्रमित हो जाने के कारण काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

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यहां हमें यह सोचना होगा कि विरोधाभास कहां है। हम कह रहे हैं कि श्रमिक बल कम है, जबकि हकीकत यह है कि इस समय तमाम श्रमिक रोजी-रोटी की तलाश में हैं। यह समय काम की गति बढ़ाने के लिए इसलिए भी मुफीद है क्योंकि लाकडाउन के चलते सड़कों पर आवागमन बेहद कम है। यातायात के बेहद कम दबाव के बीच रूट डायवर्जन जैसे कदम की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, और यदि पड़ी भी तो उसे बेहद सुगमतापूर्वक अमल में लाया जा सकता है।

रैपिड रेल का काम निबटाने के लिए पांच मई से ट्रांसपोर्ट नगर के पास रूट डायवर्जन किया जाना था, इसे टाल दिया गया है। वजह बताई गई कि कई लोग संक्रमित हो गए। यहां मानव बल का अतिरिक्त इंतजाम कर काम को गति दी जा सकती है, प्रबंधन को इसपर विचार करना चाहिए। आखिर फ्रेट कारिडोर का काम इसी प्रकार आगे बढ़ रहा है क्योंकि वहां प्रबंधन ने बायो बबल बनाकर मानव बल का वैज्ञानिक विधि से इस्तेमाल शुरू कर दिया है। एक्सप्रेस-वे के चिपियाना वाले हिस्से पर भी बायो बबल बनाकर काम को बहुत जल्दी निपटाया जा सकता है, आखिर हम नवंबर-दिसंबर तक इंतजार क्यों करें। ऐसा ही हम कर सकते हैं कूड़ा निस्तारण प्लांट और इस जैसी दूसरी तमाम परियोजनाओं पर, जो मानव बल की कथित कमी का रोना रोते हुए या तो बंद कर दी गई हैं अथवा उनकी गति को मंद कर दिया गया है। कोरोना काल हमारी प्रबंधन क्षमता को कसौटी पर कसने का एक अवसर है, और हमें साबित करना होगा कि हम आपदा को अवसर में बदलने के माहिर हैं।

एनसीआरटीसी सीपीआरओ पुनीत वत्स ने कहा कि रैपिड के काम में पहली प्राथमिकता सभी स्टाफ और श्रमिकों को कोरोना से बचाना है। बावजूद इसके जितना संभव है, परिस्थितियों के अनुसार उतना किया जा रहा है। औद्योगिक आक्सीजन का इस्तेमाल न होने से भी काम की रफ्तार पर असर पड़ा है। आरआरटीएस परियोजना में कुशल श्रमिकों की जरूरत होती है और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए परियोजना पर काम करने के लिए श्रमिकों का प्रशिक्षित होना आवश्यक होता है।

दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे परियोजना निदेशक मुदित गर्ग ने कहा कि पहली प्राथमिकता कोरोना संक्रमण से बचाव की है, इंजीनियर तक चपेट में हैं। एनएचएआइ कार्यालय भी चपेट में आया है। काफी श्रमिक घर चले गए हैं। चिपियाना ओवरब्रिज का काम चलता रहे, इसकी कोशिश की जा रही है।


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