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उपचुनाव में सपा और रालोद का हाथ थाम सकती है कांग्रेस

जहां एक ओर उपचुनाव में मायावती की नजर सपा के मुस्लिम वोटों पर है। वहीं दूसरी ओर छोटे चौधरी अब कांग्रेस को सपा-रालोद गठबंधन से जोड़ने के सूत्रधार बन सकते हैं।

By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 10:08 AM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 10:08 AM (IST)
उपचुनाव में सपा और रालोद का हाथ थाम सकती है कांग्रेस
उपचुनाव में सपा और रालोद का हाथ थाम सकती है कांग्रेस
मेरठ,जेएनएन। मायावती अपनी शर्तो पर सियासत करती हैं, और उनकी माया राजनीतिक धुरंधर भी नहीं भांप पाते हैं। माया के पैंतरे से अवाक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव रणनीति बनाने से पहले फूंक-फूंककर चल रहे हैं, वहीं छोटे चौधरी पूरी पकड़ के साथ साइकिल के कैरियर पर बैठकर अब 2022 के मैदान में ही उतरेंगे। माया की नजर सपा के मुस्लिम वोटों पर है। इधर, छोटे चौधरी अब कांग्रेस को सपा-रालोद गठबंधन से जोड़ने के सूत्रधार बन सकते हैं।
माया ने दिए अकेले लड़ने के संकेत
लोकसभा चुनावों में मायावती के दस,जबकि अखिलेश समेत पांच सांसद ही जीत सके। माया ने उपचुनावों में अकेले लड़ने का संकेत देकर भाजपा की राह आसान कर दिया। प्रदेश के 11 सीटों पर उपचुनावों के दौरान सपा-बसपा की असली परीक्षा होगी। पश्चिमी उप्र में गंगोह, रामपुर, अलीगढ़ की इगलास एवं टुंडला सीट पर उपचुनाव होना है। प्रदेश में बसपा को यादव बाहुल्य सीटों जैसे जौनपुर में जीतकर आक्सीजन मिल गई, वहीं अखिलेश यादव ने मुलायम की बनाई जमीन को काफी हद तक गंवा दिया। 2007 एवं 2012 विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उप्र में सपा और बसपा की जड़े काफी मजबूत थीं। किंतु 2014 लोकसभा एवं 2017 विधानसभा चुनावों में भाजपा की सुनामी के आगे सभी दल तिनके की तरह बह गए। 2019 लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा ने हाथ मिलाया तो पश्चिमी उप्र में भाजपा से सात सीटों को छीन भी लिया।
कांग्रेस को साथ लाएंगे छोटे चौधरी
2014 से राजनीतिक बेरोजगारी झेल रहे चौधरी अजित सिंह व उनके पुत्र जयंत चौधरी सपा के साथ बने रहेंगे। माना जा रहा है कि बसपा को सबक सिखाने एवं भाजपा की डगर रोकने के लिए उपचुनावों में कांग्रेस को भी साथ लिया जाएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 2022 विस चुनावों में कांग्रेस को साथ लाने की कवायद छोटे चौधरी शुरू करेंगे। बागपत, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, अलीगढ़, मथुरा एवं मुरादाबाद तक रालोद का असर माना जाता है। रालोद महासचिव त्रिलोक त्यागी का कहना है कि रालोद का गठबंधन माया के साथ नहीं, अखिलेश के साथ था। यह उपचुनावों से लेकर 2022 विस चुनावों तक बना रहेगा।
रैली से दूर, बूथ के करीब होगा रालोद
राष्ट्रीय लोकदल महीने भर के भीतर अपने कील-कांटे दुरुस्त करने जा रहा है। इसके तहत तीन स्तर पर प्रशिक्षण और चिंतन शिविर लगाए जाएंगे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद रैली, सभाओं से दूर सारा ध्यान संगठन को बूथ के करीब लाने पर रहेगा।
कैराना के प्रयोग से उत्साहित
लोकसभा चुनाव में मिली हार को रालोद भाजपा की जीत कम और संगठन स्तर की निष्क्रियता ज्यादा मानकर चल रहा है। दरअसल, उपचुनाव में अपनी प्रत्याशी तब्बसुम हसन की जीत के बाद रालोद कैराना में किए प्रयोग को लेकर खासा उत्साहित था। लेकिन लोकसभा चुनाव में इस प्रयोग को दोहराया नहीं जा सका। लोकसभा चुनाव से पहले बूथ प्रभारियों को प्रशिक्षण देने की रालोद की योजना परवान नहीं चढ़ पाई थी। इसका कारण महागठबंधन गठित होने के बाद हर सीट अलग दल के हिस्से में जाना भी रहा।
तीन स्तर पर प्रशिक्षण मंथन और चिंतन
रालोद की योजना तीन स्तर पर प्रशिक्षण शिविर लगाने की है। इसमें पार्टी पदाधिकारी से लेकर आम कार्यकर्ता को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें आम कार्यकर्ताओं के लिए पहले स्तर का शिविर ब्लॉक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के पदाधिकारियों के लिए, दूसरा जिला स्तर पर और तीसरा बूथ स्तर के लिए कार्यकर्ताओं के लिए लगाया जाएगा। शिविर आवासीय और रात्रि विश्रम वाले होंगे। जल्द ही इसकी तारीख और स्थान तय कर दिए जाएंगे।
समय देन वाले और निष्ठावान लोगों मिलेगी जगह : सांगवान
रालोद के प्रदेश संगठन महासचिव डॉ. राजकुमार सांगवान ने बताया कि पार्टी इस बार संगठन को समय देने वाले निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ही जगह देगी। प्रशिक्षिण शिविरों की तारीख और स्थान जल्द घोषित किए जाएंगे।  

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