होलिका दहन कीजिए, पर हरियाली का ख्याल भी रखिए
होलिका दहन अब गली-गली में होने लगा है। परंपरा के नाम पर पहले पेड़ों की कटाई और फिर एक दिन में हजारों कुंतल लकड़ी आग के हवाले करने से आबोहवा का संतुलन बिगड़ रहा है।
मेरठ, जेएनएन। होली का पर्व आ गया है। घर-घर में तैयारियां शुरू हो गई हैं। रंगों से सराबोर होने के साथ होलिका दहन की तैयारी में भी लोग जुटे हैं। कभी शहर में प्रमुख स्थानों तक सीमित होलिका दहन अब गली-गली में होने लगा है। परंपरा के नाम पर पहले पेड़ों की कटाई और फिर एक दिन में हजारों कुंतल लकड़ी आग के हवाले करने से आबोहवा का संतुलन बिगड़ रहा है। हम ये नहीं कहते हैं कि होलिका दहन मत कीजिए..। भाईचारा फैलाइए..गली-गली के बजाय किसी चौराहे पर होलिका दहन कीजिए और पर्यावरण बचाने के साथ भाईचारे को बढ़ाएं ।
परंपरा के नाम पर पेड़ों पर कुल्हाड़ी
पर्यावरण की सेहत में प्राण घोलने का काम पेड़ करते हैं। परंपरा के नाम पर हर साल पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलती है। जनपद में इस बार करीब डेढ़ हजार स्थानों पर होलिका दहन के उल्लास में हरियाली का हवन हो जाएगा। जिला प्रशासन के मुताबिक जनपद में 1519 स्थानों पर होलिका दहन होना है। शहर में 654 और ग्रामीण क्षेत्रों में 865 स्थानों पर तैयारी है। करीब 75 हजार कुंतल लकड़ी का इस्तेमाल होगा। शेष गन्ने की पत्ती और कंडे (उपले) जलेंगे। इससे निकलने वाली कार्बनडाई आक्साइड समेत अन्य गैसों का उत्सर्जन होगा। इस दौरान हवा में कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, सस्पेंडेट पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्र बढ़ना तय है। इसका दुष्प्रभाव बीमारियों के रूप में लंबे समय बाद देखने को मिलता है।
इतने महत्वपूर्ण हैं पेड़-पौधे
- एक हेक्टेयर में लगे पौधे तीन मीटिक टन कार्बन डाई आक्साइड ग्रहण करते हैं।
- पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में 70 टन धूल रोकते हैं।
- एक किमी में रोपे पेड़ दो लाख वर्ग मीटर पानी संचित करते हैं।
- 50 मीटर में लगे वृक्ष 20 से 30 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण कम करते हैं।
- एक मनुष्य वर्ष भर में 1800 किलोग्राम आक्सीजन ग्रहण करता है।
- पेड़ों के घटते घनत्व के चलते जमीन की नमी गायब हो रही है।
- पेड़ों की कम होती संख्या के चलते तापमान असंतुलित हो रहा है।
...तो कैसे चहकेगी चिड़िया
नगरीय जीवन हो या फिर ग्रामीण, वृक्षों की घटती संख्या ने न केवल मानव जीवन को संकट में डाल दिया है, बल्कि पक्षियों की चहचहाहट भी कम हो गई है। पेड़ों के उजड़ने से कई प्रजाति की चिड़ियां विलुप्त हो गई हैं। हैरानी की बात ये है कि इसे लेकर शासन-प्रशासन भी गंभीर नहीं है।
लोग त्योहार की भावना समझें
मेरठ कॉलेज के वनस्पति विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर नरेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि होली का पर्व भाईचारे का पैगाम लाता है। समाज और लोगों को यह भावना समझनी चाहिए। चंद घरों के सामने, गली-गली में होलिका दहन करना पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। तीन-चार मोहल्लों के बीच एक स्थान चिह्न्ति होना चाहिए। जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है, उसी हिसाब से ऑक्सीजन चाहिए। सभी जानते हैं ऑक्सीजन का स्रोत केवल पेड़ है। इन्हें परंपरा के नाम पर काटा जाना भविष्य के खतरे की घंटी है।
इन्होंने कहा
होली को लेकर वन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कर्मचारियों की स्पेशल ड्यूटी लगाकर निगरानी की जाती है। हरा पेड़ काटने पर कार्रवाई भी होती है। जनता से अपील है कि पेड़ काटे नहीं उनका संरक्षण करें, ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे।
- अदिति शर्मा, प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी