Commonwealth Games 2022: अन्नू रानी बोलीं-10 साल की मेहनत का फल है पदक, गन्ने को भाला मानकर फेंकती थीं
Athlete Annu Rani संघर्ष से ही सफलता मिलती है। भाला फेंक स्पर्धा में भारत के लिए पहली बार मेडल लाने वाली अन्नू रानी ने मेरठ में दैनिक जागरण के दफ्तर में बताया कि वह खेत में गन्ने की फसल काटते समय गन्ने को ही भाला मानकर फेंका करती थीं।
प्रदीप द्विवेदी, मेरठ। Commonwealth Games 2022 कामनवेल्थ गेम्स के इतिहास में पहली बार किसी महिला ने भाला फेंक स्पर्धा में देश के लिए कोई पदक जीता है। जीवट की धनी कांस्य पदक विजेता अन्नू रानी की इस सफलता के पीछे दस साल की तपस्या है। अभ्यास की कसौटी पर खुद को तपाकर उन्होंने कामयाबी का वो मानक तय कर दिया जिससे प्रेरित होकर कई नवोदित खिलाड़ी देश के लिए कुछ कर गुजरेंगी।
एकाग्र होकर की मेहनत
अन्नू के लिए यह डगर उतनी आसान नहीं थी, संसाधन की कमी का आलम यह था कि खेत में गन्ने की फसल काटते समय गन्ने को ही भाला मानकर फेंका। बड़े भाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और खेल में आगे बढ़ाया। अन्नू ने एकाग्र होकर मेहनत की और आज उनकी कामयाबी की लंबी फेहरिस्त है।
गन्ने को फेंककर किया अभ्यास
गुरुवार को वह दैनिक जागरण कार्यालय में अपने भाई उपेंद्र के साथ पहुंची थीं। यहां उनका शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। बातचीत के दौरान अन्नू रानी ने बताया कि कामनवेल्थ गेम्स में यह जो उपलब्धि मिली है यह 10 साल की मेहनत का फल है। उन्होंने अपने खेत में भी काम किया है घर के काम में भी हाथ बंटाया है। स्नातक कर चुकी हैं। खेत में काम के दौरान गन्ने को फेंक कर अभ्यास किया करती थीं। फिर बांस को फेंक कर अभ्यास करने लगीं।
भाई ने ऐसी की मदद
एक दिन भाई ने अभ्यास करते हुए देखा फिर उनके क्रिकेट के खेल में गेंद फेंकने पर बड़े भाई उपेंद्र बहुत प्रभावित हुए। भाई उपेंद्र ने कहा कि उन्हें थ्रो की क्षमता समझ में आ गई थी इसलिए पिता को मनाया और प्रभात आश्रम में अभ्यास के लिए प्रवेश दिलाया। वह स्वयं भी भाला फेंकने का अभ्यास किया करते थे लेकिन अब उन्होंने बहन को आगे बढ़ाने के लिए जी-जान लगा दिया। उनके कोच बन गए। जब मेरठ छोड़कर दिल्ली और फिर पटियाला में रहकर अभ्यास की बारी आई तब भाई ने पिता को मनाया।
लड़कियों की भुजाओं में है बल, साधारण खानपान भी मददगार
अन्नू रानी ने कहा कि खेल में आगे बढ़ने के लिए कोई अलग से खानपान की जरूरत नहीं होती। वह भी साधारण भोजन ही करती हैं, सिर्फ बेहतर और अच्छा भोजन चाहिए। वह 63 मीटर दूर 600 ग्राम का भाला फेंक कर पदक लाई हैं। इससे पहले भी कई उपलब्धि प्राप्त कर चुकी हैं, यह खेल भुजाओं की ताकत और तकनीक का है, इसलिए लड़कियां अपनी भुजाओं के बल को पहचानें। लड़कियों के लिए संदेश दिया कि खेल में नाम के साथ-साथ पहचान है। सरकार पुरस्कार के रूप में धन देती है और नौकरी भी। खेल से अनुशासन, संघर्ष की क्षमता आती है।
जैवलिन के लिए चाहिए 80 मीटर का मैदान
कुछ दूरी तक दौड़कर फिर भाला फेंकना होता है। अन्नू ने कहा कि इसके अभ्यास के लिए 80 मीटर लंबा मैदान होना चाहिए। कहा कि गांवों में खेल के मैदान नहीं हैं, इसलिए सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।