जिस देश में पहुंचा, वहां का कहलाया बौद्ध धर्म
चौधरी चरणसिंह विवि के इतिहास विभाग में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सहयोग से चल रही 10 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में शनिवार को बौद्ध धर्म पर व्याख्या हुई।
मेरठ, जेएनएन। चौधरी चरणसिंह विवि के इतिहास विभाग में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सहयोग से चल रही 10 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में शनिवार को बौद्ध धर्म पर व्याख्या हुई। पंजाब विवि के पूर्व प्रो.जेके शर्मा ने बौद्ध धर्म के विकास पर बोलते हुए आंबेडकर के संदर्भ में बौद्ध धर्म की परंपराओं पर व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने हीनयान, महायान, वज्रयान द्वारा बौद्ध धर्म के मूल्यों को मानवता के परिप्रेक्ष्य में समझाते हुए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बौद्ध की प्रासंगिकता को ठोस धरातल प्रदान किया।
प्रो. शर्मा ने बौद्ध धर्म की शाखा 'नवयान' की अवधारणा पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि बौद्ध धर्म जब भारत से श्रीलंका गया तो श्रीलंका का बौद्ध धर्म कहा गया। जब जापान गया तो जापान का बौद्ध धर्म कहा गया। जब चीन गया तो चीन का बौद्ध धर्म कहा गया। देश एवं काल के अनुसार बौद्ध धर्म में कुछ परिवर्तन देखा गया, लेकिन बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत के अष्टांगिक मार्ग एवं चार आर्य सत्य सभी देशों में समान हैं। साथ ही उन्होंने 19वीं शताब्दी में आए पुनर्जागरण काल के अंतर्गत सर्वधर्म समभाव की अवधारणा को प्रस्तुत किया।
सीसीएसयू में समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. आलोक कुमार ने 'मूवमेंट' शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि जो व्यक्ति हजारों लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करें उसे 'कैरिसमेटिक मूवमेंट' कहते हैं। बेअर्थ घेराव, धरना, प्रदर्शन आदि को आंदोलन का नाम देना उचित नहीं है। आइसीएचआर नई दिल्ली के पूर्व सदस्य प्रो. आरएस अग्रवाल ने महात्मा गांधी के अनेक आंदोलनों का हिस्टोरियो ग्राफिकल विश्लेषण किया। साथ ही उन्होंने राष्ट्रवादी लेखन के आरसी मजूमदार, बीआर नंदा व ताराचंद के विचारों का विश्लेषण किया।