पछुआ हवा: खुद नहीं बदले, शव बदल दिया, मेडिकल कालेज के कोविड वार्ड में संवेदनाओं की चीरफाड़
मेडिकल कालेज के कोविड वार्ड में संवेदनाओं की चीरफाड़ कर दी गई। चंद दिनों पहले पोस्टमार्टम हाउस के बाहर खुले में शवों को रखने का वीडियो वायरल हुआ था।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। मेडिकल कालेज के कोविड वार्ड में संवेदनाओं की चीरफाड़ कर दी गई। चंद दिनों पहले पोस्टमार्टम हाउस के बाहर खुले में शवों को रखने का वीडियो वायरल हुआ था। शवों के रखरखाव में मानवीय मूल्यों को रौंदा गया। शराब पीकर पोस्टमार्टम करने की शिकायतों को प्रशासन ने नजरअंदाज किया। आखिर इन्हीं लापरवाह और बेसुध हाथों ने शवों पर गलत टैग चिपका दिया। स्वजनों के पास अलग-अलग शव पहुंचा दिए गए। एक का दाह संस्कार कर दिया गया। स्वजनों की आपत्ति के बाद प्रशासन जागा, लेकिन देर हो चुकी थी। जांच टीमों ने कोरोना वार्ड का दौरा किया, और चतुर्थ क्लास कर्मचारी पर बिजली गिरा दी। हालांकि वरिष्ठ अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। उनकी देखरेख में शवों की तीन परतों में पैकिंग होती है। जांच कमेटी के होश उड़ गए हैं। मेडिकल स्टाफ का रवैया बताता है कि ऐसी चूक पहले भी हुई होगी।
आडवाणी-जोशी से सीख रहे सब्र
भाजपा की क्षेत्रीय इकाई की कमान युवा मोहित बेनीवाल के हाथ में आ गई। युवाओं की आंखों में चमक है तो पार्टी संगठन के उम्रदराज चेहरों पर उदासी तारी है। उन्हेंं मलाल है कि पार्टी ने बढ़ती उम्र में उनको लंगड़ी मार दी है। युवाओं को सियासत का गुर सिखाने का उनका आत्मबल डगमगाने लगा है। उन्हेंं इमस बात का भी गम है कि अपने से छोटे लड़कों के अधीन काम कैसे किया जाएगा। अश्विनी त्यागी की क्षेत्रीय टीम में ज्यादातर महामंत्री और उपाध्यक्ष 55 साल की उम्र के पार थे, जिन्हेंं अब बदला जाएगा। पार्टी के अंदर युवा ही बुजुर्गों को आडवाणी और जोशी जैसे दिग्गजों से सीख लेने के लिए कहने लगे हैं। मेरठ के अरुण वशिष्ठ, विमल शर्मा और बिजेंद्र अग्रवाल जैसे उम्रदराज दिग्गजों को अब तक बड़ी भूमिका नहीं मिली। उनके अनुभवों का फायदा संगठन उठाएगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं।
यह हाल, खून देने में ठिठके
सीरो सर्वे के बहाने यह जानने का प्रयास है कि कोरोना संक्रमण कितनों तक पहुंच चुका है। शासन ने जिले में ऐसे मोहल्लों की सूची स्वास्थ्य विभाग को भेज दी, जिनमें लोगों का ब्लड सैंपल लेकर उसमें एंटीबाडी की जांच करनी थी। स्वास्थ्य विभाग की टीमें जब गांवों और शहरों के मोहल्लों में पहुंचीं तो लोग हक्के बक्के रह गए। पीपीई किट, हाथ में ग्लब्स और सुइयां लेकर इंतजार करने वालों को देखकर मोहल्ले वाले हिचक गए। उन्हेंं भरोसे में नहीं लिया गया था। पहले उन्हेंं लगा कि कोरोना जांच वाली टीम है। बाद में पता चला कि यहां ब्लड देना होगा। लोगों के जेहन में नई आशंका उभर आई। हर मोहल्ले से 32 लोगों का ब्लड सैंपल लेना था, लेकिन इसके लिए भी टीम को दिन भर इंतजार करना पड़ा। प्रशासन ने भी लोगों को नहीं बताया कि सीरो सर्वे चीज क्या है।
वर्चुअल स्क्रीन पर ही मिले गुरुवर
शिष्य के मन से अज्ञानता रूपी अंधकार दूर कर प्रकाशपुंज जगाने वाले गुरु का स्थान भगवान से बड़ा है। दुनिया की बदलती रंगत के बावजूद यह रिश्ता आसमान से ऊंचा है, लेकिन कोरोना संक्रमण ने शिष्यों को गुरुजनों के चरणों में प्रणाम का अवसर नहीं दिया। वर्चुअल दुनिया में मीलों दूर बैठे गुरुजनों को स्क्रीन पर प्रणाम किया गया। स्कूलों के बंद होने की वजह से शिक्षक स्क्रीन पर ही उपलब्ध हो पाए। मां जीवनधारा में पहली गुरु होती है, इसीलिए बड़ी संख्या में लोगों ने मां के साथ पोस्ट शेयर कीं। कई डाक्टरों और अधिकारियों ने स्क्रीन पर अपने गुरुजनों के बारे में लंबी चौड़ी पोस्ट लिखकर भावुक पलों को याद किया। पाश्चात्य संस्कृति के संक्रमण के बावजूद भारतीय संस्कृति की गंगा गुरु महिमा के महासागर में हमेशा समाहित होती रही है। स्क्रीन पर ही सही, शिक्षक का विराट स्वरूप फिर नजर आया।