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परिसर : नकलचियों की खांसी से श‍िक्षकों में दहशत, तलाशी से भी कर रहे परहेज Meerut News

मेरठ में विवि की परीक्षा के दौरान छात्रों की बहानेबाजी कोरोना से शिक्षकों में खौफ हाकी को लेकर मेरठ में खेल कर रही खेल विभाग और बेरोजगारी की समस्‍या पर कटाक्ष करता यह लेख।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 14 Mar 2020 05:38 PM (IST)Updated: Sat, 14 Mar 2020 05:38 PM (IST)
परिसर : नकलचियों की खांसी से श‍िक्षकों में दहशत, तलाशी से भी कर रहे परहेज Meerut News
परिसर : नकलचियों की खांसी से श‍िक्षकों में दहशत, तलाशी से भी कर रहे परहेज Meerut News

मेरठ, [विवेक राव]। कोरोना वायरस महामारी की तरह फैल रहा है। पूरी दुनिया में दहशत है। मोबाइल के कॉलर टोन से जनहित में खांसी से बचने और दूरी रखने की सलाह दी जा रही है। ऐसे दौर में जब गंभीरता और सजगता की जरूरत है, वहां कुछ जगह शरारत हो रही है। अब चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय से जुड़े कॉलेजों में चल रही परीक्षा को लीजिए। कोरोना के दशहत में परीक्षाएं भी हैं। विश्वविद्यालय से लेकर कॉलेज स्तर पर नकल पर नकेल कसने के लिए तमाम इंतजाम किए गए हैं। कॉलेज में छात्रों के प्रवेश करने से लेकर परीक्षा कक्ष में तलाशी ली जा रही है। पिछले दो दिन से कुछ परीक्षा केंद्रों पर शिक्षक किसी छात्र को उठाकर उसकी तलाशी कर रहे हैं, तो नकल की सामाग्री रखने वाले छात्र खांसने लग रहें हैं। छात्रों की खांसी को देख कई शिक्षक तलाशी करने से डरने लगे हैं।

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खेल के साथ खेल क्‍यों

हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद मेरठ में रहे। 1947 से 1956 तक सेना के पंजाब रेजीमेंट में आए थे। यहां उन्होंने हाकी की स्टिक खूब चलाई। क्लब की हाकी खेलते हुए खिलाडिय़ों को हाकी के गुर सिखाए। ऐसे में आप समझ सकते हैं, हाकी मेरठ की माटी में किस तरह से रची बसी होगी। मेजर ध्यानचंद जैसी हाकी खेलने का ख्वाब यहां के युवाओं में हैं, लेकिन खिलाडिय़ों को खेल के मैदान में उतारने से पहले खेल विभाग ही खेल कर रहा है। शहर का एक मात्र स्टेडियम कैलाश प्रकाश है। करीब दस साल पहले यहां हाकी का हॉस्टल हुआ करता था। सिंथेटिक हाकी का टर्फ न होने की वजह से हॉस्टल खत्म हो गया। दो साल पहले खेलो इंडिया में 539 लाख रुपये की लागत से टर्फ बनना शुरू हुआ। दो महीने काम हुआ फिर ब्रेक लग गया। विभागीय लापरवाही में गेंद फंसी है।

35 बरस वो 15 बताएं

नौकरी पाने की एक उम्र होती है। बेरोजगारी के दौर में उम्र हाथ से निकलती जा रही है। ऐसे में कुछ युवा अपनी उम्र कम करने की जुगत लगाने लगे हैं। ऐसी कारस्तानी इस बार यूपी बोर्ड की परीक्षा में देखने को मिली है। यूपी बोर्ड ने होली से पहले परीक्षा तो करा लिया, लेकिन एक परीक्षा बाकी है। मेरठ में इस बार कुछ परीक्षा केंद्रों पर जिस तरह से उम्र में हेराफेरी कर फर्जी आधारकार्ड से छात्रों ने परीक्षा दी। वास्तविक उम्र 30-35 की थी, उसे 15 से 17 बरस का दिखाकर बोर्ड की परीक्षा में बैठाया गया। 100 से अधिक मामले पकड़ में आए। जिला विद्यालय निरीक्षक ने छह लोगों की जांच टीम बना दी। जांच टीम के सदस्य संबंधित स्कूलों से छात्रों के मूल प्रमाणपत्र मांग रहे हैं। इसमें स्कूल असहयोग कर रहे हैं, फिर गड़बड़ी की गुंजाइश तो है ही।

स्‍कूल बदला अब वो बदले

आज की शिक्षा दो भागों में बंटी हुई है। निजी स्कूलों का ग्लैमर है, तो सरकारी स्कूलों में बदहाली। जिले में बेसिक शिक्षा परिषद से संचालित सरकारी स्कूलों का बेस पूरी तरह से कमजोर है। यह संसाधनों से लेकर पढ़ाई के स्तर दोनों में है। अब पहली बार बेसिक स्कूलों का बेस सुधारने की कोशिश हुई है। प्राइमरी सरकारी स्कूलों बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर की व्यवस्था हो रही है। लड़के और लड़कियों के लिए अलग- अलग टॉयलेट बन रहे हैं। स्कूलों के रंगरोगन किए जा रहे हैं। माना जा रहा है स्कूलों में होने वाले इस बदलाव से सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पटरी पर चढ़ेगी मगर इससे बहुत कुछ नहीं बदलने वाला। शिक्षकों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। मेरठ में कुछ स्कूल निजी स्कूलों से बेहतर कर एक उदाहरण तो पेश कर रहे हैं, लेकिन सभी उदाहरण बनें तो कुछ बात बने।


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