मेरठ और एनसीआर की 'नसों' में तेजी से घुल रहा है कैंसर
असाध्य रोगों से निपटने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया, लेकिन एनसीआर-मेरठ की नसों में कैंसर घुन की तरह फैल रहा है। नेशनल काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ-एनसीआर क्षेत्र में सबसे तेजी से कैंसर बढ़ा है। 2009-12 में आंकड़ा एक लाख में 120 व्यक्ति बीमार थे, जो 2017 तक 150-200 प्रति लाख तक पहुंच चुका है।
मेरठ। असाध्य रोगों से निपटने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया, लेकिन एनसीआर-मेरठ की नसों में कैंसर घुन की तरह फैल रहा है। नेशनल काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ-एनसीआर क्षेत्र में सबसे तेजी से कैंसर बढ़ा है। 2009-12 में आंकड़ा एक लाख में 120 व्यक्ति बीमार थे, जो 2017 तक 150-200 प्रति लाख तक पहुंच चुका है। इधर, पीजीआइ चंडीगढ़ और केजीएमयू लखनऊ की टीम मेरठ में कैंसर पर रिसर्च कर रही है।
गंगेटिक बेल्ट में नासूर
मेरठ समेत पश्चिमी यूपी में मुंह, फेफड़ा, आहारनाल, गला, पित्त की थैली, स्तन एवं लीवर कैंसर की मरीजों की संख्या ज्यादा है। तंबाकू, शराब, मसालेदार भोजन, प्लास्टिक में खानपान, कीटनाशक एवं भूजल में भारी तत्वों से कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ी। पश्चिमी उप्र में काली एवं ¨हडन नदी के किनारे बसे गांवों में तमाम लोगों के रक्त में कैंसरकारक रसायन मिले हैं। औद्योगिक इकाइयों में आर्सेनिक, क्रोमियम, कैडमियम, बोरान, मालिब्डेनम एवं पारा से सेहत झुलसी है।
फेफड़ों का कैंसर बढ़ा
मेरठ की हवा में पीएम-2.5 एवं पीएम-10 की मात्रा कई बार दिल्ली से ज्यादा दर्ज की गई है। इसमें तैरने वाले सूक्ष्म रासायनिक कण फेफड़ों की झिल्ली पारकर रक्त में मिल जाते हैं। पुराने वाहन, जनरेटर, औद्योगिक धुआं एवं प्लास्टिक जलाने से लंग्स कैंसर के मरीज बढे़ हैं। हवा में सल्फर, नाइट्रोजन, सीओटू, बेंजीन एवं लेड के कण भी बीमारी बनाते हैं। पेट्रोल पंपों के आसपास बने घरों में ज्यादा खतरा रहता है।
कुछ यूं कसा बीमारी ने शिकंजा
शहर 2009-12 2012-17
पुरुष-महिला पुरुष-महिला
दिल्ली-मेरठ 125.2-120.6 149.4-144.8
मुंबई 98.4-64 113-118
बंगलुरु 113.7-137.2 105.4-125.9
चेन्नई 118-123 116-126
नागपुर 96.4-103 89.4-94.5
कोलकाता 92.8-99.4 100.9-103.4
इंफाल 69.5-68.9 52.2-59.2
(नोट: कैंसर रोगी प्रति लाख में)
धूम्रपान, तंबाकू व बिगड़ी जीवनशैली कैंसर की बड़ी वजह है। पश्चिमी उप्र में मुंह, आहार नाल, ब्लड, ब्रीस्ट, पित्त की थैली, लीवर एवं लंग कैंसर के मरीज ज्यादा हैं। इस साल मेडिकल कॉलेज में आधुनिक रेडियोथेरेपी एवं कीमोथेरेपी शुरू कर दी जाएगी।
डा. सुभाष सिंह, कैंसर रोग विशेषज्ञ व विभागाध्यक्ष, मेडिकल कॉलेज
निकोटीनयुक्त रसायन ही अकेले 16 प्रकार के कैंसर का कारण है। दर्द निवारक गोलियों, तंबाकू, धूम्रपान एवं एक खास परजीवी से ब्लैडर व किडनी कैंसर हो रहा है। तंबाकू से खास किस्म के रक्त कैंसर का रिस्क है। पहले स्टेज में पकड़ में आने पर 90 फीसद से ज्यादा ठीक होने की उम्मीद होती है।
डा. बीएन सतपथी, रेडिएशन आंकोलोजिस्ट, केएमसी
आप भी रक्तदान की तरह स्टेम सेल दान कर रक्त कैंसर के तमाम मरीजों को नया जीवन दे सकते हैं। स्टेम सेल चढ़ाने पर बोनमेरो की कोशिकाएं शुद्ध रक्त बनाने लगती हैं। लीनियर एक्सलरेटर, फ्रोजन सर्जरी एवं इम्यूनोथेरेपी कैंसर इलाज में बेहद कारगर हैं।
डा. अमित जैन, वेलेंटिस अस्पताल कैंसर से लड़ने की 'उम्मीद' बनीं वंदना
मेरठ । कैंसर की आशंका से ही कइयों का दिल बैठ सकता है, लेकिन वंदना ने इस बीमारी को शिकस्त देकर तमाम मरीजों में जीवन के प्रति उम्मीद जगाई है। 64 साल की उम्र में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हुआ। परिवार पर गम का पहाड़ टूटा पड़ा, किंतु वंदना ने हौसला नहीं खोया। सिर्फ पांच माह के इलाज में उन्होंने जानलेवा बीमारी को मात दे दी। अब वह कैंसर के मरीजों के बीच पहुंचकर उन्हें संवेदना की खुराक से मजबूत बनाती हैं। यकीन दिलाती हैं कि कैंसर असाध्य नहीं है।
स्टेट बैंक में 17 साल नौकरी करने के बाद वंदना 2011 में रिटायर हुई। शास्त्रीनगर निवासी वंदना 2015 में अपने बेटे के पास तंजानिया गईं। एक दिन उन्हें ब्रेस्ट में दर्द हुआ। डाक्टर ने जांच कराने के लिए कहा। अक्टूबर में मेरठ पहुंचकर जांच कराया तो कैंसर का पता चला। बेटा और बेटी के साथ दामाद व पूरा परिवार परेशान हो गया। किंतु वंदना ने हिम्मत के साथ कैंसर का सामना करते हुए डा. उमंग मित्थल से 2016 मार्च तक इलाज कराया। छह कीमो में वो ठीक हो गई। अब वह उम्मीद नामक एक ग्रुप से जुड़कर कैंसर मरीजों की काउंसलिंग करती हैं। उन्हें भरोसा देती हैं कि कैंसर पूरी तरह ठीक हो जाता है।