चंद दिनों को आए थे, दो महीने से मेरठ के मेहमान
लॉकडाउन ने सभी को कोई न कोई नया अनुभव जरूर दिया है।
मेरठ, जेएनएन। लॉकडाउन ने सभी को कोई न कोई नया अनुभव जरूर दिया है। ऐसा ही अनुभव मेहमाननवाजी का भी है। लॉकडाउन में मेरठ के दो होटलों में दो माह से अतिथि टिके रहे और होटल बंद होने के बाद भी उनकी खातिरदारी होती रही। इनमें से एक मुंबई से आए निजी टेलीकॉम कंपनी के अधिकारी हैं तो दूसरी दो देशों के लिए ओलंपिक पदक जीतने वालीं शूटर हैं। दो माह से भी अधिक समय बिताने के बाद अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तो लौट गई, लेकिन मुंबई से आए मेहमान उड़ान सेवा शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।
दरअसल, मुंबई की एक टेलीकॉम कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी ओपी शर्मा लॉकडाउन से पहले 23 मार्च को कंपनी के ही काम से मेरठ आए थे। वह साकेत स्थित होटल वेलकम ऑलिव्स में ठहरे। इस बीच लॉकडाउन हो गया और यातायात के सभी साधनों पर रोक लगने से वे तब से अब तक यहीं फंसे हुए हैं। कुछ दिन तक तो घर लौटने की छटपटाहट रही, लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप की वजह से खिंचते लॉकडाउन के दिनों के बीच उन्होंने भी अपने को ढाला। अब ओपी शर्मा का दिन ध्यान योग और पूजा अर्चना से शुरू होता हैं। 50 साल के ओपी कहते हैं कि हम परिस्थितियों और भविष्य की चिंता में फंसे रहते हैं। कोरोना महामारी जरूर है लेकिन प्रकृति ने यह समय हमें खुद को समझने के लिए दिया हैं।
कविता गढ़ रहे हैं ओपी शर्मा
अकेले समय नहीं कटा तो ओपी शर्मा ने कलम उठाई। बताते हैं सालों बाद लिखने का सुरूर फिर चढ़ा है। यह एक अलग अनुभव हैं। इसका अहसास लॉकडाउन में स्वच्छ और निर्मल प्रकृति को देखकर हुआ। प्रकृति का ऐसा स्वरूप कभी नहीं देखा था। कोयल की बोली और चिड़ियों की चहचहाट साफ सुनाई देने लगी हैं। वे कहते हैं, बचपन से कविताओं का शौक था, लेकिन जिंदगी की भागमभाग में जिंदगी का यह हिस्सा छूट गया था। अब मौका मिला तो फिर जुड़ गए। प्रकृति के पास आए तो परमात्मा का भान हुआ। चूंकि उसके मिलन का मार्ग आध्यात्म है। सुकून और संतुष्टि का यह मेल अद्भुत है।
चूंकि अतिथि सत्कार हमारी संस्कृति है लिहाजा होटल ने भी इस भारी वक्त में उनका ख्याल रखा। वेलकम ऑलिव्स से निदेशक अमर अहलावत बताते हैं, लॉकडाउन से दो दिन पहले ओपी शर्मा ने होटल में कमरा बुक करवाया था। वह दो महीने से होटल में हैं। यहां एक स्टाफ है जो उनके लिए भोजन और अन्य जरूरतों का ध्यान रखता है। अब चूंकि सहूलियतें मिलने लगी हैं, वे लौटने की प्लानिंग में जुट गए हैं। अपनी मां के घर लौटीं अंतरराष्ट्रीय शूटर
आइएसएसएफ 2009 वर्ल्ड कप में सोने पर निशाना साध चुकीं जर्मन शूटर मुनखबयार डोर्जसुरेन लगभग दो महीने का लॉकडाउन पीरियड मेरठ में बिताने के बाद इसी सोमवार को अपनी मां के पास मंगोलिया रवाना हो गई। वे ओलंपिक में अपनी पिस्तौल की बदौलत मंगोलिया और जर्मनी के लिए कांस्य जीत चुकी हैं। 1992 में उन्होंने मंगोलिया के लिए जबकि बाद में जर्मनी की नागरिक बनने के बाद 2008 में जर्मनी के लिए ओलंपिक कांस्य पदक जीता। वे प्रशिक्षण देने के मकसद से फरवरी से भारत में थीं। मार्च में मेरठ आयीं थी। वे होटल ब्राउरा में रुकी थीं। इस बीच लॉकडाउन हुआ और अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक लग गई। ऐसे में वे होटल में ही रुकीं रहीं। एक-दो बार जाने का मौका भी मिला, लेकिन तब जर्मन की बेपटरी स्थिति ने उनके कदम रोक लिए। लंबा समय घर से दूर, एकांत में बिताने के बाद उन्होंने अपनी मां के पास जाने का मन हुआ। वे मंगोलिया में रहती हैं। उन्होंने दूतावास से संपर्क साधा और गत रविवार को फोन आया। सोमवार की देर शाम उड़ान की जानकारी दी गई।
ब्राउरा रिसोर्ट के निदेशक शेखर भल्ला कहते हैं, इस सूचना के बाद मुनखबयार के खुशी का ठिकाना नहीं था। वह उस दिन लॉन में दो घंटे टहलीं। लोगों से बातचीत की और सोमवार दोपहर चलीं गई। शेखर भल्ला ने बताया कि वे मंगोलिया अपनी मां के पास पहुंच गई हैं। वहां वह क्वारंटाइन में हैं।