चीन की राखियों को बहनों की ना
सीमा पर चीन से तनातनी के बीच इस बार बहनों ने स्वदेशी राखियां पसंद कीं और चीन की राखियों का बहिष्कार किया।
जेएनएन, मेरठ। सीमा पर चीन से तनातनी के बीच इस बार बहनों ने स्वदेशी राखियां पसंद कीं और चीन की राखियों का बहिष्कार किया। पिछले कई वर्षो से राखी के बाजार पर चीन का कब्जा रहता था। हालांकि जनता का मूड भांपते हुए बाजार ने भी चीन निर्मित राखियों को हाथ नहीं लगाया, केवल स्वदेशी राखियों की ही बिक्री की।
चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सामाजिक संस्थाओं ने कई दिनों पहले से महिलाओं को राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया। राखी के थोक विक्रेताओं का कहना है कि स्वदेशी राखी की मांग बढ़ने से महिलाओं को कोरोना काल में घर बैठे रोजगार मिला। आगामी त्योहारों के लिए भी उन्होंने स्वदेशी उत्पाद बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।
इन्होंने कहा:::
इस बार बाजार से चीन की राखियों का सफाया हो गया। लोग अब स्वदेशी अपना रहे हैं। इससे कई लोगों को रोजगार मिला है। इस बार स्वदेशी राखियों की मांग 60 से 70 फीसद तक बढ़ गई।
- मुकुल जैन, थोक विक्रेता, सराफा बाजार स्वदेशी राखी बनवाने के लिए इस बार अधिक कारीगरों को काम दिया गया। इस साल चीन की लाइट और म्यूजिक वाली राखियां नहीं बेची गई। पिछले साल का माल भी बेकार पड़ा है। इससे दो से तीन लाख का नुकसान हुआ।
- उदित अरोड़ा, थोक विक्रेता मोहिनी राखी, फुटबाल चौक स्वदेशी राखी की मांग को देखते हुए संस्था ने चार सौ महिलाओं को राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया। इससे महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिला। आगे भी संस्था की यही कोशिश रहेगी।
- दुर्गेश ठाकुर, अध्यक्ष, उद्गम फाउंडेशन