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बागपत और मेरठ की तीन सीटों पर फैसला अटका

सपा और रालोद के बीच मेरठ और बागपत में सीटों की बाबत निर्णय अधर में लटका ह

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 10:15 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 10:15 AM (IST)
बागपत और मेरठ की तीन सीटों पर फैसला अटका
बागपत और मेरठ की तीन सीटों पर फैसला अटका

मेरठ,जेएनएन। सपा और रालोद के बीच मेरठ और बागपत में सीटों की बाबत निर्णय अधर में लटका है। मथुरा में हए घमासान के बाद दोनों पार्टियां सीटों के बंटवारे को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। विशेष रूप से ये सीटें रालोद की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी हैं। बताते चलें कि मथुरा में माट सीट पर सपा का उम्मीदवार तय होने से रालोद में बड़े पैमाने पर विरोध हो गया था। सपा यहां से एमएलसी संजय लाठर को मैदान में उतारना चाहती थी। अखिलेश के नजदीकी संजय लाठर मेरठ में सपा और रालोद की संयुक्त रैली में मंच पर काफी सक्रिय रहे थे।

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इसके बाद बागपत और मेरठ की शेष सीटों के बंटवारे को लेकर रविवार को भी कोई सहमति नहीं हो पाई है। सोमवार को दोपहर तक उम्मीदवारों की घोषणा की उम्मीद है। खास बात यह है कि रालोद का गढ़ माने जाने वाले बागपत में दो और सिवालखास समेत तीन विधानसभा सीटों में पेच फंसा है। बागपत जनपद में बागपत शहर, छपरौली और बड़ौत समेत तीन विधानसभा सीटें हैं। छपरौली सीट रालोद, सपा के लिए छोड़ने को तैयार है। वर्ष 2017 में भाजपा की प्रचंड लहर के समय में भी यह सीट रालोद के खाते में गई थी हालांकि रालोद विधायक सहेंद्र सिंह रमाला ने बाद में भाजपा का दामन थाम लिया था। 1937 से 1977 40 वर्षो तक पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के प्रतिनिधित्व वाली इस सीट पर रालोद सुप्रीमो जयंत सिंह के पर्चा दाखिल करने की चर्चा जोरों पर है। सपा कैंट सीट रालोद को दे रही है लेकिन उस सीट को लेकर पार्टी में कोई उत्साहित नहीं है। पेच वाली सीटों पर दोनों दलों के अपने अपने तर्क हैं।

मेरठ में रालोद के लिए सबसे प्रभाव वाली सीट सिवालखास मानी जाती है। पर गत वर्षो के चुनाव परिणामों का हवाला देकर सपा अपनी मजबूत दावेदारी जता रही है। 2017 में भले ही वह हारी हो लेकिन 2012 में सपा के गुलाम मोहम्मद ने जीत हासिल की थी। यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या जाटों से कहीं ज्यादा है। 2017 में भी गुलाम मोहम्मद दूसरे स्थान पर रहे थे। हर चुनाव में ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद रालोद लंबे समय से यहां जीत हासिल नहीं कर सकी है। 20 वर्ष पूर्व 2002 में रालोद के रणवीर राणा जीते थे। रालोद का तर्क यह है कि मेरठ जैसे एतिहासिक शहर से पार्टी को एक भी सीट न मिलने से गलत संदेश जाएगा। इसलिए वह किसी कीमत पर इस पर दावेदारी से पीछे हटने को तैयार नहीं है। यहां पर प्रत्याशी का नाम भी पार्टी ने फाइनल कर दिया है। बागपत शहर से रालोद ने पांच बार के विधायक रहे कोकब हमीद के पुत्र अहमद हमीद को प्रत्याशी बनाया है। बड़ौत को भी रालोद अपने प्रभाव क्षेत्र की सीटें मानती है। 2017 में बागपत शहर से योगेश धामा और बड़ौत से केपी मलिक ने भाजपा से जीत हासिल की थी। 2012 में बड़ौत से बसपा और 2017 में यह भाजपा के खाते में गई थी। 2012 और 2017 में रालोद दूसरे और सपा तीसरे स्थान पर थी। सिवालखास पर बात न बनने पर सपा ने बड़ौत का विकल्प भी मांगा है। पर रालोद बागपत जनपद को अपना गढ़ मानती रही है। इस चुनाव में वह जनपद की तीनों सीटों पर जीत हासिल कर पुरानी प्रतिष्ठा को वापस पाना चाहती है।


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