सफाई वाला : साहब, पहले गड्ढे तो भरिए Meerut News
शहर का स्वच्छता का जो हाल है वह किसी से छिपा नहीं है। जगह-जगह कुड़ा-कचरा का प्रतीक देखने को मिल ही जाता है। लेकिन अफसरों का हाल है कि इसे गंभीरता से नहीं ले रहे है।
मेरठ [दिलीप पटेल] गड्ढा मुक्त सड़कों के दावे के बीच शहर की तस्वीर बदहाल है। कोई सड़क कोई गली ऐसी नहीं है जिसमें गड्ढे न हों। यह जानते हुए भी नगर निगम प्राथमिकता तय नहीं कर पा रहा है। नाली, नाला, इंटरलॉकिंग और पैचवर्क ये काम होने हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है। बस, प्राथमिकताओं में अफसर बंटे हुए हैं। कोई पहले सड़क के गड्ढे भरने की बात करता है तो कोई नालों के निर्माण की। हालात ये हैं कि इसी में तीन माह गुजर गए। पैचवर्क के कोई सवा करोड़ के टेंडर हुए फिर भी बात न बनी तो दोबारा टेंडर निकाले गए। पार्षद चिल्ला रहे हैं कि जनता सोने नहीं दे रही है। गड्ढे ऐसे हो गए हैं कि गाड़ियां फुटबाल की तरह सड़क पर उछलने को मजबूर लेकिन नगर निगम के अफसर हैं कि स्मार्ट सिटी से नीचे बात ही नहीं कर रहे हैं।
उपभोक्ता को बता तो दो
जब से घरों में स्मार्ट मीटर लगे हैं, उपभोक्ता चैन से सो भी नहीं पा रहे हैं। बिजली कंपनी का दावा तो सहूलियत देने का है लेकिन उसके कारनामे मुसीबत में डालने वाले हैं। कुछ दिन पहले चीफ इंजीनियर के पास एक सज्जन पहुंचे। कहने लगे कि साहब स्मार्ट मीटर जब नहीं था, कम से कम बिजली का बिल घर आ जाता था। किसी कारण से बिल का भुगतान करने में देर हो गई तो मीटर रीडर याद दिला देता था। अब न तो बिल आता है और न मीटर रीडर। चीफ इंजीनियर बोले, मोबाइल पर मैसेज देखो। उपभोक्ता ने जवाब दिया, कितने मैसेज देखें। दिनभर मैसेज आते हैं, किस तिथि में देखें। कुछ तो बताओगे साहब या सिर्फ कर्मचारी दफ्तर में बैठकर कनेक्शन काटते रहेंगे। पहले उपभोक्ता को बता दो कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद बिल भुगतान के क्या नियम बदल गए हैं।
पहले खुद बदलो फिर लोग
भूगर्भ जल स्तर खरतनाक स्थिति में पहुंच गया है। अंधाधुंध हो रहे जलदोहन को रोकने की कवायद शुरू भी हो गई है। प्रदेश सरकार ने नगर निगमों को निर्देश दिया है कि सबमर्सिबल पंप लगाने से पहले लोगों को नगर निगम से अनुमति लेनी होगी। कमाल है साहब। जल दोहन के लिए आम आदमी ही जिम्मेदार है क्या? एक बार नजर सरकारी महकमों पर ही डाल लीजिए। सबसे ज्यादा जल दोहन तो नगर निगम ही कर रहा है। शहर में नगर निगम के 157 नलकूप हैं। उनसे प्रतिदिन 250 एमएलडी पानी जमीन से खींचा जा रहा है। गंगाजल जैसी परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। सवा लाख घरों में पेयजल कनेक्शन नहीं है। ये लोग कहां से पानी पीएंगे। पार्षद कह रहे हैं कि पहले निगम अपनी गलतियों को सुधार ले। आम आदमी के घर सप्लाई का पानी पहुंचने लगे तो सबमर्सिबल पंप चलने बंद हो जाएंगे।
इंदौर से सीखिए ट्रैफिक मैनेजमेंट
स्मार्ट प्रोजेक्ट को लेकर शासन-प्रशासन की बैठक होती है तो इंदौर शहर का जिक्र होना स्वाभाविक है। अब चर्चा चल रही है इंदौर की तर्ज पर मेरठ शहर में ट्रैफिक मैनेजमेंट सुधारने की। कागज पर इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान भी तैयार हो गया है। हालांकि अफसर यह भूल रहे हैं कि इंदौर शहर के पास रंजीत जैसे ट्रैफिक सिपाही हैं जो न केवल ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते हैं बल्कि उनके ट्रैफिक मैनेजमेंट के चर्चे देश दुनिया में होते हैं। क्या मेरठ में ऐसा कोई है। क्या वजहें हैं जो हम रंजीत जैसे ट्रैफिक सिपाही नहीं तैयार कर पा रहे हैं। मेरठ शहर के 17 चौराहों पर सिग्नल प्रणाली तो है, लेकिन कुप्रबंधन के चलते यह व्यवस्था औचित्यहीन लगती है। जब सिग्नल आधारित यातायात व्यवस्था नहीं सुधर रही है तो एक कंट्रोल रूम में बैठकर यातायात नियंत्रण को अभी ख्वाब ही कहा जा सकता है।