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World Book Day: कैनाल इंजीनियरिंग की बाइबिल है रिपोर्ट आन यूजीसी

165 वर्ष पुरानी किताब में ऊपरी गंगा नहर निर्माण में खर्च हुई पाई-पाई का ब्योरा है। कोटले रिपोर्ट आन अपर गंगा कैनाल दो फुट लंबी और सवा फीट चौड़ी है इसका भार लगभग तीस किलोग्राम है।

By Edited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 02:59 AM (IST)
World Book Day: कैनाल इंजीनियरिंग की बाइबिल है रिपोर्ट आन यूजीसी
World Book Day: कैनाल इंजीनियरिंग की बाइबिल है रिपोर्ट आन यूजीसी
मेरठ, [ओम बाजपेयी]। अन्न और धन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को समृद्ध करने वाली ऊपरी गंगा नहर क्षेत्रवासियों के लिए लाइफ लाइन है। नहर निर्माण के बाद प्रकाशित ‘कोटले रिपोर्ट आन अपर गंगा कैनाल’ (यूजीसी), 165 वर्ष पुराना दस्तावेज है। इसमें देश की पहली विशाल नहर प्रणाली के डिजाइन से लेकर निर्माण से संबंधित हर छोटी बड़ी तकनीकि बारीकी का जिक्र है। साथ ही पाई-पाई खर्च का हिसाब भी है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि यूजीसी की चाल, कोटले की रिपोर्ट से समझी जा सकती है। इसमें हरिद्वार से अलीगढ़ तक के विशाल भूभाग के तत्कालीन सामाजिक आर्थिक पहलू का भी विस्तार से जिक्र है। कैनाल इंजीनियरिंग की बाइबिल यह पुस्तक आज भी सिंचाई विभाग के इंजीनियरों का मार्गदर्शन करती है।
177 साल पहले खींच लिया था गंगा और यमुना नदी को जोड़ने का खाका
देश को बाढ़ और सूखे की आपदा से मुक्ति दिलाने के लिए अटल सरकार ने नदियों को जोड़ने की परियोजना पर जोरशोर से काम शुरू किया था। इससे बहुत पहले अंग्रेज इंजीनियर प्रोबी टी. कोटले ने 1842 में गंगा और यमुना नदी को जोड़ने पर काम आरंभ कर दिया था और 1854 में इस परिकल्पना को साकार कर दिखाया।
क्षेत्र का विस्तृत सर्वे
नहर के निर्माण के पहले उन्होंने क्षेत्र का विस्तृत सर्वे किया था। निर्माण के दौरान हुए खर्च और निर्माण की प्रविधि को लेकर उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी प्रकाशित की। इसका प्रकाशन तीन खंडों में लंदन की प्रेस से किया गया था। यह पुस्तक सिंचाई विभाग के कैनाल शोध संस्थान बाउंड्री रोड में आज भी रखी हुई है। हालांकि इस पर समय की मार पड़ी है। इतनी पुरानी पुस्तक के पेज पलटते ही उसके पेज फटने की नौबत आ जाती है। कई पन्ने तो फट गए है और उन्हें चिप्पियां लगा कर जोड़ा गया है। फिलहाल सिविल इंजीनियरिंग के इस नायाब ग्रंथ को सहेजने की आवश्यकता है।
तिल्ली की बीमारी से पीड़ित थे लोग
नहर के निर्माण के पहले क्षेत्र का सघन सर्वे किया गया था। रिपोर्ट में जिक्र है कि 1843 के आसपास काफी स्थानीय लोग पेट की तिल्ली की बीमारी से पीड़ित थे। गंगा और यमुना के दोआब का क्षेत्र होने के बावजूद खेती बारिश पर आधारित होने से कई बार सूखे की स्थित का सामना करना पड़ता था। जब नहर को लाने के बारे में लोगों को पता चला तो उन्होंने यह कह कर इसका शुरुआती विरोध भी किया कि पानी में मच्छर पनपेंगे और इससे महामारी फैलेगी। उस समय मलेरिया और हैजा जैसी बीमारियों से सैकड़ों लोग की मौत हो जाया करती थी।

अपर गंगा कैनाल एक नजर में
निर्माण - 1842 से 1854
खर्च - एक करोड़, 41 लाख 60 हजार, 311 रुपये, सात आना, पांच पाई
हरिद्वार से अलीगढ़ ननऊ तक मुख्य नहर की लंबाई - 293 किलोमीटर
रजवाहों सहित कुल लंबाई - 6355.74 किलोमीटर
कुल सिंचित क्षेत्र - 888110 हेक्टेयर

इन्‍होंने बताया
नहर के जीर्णोद्धार के दौरान कोटले रिपोर्ट आज भी मदद करती है। नहर का फ्लो कहां कितना है और कितना ढाल है? यह सब इसमें अंकित है। इस दस्तावेज की साफ्टकापी तैयारी की जाएगी और इसे सुरक्षित किया जाएगा।
- आशुतोष सारस्वत, अधिशासी अभियंता, मेरठ खंड
यह पहली ऐसी नहर है जो सिंचाई के साथ नौकायान के लिए भी उपयुक्त है। नहर का निर्माण जब आरंभ हुआ था तब हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग अपने शैशव काल में थी। ऐसे में हाइड्रोलिक्स के सिद्धांतों को रच कर उन्हें मूर्त रूप प्रदान करने वाले कोटले के इस ग्रंथ को हर पुस्तकालय में संग्रहीत किया जाना चाहिए।
- एसके कुमार, पूर्व मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग अध्यक्ष, इंडियन वाटर रिसोर्स सोसायटी
1.41 करोड़ बनकर तैयार हुई थी नहर

हरिद्वार बैराज से लेकर अलीगढ़ तक भू भाग सिंचित करने वाली यूजीसी के मुख्य नहर की लंबाई 293 किलोमीटर है। रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन करने वाले सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता एसके कुमार ने बताया कि इसके निर्माण में सिर्फ पत्थर, ईंट, चूना और सुर्खी का प्रयोग हुआ है। सीमेंट और लोहा नहीं लगा है। निर्माण कार्य में घोड़ों और खच्चरों का खूब प्रयोग हुआ था। इसके निर्माण पर 1,41,60,311 रुपये सात आना और पांच पाई लागत आई थी।
30 किलो वजन का है मुख्य खंड
कोटले रिपोर्ट आन अपर गंगा कैनाल तीन खंड में है। मुख्य खंड में डिजायन का ब्यौरा है। यह 23.5 इंच लंबा, 15.8 इंच चौड़ा और 6.5 इंच मोटी है। इसका वजन लगभग तीस किलो है। इसको संभालने का काम करने वाले सतीश त्यागी ने बताया कि इन्हें विशेष रूप से बनाए गए बाक्स में रखा जाता है। शेष खंड सामान्य बुक साइज के हैं।

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